Thursday, March 28, 2024
spot_img
Homeराजनीतिये कैसी कूटनीति

ये कैसी कूटनीति

संयुक्त अरब अमीरात स्थित न्यूज़ चैनल अल – अरबिया को दिए गए एक साक्षात्कार में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा था कि “भारत के साथ वार्ता ईमानदार और अमन से की जाएगी ” ।इसके कुछ समय बाद एक साक्षात्कार में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कार्यालय का संदेश आया कि “भारत के नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मेरा संदेश यही है कि आइए बातचीत की मेज पर बैठे हैं और कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों को हल करने के लिए गंभीर और ईमानदार बातचीत करें”।

इन दोनों पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने पर स्पष्ट होता है कि वर्तमान दौर में पाकिस्तान की आर्थिक हैसियत बहुत खराब है ।पाकिस्तान के प्रधानमंत्री घरेलू आर्थिक चुनौतियां एवं सियासी संकट से आवाम( जनता) का ध्यान बिखेरने के लिए चाल चला हो, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का मकसद यह भी हो सकता है कि अपने परंपरागत शत्रु (भारत) से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर स्वयं को पाकिस्तान के भीतर वैश्विक स्तर पर एक कद्दावर नेता बनने की महत्वाकांक्षा हो। कूटनीतिक स्तर पर अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान की बैदेशिक नीति “3A” से नियंत्रित होती है अर्थात्
A=Army (फौज/सेना),
A=Allah (अल्लाह एवं मौलवियों का गूट तंत्र);और
A= America (संयुक्त राज्य अमेरिका)

पाकिस्तान की सियासत की सफलता फौज /सेना को विश्वास में लिए गतिमान नहीं हो सकती है, क्योंकि अभी तक के इतिहास का कूटनीतिक अध्ययन करने से स्पष्ट मत यह प्राप्त हुआ है कि सेना/फौज से अलग नागरिक शासन स्थिर नहीं रह सकता है। पाकिस्तानी राजनीतिक व्यवस्था की स्थिरता सेना /फौज की स्वीकृति पर निर्भर होती है ।अमूमन पाकिस्तान में संसदीय शासन प्रणाली है ,जो सिद्धांत स्तर पर विधायिका और कार्यपालिका के संलयन पर आधारित ना होकर अर्थात् विधायिका का कार्यपालिका (सरकार) पर नियंत्रण होती है; बल्कि पाकिस्तानी राजनीतिक व्यवस्था में सरकार( कार्यपालिका) अपने प्रत्येक राजनीतिक आभार के लिए सेना/ फौज पर निर्भर होती है।

शाहबाज शरीफ ने कहा है कि पाकिस्तान ने भारत से तीन जंग लड़कर अपने सबक सीख लिए हैं उनका कहना है कि “अब यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम शांति से रहें और तरक्की करें या आपस में लड़ते रहें, और अपने समय और संसाधन को बर्बाद करते रहें। हम ने भारत से तीन जंग लड़ी और इन जंगों से लोगों के लिए मुश्किलें (समस्याएं), गरीबी और बेरोजगारी बढ़ी है. हमने अपने सबक सीख लिए हैं और हम अब शांति( अमन) से रहना चाहते हैं। शर्त बस यह है कि हम अपने असल मसले( मुद्दे) हल करने में कामयाब हो जाएं”।

उपर्युक्त भाषा को राजनीतिक और कूटनीतिक संदर्भों में देखने पर प्रधानमंत्री जी की विदेश नीति में बाध्यता(विवशता) दिख रही है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
संपर्क
[email protected]

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार