Friday, April 19, 2024
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जब चौधरी रामगोपाल आर्य ने हुँकार भरी, सर कटा सकता हूँ मगर यज्ञोपवित नहीं उतारुंगा

भारत में हरियाणा एक ऐसा प्रांत है, जिसकी भूमि को वीर प्रस्विनी होने का गौरव प्रापत है| देश की स्वाधीनता के लिए हरियाणा के युवकों ने अपना अद्विर्तीय योगदान दिया| अधर्म के विरोध में भी यह लोग डटकर छाती तान लेते हैं| इस कार्य के लिए जिन शूरवीर हरियाणवी योद्धाओं ने भाग लिया, उनमे आर्य समाजी योद्धाओं की संख्या विपुलता से रही| इस प्रकार के आर्य समाजी वीरों में चौधरी रामगोपाल आर्य जी का नाम विशेष रूप से चिन्हित किया गया है| इसलिए उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है|

रोहतक जिले में एक गाँव छारा नाम से विख्यातˎ है| आपके जन्म की तिथि तो कहीं नहीं मिलती किन्तु यह निश्चित है कि आपका जन्म इस छारा नामक गाँव में ही हुआ| आपका पालन पौषण बड़े स्नेह से किया गया और जब आप की आयु १८ वर्ष की हुई तो आपने सेना में भरती होकर देश की सेवा की जिम्मेवारी ली| सेना में सेवा करते हुए ही आपने थोड़ी सी हिंदी अपने साथियों से सीख ली| इस मध्य ही आपने कहीं आर्य समाज के प्रचार को देखा तथा सुना तो अत्यधिक प्रभावित हुए तथा तत्काल आर्य समाजी बन गए।

सन् १९०१ ई. में जब चीन के साथ भारत का युद्ध हुआ तो आप ने अंग्रेज सरकार के नेतृत्व में रहते हुए इस लड़ाई में एक सैनिक के रूप में भाग लिया। जब अंग्रेज सरकार ने बंग भंग अर्थात् बंगाल के विभाजन की योजना बनाई तो जो असंतोष की लहर चली उससे सेना भी अछूती न रह पाई| इस बीच ही अंग्रेज सरकार के विरुद्ध सेना में बगावत करने के लिए गुप्तरुप से सैनिकों ने खून से हस्ताक्षर का अभियान चलाया| रामगोपाल जी तो अंग्रेज से पहले से ही खिन्न बैठे थे क्योंकि अंग्रेज आर्य समाज को एक राजनीतिक दल मान कर इसका दमन करना चाहते थे, इन दोनों कारणों से दीनापुर छावानी में नियुक्त सैनिक रामगोपाल जी ने भी तत्काल इस विरोध पत्र पर अपने खून से हस्ताक्षर कर दिए|

भारतीय सैनिकों के लिए सरकार की ओर से एक आदेश आया| इस आदेश के अनुसार जो भी सैनिक आर्य समाजी हो अथवा वह यज्ञोपवीत पहनता हो, वह तत्काल आर्य समाज को छोड़ दे तथा अपना यज्ञोपवीत उतार दे, अन्यथा उसे राजकीय दण्ड का भागीदार बनना होगा| यह आदेश सुनते ही रामगोपाल जी के गुस्से का पारावार न रहा| यह रामगोपाल जी के लिए एक चुनौती का समय था जिसका रामगोपाल जी ने बड़ी दृढ़ता से सामना करने का निर्णय लिया और मन ही मन निर्णय ले लिया कि उनका सर तो कट समता है किन्तु उनका यज्ञोपवीत नहीं उतरेगा| इस आदेश का पालन करने के लिए सेना के कमांडिंग आफिसर ने सब सैनिकों को एक पंक्ति में खडा करके उनकी जाँच आरम्भ की और यह देखना चाहा कि किस के गले में यज्ञोपवीत है| गुस्से से लाल रामगोपाल जी ने स्पष्ट घोषणा के रूप में अपना यज्ञोपवीत अपने कान पर लटका लिया| सैनिक अधिकारी ने रामगोपाल जी की यह हरकत देखी तो वह भी क्रोधित हो उठा तथा उसने रामगोपाल जी को अपना यज्ञोपवीत उतारने के लिए कहा| इस पर प्रत्युत्तर में रामगोपाल जी ने तपाक से कहा “यदि आप गिरजाघर जाना छोड़ दे , तो हम जनेऊ छोड़ने के लिए विचार कर सकते हैं |” रामगोपाल जी के इस निर्भीक किन्तु कठोर उत्तर के कारण उनका कोर्ट मार्शल कर दिया गया| इस आरोप में ही रामगोपाल जी ने १९०७ ईस्वी को सेना की नौकरी से अलग कर दिया गया|

जब लार्ड हार्डिंग पर बम फैंका गया तो इस की जांच करते हुए अनेकों भारतीयों को शक के घेरे में लियी गया तथा उन सब से पूछताछ की गई। सेना में यज्ञोपवीत न त्याग कर विद्रोही माने गए रामगोपाल जी को भी इस शक के घेरे में लेते हुए हिरासत में ले लिया गया किन्तु जांच में कुछ भी सिद्ध न हो पाने के कारण बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

रामगोपाल जी का आर्य समाज के प्रति इतना लगाव हो चुका था कि उन्होंने स्वयं को पूरी तरह से आर्य समाज लिए समर्पित कर दिया। जब गुरुकुल झज्जर को आरम्भ करने की योजना बनी तो रामगोपाल जी ने इस गुरुकुल के लिए स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी परमानंद जी को अपना पूर्ण सहयोग दिया। आप अछूतोद्धार के लिए अत्यंत उत्साहित थे| इस कारण ही अपने गांव छारा में ३६ बिरादरी का सहभोग कराया। इस उद्देश्य को सामने रखते हुए आपने गांव में हरिजनों के लिए एक कुआ भी बनवाया।हैदराबाद सत्याग्रह

जब सार्वदेशिओक आर्य प्रतिनिधि सभा ने हैदराबाद में सत्याग्रह आन्दोलन के आरंभ करने के लिए भीषण नाद निनादित किया तो रामगोपाल जी के अन्दर भी सत्याग्रह के लिए उमंगे उअथाने लगीं, उनका खून होलौरें लेने लगा| इसका परिणाम यह हुआ कि आपने रोहतक के छठे सत्याग्रही जत्थे का नेतृत्व करते हुए हैदराबाद के लिए प्रस्थान किया और हैदराबाद में जाकर सत्याग्रह किया। सत्याग्रह में अभूतपूर्व तथा असहनीय पीड़ा को झेला और अंत में इस आन्दोलन में सफल हुए| विजय मिलाने पार सभा ने आन्दोलन वापिस ले लियीव और आप विजयी होकर हंसते हुए अपने गाँव चारा लौट आये|

आर्योंकी आरम्भ से ही एक विशेषता रही है कि जब उहोने आर्य समाज में प्रवेश किया या यूँ कहे कि जब उँ अर आर्य समाज का रंग चढ़ा तो यदि उनके गाँव अथवा नगर में आर्य समाज थी तो उसे भरपूर सहयोग देकर आगे बढाया ओपर यदि आर्य समाज नहीं थी, तो वहां आर्य समाज स्थापित किये| इस प्रकार ही जब आप पर आर्य समाज का रंग पूरी तरह से चढ़ गया तो आपने अपने गाँव छारा में भी आर्य समाज सथापित कर यहाँ आर्य समाज मंदिर बनाने का निर्णय लिया| इस कार्य के लिए आपने दिन रात एक कर दिया और इसका परिणाम यह हुआ कि इस गाँव में आर्य समाज मंदिर बन कर कुछ ही समय में खडा हो गया| दादा बस्तीराम जैसे अत्यन्त विख्यातˎ भजनोंपदेशक या अन्य विद्वानˎ तथा भजनोपदेशक प्रचार के लिए छारा गाँव में आया करते थे तो उनका निवास आपके यहाँ ही हुआ करता था| आप बड़ी प्रसन्नता से उन सब का आतिथ्य किया करते थे|

जब आप वृद्धावस्था में पहुंचे तो अपने पुत्र चन्द्रसिंह दलाल वकील जी के पास रोहतक आ गए। आप आर्य समाज के प्रति तो पूरी लगन से लगे ही हुए थे, इस कारण रोहतक मॉडल टाउन में आपने आर्य समाज स्थापित करने का निर्णय लिया और इसकी पूर्ति के लिए कटिबद्ध हो गए तथा शीघ्र ही आप के प्रयास से माडल टाउन, रोहातक में आर्य समाज की स्थापना कर दी और फिर आर्य समाज के सत्संगों के लिए मंदिर का निर्माण भी कर दिया गया। आज इस समाज के विशाल भवन में बड़े सुंदर ढंग से वैदिक सत्संग होता है| इसके लिए श्री देसराज टक्कर जी बड़े उत्साह से अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं|

रामगोपाल जी ने अपने जीवन का लक्ष्य पूर्ण किया अर्थातˎ ईश्वर ने जो मानव के लिए १०० वर्ष की आयु निर्धारित की थी, उस लक्ष्य को आपने छू लिया और फिर १०० वर्ष की आयु पूर्ण कर आपका देहांत हो गया।

केवल रामगोपाल जी के जीवन को देखकर केवल उन पर ही नही अपितु इस प्रकार के अन्य आर्य नेताओ पर भी गर्व का अनुभव हो रहा है जो धर्म के लिए बलिदान हो गए किन्तु रामगोपाल जी पर विशेष इसलिए कि इस लेख के मुख्य पात्र रामगोपाल आर्य जी ही रहे हैं|

डॉ. अशोक आर्य
पॉकेट १/ ६१ रामप्रस्थ ग्रीन से, ७ वैशाली
२०१०१२ गाजियाबाद उ. प्र. भारत
चलभाष ९३५४८४५४२६
e mail [email protected]

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