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क्या मोदी रंग में रंगेगी दुनिया

लॉकडाउन का चौथा चरण पूरी तरह नए रंग रूप और नए नियमों वाला होगा। राज्यों से मिल रहे सुझावों के आधार पर लॉकडाउन 4 के लिए गाइडलाइंस तैयार किए गए हैं। इसकी जानकारी 18 मई से पहले दी जाएगी।” पीएम मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान करते हुए कहा, ”नियमों का पालन करते हुए हम कोरोना से लड़ेंगे भी और आगे भी बढ़ेंगे।” पीएम मोदी ने कहा कि सतर्क रहते हुए ऐसी जंग के सभी नियमों का पालन करते हुए अब हमें बचना भी है और आगे बढ़ना भी है। आज जब दुनिया संकट में है तब हमें अपना संकल्प और मजबूत करना होगा। हमारा संकल्प इस संकट से भी विराट है।

उद्योगों को मोदी सरकार का बड़ा बूस्टर मिलने से कोरोना संकट से धवस्त हुई इकोनॉमी को पटरी पर लाने का प्रयास किया जाएगा इससे साफ है कि उद्योगों को खोलने के साथ साथ बाजार को खोला जा सकता है ।हालांकि इसमें अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होंगी ।कई सरकारी संस्थाएं खुलने की उम्मीद है ।जिसके चलते सड़क पर ऑटो रिक्शा निजी वाहन दौड़ाना स्वाभाविक है ।ये सब करने में जिला प्रशासन बाजार में ऑड ईवन नियम लागू कर सकता है ।यह दुकानों और वाहनों पर लागू होंगा।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपनाया गया लॉकडाउन का मूल मंत्र 2 गंज दूरी ,हैंड वाश और मास्क अनिवार्य रहेगा ।

हर बार लॉक डाउन के बढ़ते स्टेप में पूर्ववर्ती चरण में आई दुविधा परिस्थितियों से केंद्र सरकार ने सबक लेते हुए उसमें सुधार का प्रयास किया है ।लोगों को कम से कम परेशानी हो इसका ख्याल केंद्र सरकार निरंतर रख रही है ।

राज्यों से आए सुझावों के आधार पर केंद्रीय सरकार नए ढंग से नए रंग में नए नियम बनाकर कोरोना संक्रमण को नए तरीके से कम करेंगी। स्थानीय प्रशासन को अधिक जिम्मेदारी देकर विभिन्न राज्यो से अपने गांव आये मजदूरों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाएगा ।जिससे गांव में कोरोना ना फैल सकें । ।

मजबूरी में सड़क पर चल रही गरीबी और मजदूरी का ढिगरा सत्तर साल के सवेंदनशील लोग मोदी सरकार पर थोप रहे है ।मानवीय समाज के सम्माननीय सम्पन्न धन्नाड्य लोग जो सात दशकों से देश को लूट रहे थे ।और आज महामारी में समाज की सहायता करने की बजाय समस्याओं को तूल दे रहे है। सरकार को समस्याओं का समाधान करने में समर्थन की अपेक्षा समाज को सरकार के खिलाफ भटकाने में लगे हुए । कोरोना में अन्धविश्वास और सरकार की छवि खराब करने में कतई पीछे नहीं हट रहे । इनके अनुसार माने तो गरीबी मजदूरी मजबूरी छह साल पहले ही आई है ।इन्हें सत्ता के बैक फ्लैश में कौन ले जाये जिससे इन्हें हक़ीक़त का पता चले ।हाल फिलहाल महामारी आई है और सरकार का पहला कदम महामारी को मात देना है ।इनके सवालों का जवाब नहीं ।

लोकल से ग्लोबल तक आत्मनिर्भर भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह साल बाद भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नई पहल की शुरुआत की है । बास्तव में इसका आरंभ स्वदेशी आंदोलन से ही शुरू हो चुका था ।मोहनदास गांधी का खादी समय का चक्र इसकी नीव रही है ।गांधी जी हमेशा से ग्रामीण विकास और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बल देते थे।उनका मानना था कि हमारे देश की 70 प्रतिशत आबादी गांवो में रहती है ।इसलिए हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थायी व मजबूत बनाना चाहिए ।जिसके लिए हमें स्वदेशी बस्तुओं पर अधिक फोकस करना चाहिए ।लेकिन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जे एल नेहरू जी ने पंचवर्षीय योजनाओं से पश्चिमी विकास को देश में रफ्तार दी ।हालांकि आजादी के इस दौर में ऐसे ही विकास की जरूरत थी ।क्योंकि भले ही देश आजाद हो गया था लेकिन अभी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था अंग्रेजों के हाथों में सिमटी हुई थी।बस केवल हाथों का शरीर नेहरू जी का था । आजाद कुपोषण देश में गरीबी भुखमरी चरम सीमा पर थी । पंचवर्षीय योजनाओं से परिवर्तित करने का प्रयास किया गया ।लेकिन उसके बाद कि सरकारों ने समाज से सिर्फ वादे ,और वादे, और सिर्फ झूठे वादे किए। बाद कि सरकारों ने गांधी जी का उपयोग सिर्फ सत्ता हथियाने के लिए किया, उनकी विचारधारा पर चलने का कतई प्रयास नहीं किया ।मोदी नेतृत्व की सरकार इसका पालन करने जा रहीं है ।

वैश्वीकरण के दौर में देश की फिर आजादी जैसी हालात बनी ।बड़ी मुश्किल से पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की अर्थशास्त्री बुद्धिमता, दूरदर्शिता सोच से लड़खड़ातते भारत ने उदारीकरण निजीकरण ग्लोबलाइजेशन में अपने आपको विकासशील देशों की कैटेगरी में लाकर खड़ा किया ।

कोरोना महामारी में दुनियां संकटमय है । अर्थव्यवस्था ठप्प हो गई है ।जिससे कई देश की बुरी हालत बन गई है ।जिनका जीवन अन्य देश की सहायता राशि पर टिका हुआ है । स्वास्थ्य,
अर्थव्यवस्था ,रोजगार,भुखमरी, व्याप्त भ्रष्टाचार,शिक्षा विज्ञान की सूक्ष्मदर्शी दृष्टि से देखे तो भारत की भी यही स्थिति है । स्वदेश के दम पर सत्ता पर काबिज हुई मोदी सरकार पहले से ही यह अभियान चला रही थी ।सीमित व्यवस्था और पुराने संरचनात्मक ढांचे के चलते इस पर बार बार ब्रेक लग रहा था ।

जब से देश में कोरोना ने प्रवेश किया है तब से विकास की गहरी खाई दिन प्रतिदिन दिखाई दे रही है ।जो बिना सूक्ष्मदर्शी दूरदर्शी के दिख रही है ।यह उनको भी दिखाई दे रही है जो देख नहीं पाते , या जानबूझकर देखना नहीं चाहते है ।कुछ भक्त कंपनी के उस चश्में को हटाना ही नहीं चाहते जिससे कंपनी का चिल्लाता हुआ स्मार्ट डेवलपमेंट सड़क पर दिखे ।
कोरोना ने दुनियां को दिखा दिया कि विकास प्राकृतिक स्थायित्त्व समानता लिए हुए होना चाहिए ।अन्यथा छिटक विकास सिर्फ खाइयां पैदा करता है ।जो विपरीत परिस्थितियों महामारियों में सड़क पर टहलता है ।जो सबके लिए नुकसानदायक है । कोरोना संकटकाल में बेघर मजबूर मजदूर सड़क पर भूखा प्यासा बिलखता हुआ,कोसों दूर अपने घर की राह पकड़ा हुआ है ।

असल में यह राह कथित विकास पकड़ा हुआ था जिसने इतनी मजबूरियां पैदा कर दी कि गांधीजी का ग्रामीण विकास उठकर चलकर दौड़कर भागकर शहर आ गया ।जहां इसे ना शिक्षा,ना स्वास्थ्य ,ना शारीरिक,ना स्थायित्त्व विकास का ख्याल रहा ,यहां तो यह सिर्फ दो वक्त की रोटी पर सिमटा हुआ है।आज जब इसकी रोटी पर कोरोना का कब्जा हो गया है तब इसने गांव की ओर रुख किया है ।रोजगार की रोटी बेरुखी होकर सड़क और पटरी पर पड़ी हुई है।

आज फिर जरूरत आ पड़ी गांव के घर की रोटी की ।सरकार को गांधी जी के घर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देनी होगी । मैं अपने लेखों में बार बार इस बात को लिखता रहा हूँ कि सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अधिक फोकस करें ।बात अब इस बात की है क्या यह सब कह देने या संकल्प लेने से हो जाएगा ।जबकि पहले से ही हम आर्थिक संकट से जूझ रहे थे । महामारी ने यह सवाल पैदा कर दिया है कि अब किस तरह का विकास होना चाहिए ।

गांधी जी के घर में नेहरू जी की योजनाओं की प्लांनिग के साथ डॉ बी आर आंबेडकर की अद्वितीय श्रेष्ठ अर्थव्यवस्था अपनानी होंगी ।जो विकेंद्रीकरण के साथ साथ सामाजिक आर्थिक राजनीतिक सांस्कृतिक आधार युक्त है।जो कार्ल मार्क्स की आर्थिक नीतियों से भी श्रेष्ठ है ।

आनंद जोनवार
मुरैना
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