Tuesday, April 16, 2024
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“जय श्रीराम” नाम से परहेज क्यों ?

जय श्रीराम भारतीय में बहुत विशाल जन समूह द्वारा अपने आराध्य के सम्मान में की गई अभिव्यक्ति है, जिसका अनुवाद “भगवान राम की महत्ता” या “भगवान राम की विजय ” के रूप में किया जाता है। इस उद्घोषणा का उपयोग सनातनियो वा हिंदुओं द्वारा अनौपचारिक अभिवादन के रूप में, हिंदू आस्था के पालन के प्रतीक के रूप में, या विभिन्न आस्था-केंद्रित भावनाओं के प्रक्षेपण के लिए किया जाता रहा है।

अयोध्या में राम के प्रतीक को सम्मानित अभिव्यक्ति का इस्तेमाल भारतीय हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उनके आनुषंगिक संगठनों द्वारा भी किया जा रहा है। एक नारे में “जय” का पारंपरिक उपयोग ” सियावर रामचंद्रजी की जय ” (“सीता के पति राम की विजय”) के साथ है। राम का आह्वान करने वाला एक लोकप्रिय अभिवादन “जय राम जी की” और “राम-राम” भी है। “राम” के नाम का अभिवादन पारंपरिक रूप से सभी धर्म के लोगों द्वारा अधिकाधिक उपयोग किया जाता रहा है। यह नमस्ते और प्रणाम से ज्यादा लोकप्रिय रहा है।

1980 के दशक के उत्तरार्ध में, “जय श्री राम” का नारा रामानंद सागर की टेलीविजन श्रृंखला रामायण द्वारा लोकप्रिय किया गया था, जहाँ हनुमान और वानर सेना द्वारा सीता को मुक्त करने के लिए रावण की राक्षस सेना से लड़ते हुए युद्ध के रूप में इसका इस्तेमाल किया गया था। . हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन विश्व हिंदू परिषद , भारतीय जनता पार्टी सहित और उसके संघ परिवार के सहयोगियों ने अपने अयोध्या राम जन्मभूमि आंदोलन में इसका इस्तेमाल किया। उस समय अयोध्या में स्वयंसेवक अपनी भक्ति को दर्शाने के लिए स्याही के रूप में अपने रक्त का उपयोग करते हुए, अपनी त्वचा पर नारा लिखते थे। इन संगठनों ने जय श्रीराम नामक एक कैसेट भी वितरित किया, जिसमें “राम जी की सेना चली” और “आया समय जवानों जागो” । इस कैसेट के सभी गाने लोकप्रिय बॉलीवुड गानों की धुन पर सेट थे। अगस्त 1992 में संघ परिवार के सहयोगियों के नेतृत्व में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद के पूर्व में मंदिर की शिलान्यास रखी । यहां एक दिलचस्प बात यह है कि अभिवादन ‘जय सिया राम’ को ‘जय श्री राम’ के युद्ध घोष में परिवर्तित कर दिया गया है। अपनी अस्मिता और संस्कृति को बचाने के लिए यह अनुपयुक्त नही है।जब देश के बहुसंख्यक समाज को आए दिन “अल्लाह हो अकबर” और ” वाहे गुरु” आदि अन्य घोष से कोई असुविधा नहीं होती तो “जय श्रीराम” या “बंदे मातरम” या “भारत माता की जय” से भी किसी को असुविधा नहीं होनी चाहिए।

गोधराआंदोलन में प्रयोग
फरवरी 2002 में गोधरा ट्रेन में आग लगने की घटनाओं से पहले गुजरात विहिप और बजरंग दल जैसे उसके संबद्ध संगठनों के समर्थक, जो की अयोध्या की यात्रा पर जा रहे थे, ने रास्ते में मुसलमानों को “जय श्री राम” का जाप करने के लिए मजबूर किया, और अपनी वापसी की यात्रा पर, उन्होंने गोधरा सहित “हर दूसरे स्टेशन” पर भी ऐसा ही किया।एसा उस समय सैकड़ों कारसेवकों को धोखे से षड्यंत्र के तहत निर्मल जलाने के कुत्सित क्रिया के प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ था। राम जन्मभूमि पर समारोह में शामिल होने के लिए ये यात्राएं साबरमती एक्सप्रेस में की गईं। 2002 के गुजरात दंगों के दौरान, विहिप द्वारा वितरित एक पत्रक में नारे का इस्तेमाल किया गया था ।
राजनीति
जून 2019 में, इस नारे का इस्तेमाल मुस्लिम सांसदों को परेशान करने के लिए किया गया था जब वे 17 वीं लोकसभा में शपथ लेने के लिए आगे बढ़े थे।उस वर्ष जुलाई में, नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने एक भाषण में कहा था कि नारा “बंगाली संस्कृति से जुड़ा नहीं था”, जिसके कारण कुछ अज्ञात समूहों ने कोलकाता में होर्डिंग पर उनका बयान प्रकाशित किया। इस नारे का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कई मौकों पर परेशान करने के लिए भी किया गया है, जिससे उनकी नाराज़ प्रतिक्रियाएँ आयीं । अगस्त 2020 में राम मंदिर, अयोध्या के शिलान्यास समारोह के बाद, नारे को उत्सव में एक मंत्र के रूप में इस्तेमाल किया गया था।अयोध्या विवाद पर 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वकीलों द्वारा इस नारे का इस्तेमाल किया गया था। सब मिलकर ये नारा किसी को उकसाने या चिढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।कांग्रेस पार्टी, तृण मूल पार्टी ,आम आदमी पार्टी ,समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी ,कम्यूनिष्ट पार्टी,टुकडे टुकडे गैंग आदि ने हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन विश्व हिंदू परिषद , भारतीय जनता पार्टी सहित और उसके संघ परिवार के सहयोगियों पर निशाना साधते हुए जय श्री राम नाम को संकुचित राजनीतिक बताकर दुष्प्रचार कर रहे हैं।

‘सिया राम’ अनादि काल से ग्रामीण इलाकों में स्वागत का एक लोकप्रिय अभिवादन रहा है। हिंदू के कुछ प्रेमियों ने अब इस लोकप्रिय अभिवादन से सिया को बदलकर ‘ श्री ‘ (प्रभु) कर दिया है, जिससे पुरुषवादी पौरुष और मुखरता के पक्ष में स्त्री तत्व तात्कालिक किंचित परित्याग दिख रहा है । 1992 में दंगों और बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दौरान भी यही नारा लगाया गया था। यदि इस तरह की एकजुटता और प्रयास निरंतर नही होता तो आज देश बाबरी के कलंक से अवमुक्त ना हो पाता।

परम ब्रह्म तो भावना भक्ति को महत्व देते हैं ।जय सियाराम कहना तो अति उत्तम है ही ,जय श्री राम की नाद या घोष भी उन तक पहुंचेगी। यदि इस नाम के से कोई प्रभु का राष्ट्र का समाज का या अपना कोई स्वार्थ सिद्ध कर ले तो ये राजनीतिक रोटी तो नही होगी।आत्म संतुष्टि तो रोटी से ही होती है।चाहे खेत से या बाजार से या राज धर्म से मिली हो।भगवान राम ने भी धर्म का ध्रुवीकरण कर लंका पर विजय पाई थी। प्रभु राम भी सरल चित्त वाले को पसंद करते है। वे तो बाबा तुलसी के इस विचार को अंगीकार करते हैं —
निर्मल जन मन सो मोहि पावा।मोहि कपट छल छिद्र ना भावा।
चाहे कोई प्राणी अघमोचन कहे या घमोचन। “मरा मरा” कहने वाला उत्तम गति को पा सकता है तो जय श्रीराम क्यों नही?

श्री राम जी को सब कुछ स्वीकार है जय श्री राम जी और जय सियाराम जी भी।इसलिए अनर्गल प्रलाप से बचना चाहिए। जय श्री राम जी।जय सियाराम जी की।

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