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भारत में हिंदू-मुस्लिम संबंधों में तनाव क्यों?

क्या भारत सच में मई 2014 (केंद्र में पूर्ण बहुमत के साथ मोदी सरकार) के बाद ‘इस्लामोफोबिया’ से ग्रस्त हो गया है और हिंदू-मुसलमान में वैमनस्य भी बढ़ गया है? यह प्रश्न इसलिए प्रासंगिक है, क्योंकि इस प्रकार का गंभीर आरोप विपक्षी दल न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सत्तारुढ़ भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगाते है, अपितु इसकी प्रतिध्वनि शेष विश्व में भी सुनी जाती है। यह ठीक है कि आज भारत में हिंदू-मुस्लिम संबंध में सहज नहीं है। अक्सर, दोनों समुदायों में तनाव, संघर्ष और दंगों के रूप में हिंसा की खबरें आती रहती है। परंतु क्या विगत 1310 वर्षों में ऐसा कोई समय था, जब मुस्लिमों का देश के मूल निवासियों— हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों के साथ संबंध सामान्य हो? विश्व के जिन देशों में मुसलमान अल्पमत में है- जैसे फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका, म्यांमार आदि— क्या वहां उनके और स्थानीय लोगों के बीच संबंध नैसर्गिक है? सबसे महत्वपूर्ण— क्या जो देश घोषित रूप में इस्लामी है, क्या वहां मुस्लिमों का अल्पसंख्यकों के साथ-साथ अन्य मुसलमानों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध है?

हाल ही में पाकिस्तान स्थित सिंध के उमरकोट में आठ वर्षीय हिंदू बच्ची, जोकि भील समुदाय से है- उसका जिहादियों ने न केवल सामूहिक दुष्कर्म किया, साथ ही उस मासूम के चेहरे को खरोंच दिया, तो उसकी आंखें तक नोंच डाली। इससे पहले 20 अगस्त को वहां खैबर पख्तूनख्वा स्थित एक स्कूल में सिख अध्यापिका दीना कौर का स्थानीय जिहादियों ने अपहरण करके जबरन मतांतरण के बाद मुस्लिम से उसका निकाह करा दिया। दीना को बलात्कार के बाद स्थानीय प्रशासन के सहयोग से जबरन मतांतरण और निकाह के लिए बाध्य किया गया था। भारत सरकार ने इसपर अपनी गंभीर चिंता प्रकट की है। दीना कोई पहली युवती नहीं है, जो मजहबी यातना का शिकार हुई है। ऐसे मामलों की एक लंबी काली सूची है। इस मामले में बांग्लादेश का रिकॉर्ड भी दागदार है। गत 24 जुलाई को बांग्लादेश में हिंदू समाज पर मजहबी हमले, हिंदू शिक्षकों की हत्या और हिंदू महिलाओं के बलात्कार के विरोध में कई संगठनों ने देशव्यापी प्रदर्शन करते हुए चटगांव में एक मार्च निकाला था। यह कोई हालिया मजहबी उन्माद नहीं। विभाजन के समय पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) में हिंदुओं-सिखों की आबादी 15-16 प्रतिशत, तो पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में हिंदू-बौद्ध की संख्या 28-30 प्रतिशत थी। 75 वर्ष बाद इनकी संख्या क्रमश: डेढ़ प्रतिशत और नौ प्रतिशत भी नहीं रह गई है। इसके लिए कौन-सा दर्शन जिम्मेदार है?

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक ही नहीं, इस्लामी समाज से ‘निष्कासित’ अहमदी मुस्लिम समाज भी मजहबी यातना झेल रहा है। पिछले दिनों कट्टरपंथी मुसलमानों ने इस समुदाय के 16 कब्रों के साथ बेअदबी कर दी। दीन के नाम पर वैश्विक मुस्लिम समाज में शिया-सुन्नी के बीच हिंसक संघर्ष का सदियों पुराना इतिहास है। एक आंकड़े के अनुसार, सुन्नी मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में वर्ष 2000 से अगस्त 2022 तक 21,000 लोगों की आतंकवादी हमलों में मौत हो गई, जिसमें सुन्नी जिहादियों द्वारा लगभग 4,000 शिया मुसलमानों को निशाना बनाया गया। अफगानिस्तान में भी हजारा-शिया समुदाय की भी यही स्थिति है। यहां कालांतर में हिंदू-सिख-बौद्ध अनुयायियों के संहार के बाद अलग-अलग मुस्लिम संप्रदायों में संघर्ष बढ़ गया है। स्वयं को ‘सच्चा मुसलमान’ सिद्ध करने हेतु तालिबान और आई.एस.खुरासन जैसे जिहादी संगठनों का एक-दूसरे खून के प्यासा होना— इसका प्रमाण है।

बीते दिनों शिया बहुल इराक में बड़े शिया नेता मुक्तदा अल-सदर के राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा करने के बाद बगदाद सहित इराक के कई क्षेत्रों में हिंसा भड़क उठी, जिसमें दो आतंकवादी संगठनों ने एक-दूसरे पर गोलियों की बौछार कर दी। इसमें 30 की मौत हो गई। विश्व के अन्य शिया बाहुल्य ईरान में भी सब ठीक नहीं है, यहां महिलाएं हिजाब-बुर्के के खिलाफ आंदोलित है।

अभी भारत में क्या हो रहा है? गुजरात के बनासकांठा में एजाज शेख द्वारा हिंदू युवती को प्रेम जाल में फंसाकर उसका, उसके भाई और मां का मतांतरण कराने का मामला सामने आया है। इससे आहत होकर पीड़ित पिता ने आत्महत्या करने का प्रयास किया। राजधानी दिल्ली के संगम विहार में 25 अगस्त को प्रेमजाल में फंसाने में विफल अरमान अली ने नैना शर्मा को गोली मारकर घायल कर दिया। झारखंड के दुमका में 22-23 अगस्त की रात अपने घर पर सो रही 16 वर्षीय नाबालिग छात्रा अंकिता सिंह को उसके पड़ोसी शाहरुख हुसैन ने इसलिए आग लगाकर मार डाला, क्योंकि अंकिता ने इस्लामी मतांतरण से इनकार कर दिया था। यह सब ‘लव-जिहाद’ का परिणाम है, जिसमें प्रेम से अधिक मजहबी दायित्व की पूर्ति अधिक है।

झारखंड में ही पलामू स्थित मुरुमातु गांव में 29 अगस्त को महादलितों (मुसहर) पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हमला करके उनके घरों को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद उनके सामानों को दो वाहनों पर लादकर पास के जंगल में छोड़ दिया। मुस्लिम पक्ष का दावा है कि महादलितों ने मदरसे की जमीन पर कब्जा करके रखा था। यदि मुस्लिम हमलावरों के स्थान पर हिंदू समाज का कोई व्यक्ति होता, तो अबतक वाम-उदारवादी-जिहादी-सेकुलर-इंजीलवादी वर्ग विकृत विमर्श बनाकर हिंदू समाज को कलंकित कर चुके होते। इस घटना से पहले झारखंड के ही गढ़वा में स्थानीय मुस्लिम समाज ने स्कूल को प्रार्थना इसलिए बदलने पर विवश कर दिया, क्योंकि उनकी आबादी 75 प्रतिशत हो गई थी। वास्तव में, इसी मानसिकता ने पाकिस्तान के जन्म और घाटी में 1989-91 में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की पटकथा लिखी थी।

राजनीतिक-वैचारिक कारणों से कुछ लोग हिंदू-मुस्लिम संबंधों में बढ़ती खटास के लिए भाजपा-आरएसएस पर दोषारोपण कर सकते है, किंतु प्रश्न यह है कि वह कौन-सा मजहबी चिंतन, विचारधारा और मानसिकता है, जिसके कारण इस्लामी देशों में भी मुसलमान अन्य मुस्लिम के साथ शांति के साथ नहीं रह पा रहे है? सच तो यह है कि जो मानस मुस्लिम समाज के भीतर कटुता, घृणा और हिंसा को प्रेरित करता है, वही जीवनदर्शन भारत सदियों से और विश्व के कई देशों में सांप्रदायिक तनाव का कारण बना हुआ है।

लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं।
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