
महाराणा प्रताप से हम क्या सीखें ?
भारत देश की महान वैदिक सभ्यता में नारी को पूजनीय होने के साथ साथ “माता” के पवित्र उद्बोधन से संबोधित किया गया है।
मुस्लिम काल में भी आर्य हिन्दू राजाओं द्वारा प्रत्येक नारी को उसी प्रकार से सम्मान दिया जाता था जैसे कोई भी व्यक्ति अपनी माँ का सम्मान करता हैं।
यह गौरव और मर्यादा उस कोटि के हैं ,जो की संसार के केवल सभ्य और विकसित जातियों में ही मिलते हैं। इस्लामिक हमलावरों ने पिछले 1200 वर्षों में नारी जाति का कितना सम्मान किया है। इसका अंदाजा आप 8वीं शताब्दी में सिंध पर हमला करने वाले मुहम्मद बिन क़ासिम द्वारा फारस के बाजारों में हिन्दू लड़कियों को एक एक दीनार में बेचने से लगा सकते है। यह सिलसिला आज भी यथावत चल रहा है। ISIS के लड़ाकों द्वारा यजीदी लड़कियों को सरेआम कैसे बेचा गया सभी को मालूम है।
महाराणा प्रताप के मुगलों के संघर्ष के समय स्वयं राणा के पुत्र अमर सिंह ने विरोधी अब्दुरहीम खानखाना के परिवार की औरतों को बंदी बना कर राणा के समक्ष पेश किया तो राणा ने क्रोध में आकर अपने बेटे को हुकुम दिया की तुरंत उन माताओं और बहनों को पूरे सम्मान के साथ अब्दुरहीम खानखाना के शिविर में छोड़ कर आये एवं भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न करने की प्रतिज्ञा करे।
ध्यान रहे महाराणा ने यह आदर्श उस काल में स्थापित किया था जब मुग़ल अबोध राजपूत राजकुमारियों के डोले के डोले से अपने हरम भरते जाते थे। बड़े बड़े राजपूत घरानों की बेटियाँ मुगलिया हरम के सात पर्दों के भीतर जीवन भर के लिए कैद कर दी जाती थी। महाराणा चाहते तो उनके साथ भी ऐसा ही कर सकते थे पर नहीं उनका स्वाभिमान ऐसी इज़ाज़त कभी नहीं देता था।
काश हमारे देश के मुसलमान क़ासिम, गौरी, गजनी का गुणगान करने के स्थान पर महाराणा प्रताप के आचरण से कुछ सीखते?
वीरता और दृढ संकल्प के प्रतीक,महान योद्धा, राष्ट्र धर्म रक्षक, वीर शिरोमणि, राष्ट्रीय गौरव #maharanapratap जी की जयंती पर कोटि कोटि नमन्।
(लेखक राष्ट्रवादी विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)
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