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मीना कुमारी की मौत के साथ ही बेनकाब हुए फिल्मी दुनिया के नामी चेहरे

मीना कुमारी अगर आज जिंदा होती तो वो अपनी 85वाँ जन्म दिन मना रही होती। मीना कु्मारी की 85वीं जयंती के मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर ‘पाकीजा’ की अभिनेत्री को याद किया है. मीना कुमारी को भले ही लाखों दर्शकों का प्यार मिला. लेकिन उनकी असल जिंदगी काफी दर्दभरी रही. विनोद मेहता की मीना कुमारी की जिंदगी पर आधारित किताब ‘मीना कुमारी: द क्लासिक बायोग्राफी’ में इसका जिक्र है. मीना कुमारी की नानी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के छोटे भाई की बेटी थी, जो जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही प्यारेलाल नामक युवक के साथ भाग गई थीं। विधवा हो जाने पर उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। दो बेटे और एक बेटी को लेकर बम्बई आ गईं। नाचने-गाने की कला में माहिर थीं इसलिए बेटी प्रभावती के साथ पारसी थिएटर में भरती हो गईं। प्रभावती की मुलाकात थियेटर के हारमोनियम वादक मास्टर अली बख्श से हुई। उन्होंने प्रभावती से निकाह कर उसे इकबाल बानो बना दिया। अली बख्श से इकबाल को तीन संतान हुईं। खुर्शीद, महज़बी (मीना कुमारी) और तीसरी महलका (माधुरी)। मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त 1932 को हुआ था. अली बख्श रंगीन मिजाज के व्यक्ति थे। घर की नौकरानी से नजरें चार हुईं और खुले आम रोमांस चलने लगा। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। महजबीं को मात्र चार साल की उम्र में फिल्मकार विजय भट्ट के सामने खड़ा कर दिया गया। इस तरह बीस फिल्में महजबीं (मीना) ने बाल कलाकार के रूप में न चाहते हुए भी की। महज़बीं को अपने पिता से नफरत सी हो गई और पुरुष का स्वार्थी चेहरा उसके जेहन में दर्ज हो गया।

सबसे दुःखद, शर्मनाक और फिल्मी दुनिया की नंगी सच्चाई को सामने लाने वाला किस्सा है मीना कुमारी की मौत का। 40 फिल्मों में काम करने वाली सुपर स्टार जब अपनी सफलता के चरम पर थी तो पूरी फिल्मी दुनिया के लोग उनके साथ अपने रिश्तों की शेखी बघारते थे, लेकिन जब अस्पताल में ही उनकी मौत हो गयी तो ईलाज के लिए कोई एक पैसा नहीं दे सका। उन्हें लीवर सिरोसिस था। फिल्म पाकिजा के रिलीज होने के तीन हफ्ते बाद मीना कुमारी की तबीयत बिगड़ने लगी। 28 मार्च 1972 को उन्हें बम्बई के सेंट एलिजाबेथ अस्पताल में दाखिल करवाया गया। 31 मार्च 1972, गुड फ्राइडे वाले दिन दोपहर 3 बजकर 25 मिनट पर महज 38 वर्ष की आयु में मीना कुमारी ने अंतिम सांस ली। उनके ईलाज पर का खर्च अस्पताल ने ही उठाया। मौत के बाद मीना कुमारी के पति कमाल अमरोही ने अस्पताल में कहा कि मैंने तो उन्हें तलाक दे दिया था उसने सौतेले पुत्र ताजदार अमरोही ने कहा की मेरा उनसे कोई वास्ता नहीं है। … उनके छोटी बहन के पति मशहूर कामेडियन महमूद ने कहा की मै पैसे कहाँ से लाकर दूँ ? जिस धर्मेन्द्र को फगवाडा से मुंबई बुलाकर मीना कुमारी ने कई फिल्मों में काम दिलाया और स्टार बनाया उस धर्मेंद्र ने भी बिल के पेमेंट के नाम से अपना पल्ला झाड़ लिया। फिर जिस सम्पूरन सिंह कालरा उर्फ गुलज़ार को मीना कुमारी ने “गुलज़ार” बनाया जब उनके पास बिल की बात गई तो गुलज़ार ने कहा कि भाई मै तो कवि हूँ और कवि के पास इतना पैसा कहाँ …जबकि उन्हीं गुलज़ार ने एक मुशायरे में जिसमे मीना कुमारी भी मौजूद थी, उनके सम्मान में ये ग़ज़ल सुनाई थी-

“ये तेरा अक्स है तो पड़ रहा है मेरे चेहरे पर, वरना अंधेरों में कौन पहचानता मुझे “

जब अस्पताल वालों ने कहा कि अब हमे मीना कुमारी जी की लाश को लावारिस घोषित करके बीएमसी को देना पड़ेगा … आखिरकार मीना कुमारी का ईलाज कर रहे डॉक्टर ने ही बिल का भुगतान कर मीना कुमारी के अंतिम संस्कार की व्यवस्था भी की। मीना कुमारी को मुंबई के नारियलवाड़ी, मझगाँव के रहेमताबाद कब्रिस्तान में दफनाया गया।

अपने 30 साल के पूरे फिल्मी सफर में मीना कुमारी ने 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. उनकी फिल्मों को आज क्लासिक की श्रेणी में रखा जाता है और कई फिल्मों को तो आज भी उनके प्रशंसक श्रद्धाभाव से देखते हैं. मीना कुमारी को दुखियारी महिला के किरदार काफी करने को मिले, उन्हें फिल्मों में रोते हुए देखकर उनके प्रशंसकों की आंखों में भी आंसू निकल आते थे. शायद यही कारण था कि मीना कुमारी को हिन्दी सिनेमा जगत की ‘ट्रेजडी क्वीन’ के नाम से पहचाना जाने लगा.

उनकी वसीयत के मुताबिक प्रसिद्ध फ़िल्मकार और लेखक गुलज़ार को मीनाकुमारी की २५ निजी डायरियां प्राप्त हुईं। उन्हीं में लिखी नज़्मों, ग़ज़लों और शे’रों के आधार पर गुलज़ार ने मीनाकुमारी की शायरी का यह एकमात्र प्रामाणित संकलन तैयार किया है।

मीना कुमारी उर्दू में बेहतरीन शायरी लिखती थी। उनकी व्यक्तिगत जिंदगी में भी दुख कम नहीं थे और जन्म से लेकर मृत्यु तक उन्होंने हर पल गमों का सामना किया. इसलिए उनपर ‘ट्रेजडी क्वीन’ का यह टैग बिल्कुल सही भी लगता था. उनके दुखों को उनकी ये पंक्तियां बखूबी बयां करती हैं…

मीना कुमारी की रोमांटिक शायरी, लिखा-

आगाज तो होता है अंजाम नहीं होता, जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता

‘तुम क्या करोगे सुनकर मुझसे मेरी कहानी,
बे लुत्फ जिंदगी के किस्से हैं फीके-फीके’

साल 1962 में रिलीज हुई उनकी फिल्म ‘साहिब बीवी और गुलाम’ में निभाए ‘छोटी बहू’ के किरदार की ही तरह मीना कुमारी ने असली जीवन में भी काफी ज्यादा शराब पीना शुरू कर दिया था. असफल शादीशुदा रिश्ता और पिता से भी खराब रिश्तों के कारण वो काफी ज्यादा शराब पीने लगीं और इससे उनकी सेहत लगातार बिगड़ती चली गई. अंतत: 31 मार्च 1972 को लीवर सिरोसिस के कारण उनकी मौत हो गई.

मीना कुमारी की शुरुआती जिंदगी
मीना कुमारी अपने माता-पिता इकबाल बेगम और अली बक्श की तीसरी बेटी थीं. इरशाद और मधु नाम की उनकी दो बड़ी बहनें भी थीं. कहा जाता है कि जब मीना कुमारी का जन्म हुआ उस समय उनके पिता के पास डॉक्टर की फीस चुकाने के लिए भी पैसे नहीं थे. इसलिए माता-पिता ने निर्णय किया की नन्हीं बच्ची को किसी मुस्लिम अनाथालय के बाहर छोड़ दिया जाए, उन्होंने ऐसा किया भी, लेकिन बाद में मन नहीं माना तो मासूम बच्ची को कुछ ही घंटे बाद फिर से उठा लिया.

मीना कुमारी के पिता एक पारसी थिएटर में हार्मोनियम बजाते थे, म्यूजिक सिखाते थे और उर्दू शायरी भी लिखा करते थे. पिता अली बक्श ने ‘ईद का चांद’ जैसी कुछ छोटे बजट की फिल्मों में एक्टिंग की और ‘शाही लुटेरे’ जैसी फिल्मों में संगीत भी दिया. मीना कुमारी की मां उनके पिता की दूसरी बीवी थीं और वे स्टेज डांसर थीं.

कहा जाता है कि मीना कुमारी स्कूल जाना चाहती थी, लेकिन उनके पिता ने उन्हें बचपन से ही फिल्मी दुनिया में धकेल दिया. कहा जाता है कि छोटी उम्र उन्होंने अपने पिता से कहा, ‘मैं फिल्मों में काम नहीं करना चाहती, मैं स्कूल जाना चाहती हूं और दूसरे बच्चों की तरह ही सीखना चाहती हूं.’ लेकिन उन्हें 7 साल की मासूम उम्र में ही फिल्मों में काम करना पड़ा और उसी दौरान वो महजबीन से बेबी मीना बन गईं. मीना कुमारी की पहली फिल्म ‘फरजंद-ए-वतन’ नाम से 1939 में रिलीज हुई. बड़ी होने के बाद उनकी पहली फिल्म जिसमें उन्होंने मीना कुमारी के नाम से एक्टिंग की वो थी 1949 में रिलीज हुए फिल्म ‘वीर घटोत्कच’.

1952 में रिलीज हुई फिल्म ‘बैजू बावरा’ से मीना कुमारी को हीरोइन के रूप में पहचान मिली. इसके बाद 1953 में ‘परिणीता’, 1955 में ‘आजाद’, 1956 में ‘एक ही रास्ता’, 1957 में ‘मिस मैरी’, 1957 में ‘शारदा’, 1960 में ‘कोहिनूर’ और 1960 में ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ से पहचान मिली.

1962 में रिलीज हुई फिल्म ‘साहेब बीवी और गुलाम’ में छोटी बहू की भूमिका के लिए उन्हें खूब पहचान मिली. इस साल उन्होंने इतिहास रचा और फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस के अवॉर्ड के लिए तीनों नॉमिनेशन (फिल्म ‘आरती’, ‘मैं चुप रहूंगी’ व ‘साहेब बीवी और गुलाम’) मीना कुमारी के ही थे. छोटी बहू की भूमिका के लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस चुना गया.

‘दिल एक मंदिर’ (1963), ‘काजल’ (1965), ‘फूल और पत्थर’ (1966) भी उनकी चुनिंदा सफल फिल्मों में से हैं. 1964 में पति कमाल अमरोही से तलाक के बाद उनकी शराब की लत और भी बढ़ गई. शराब के कारण 1968 में मीना कुमारी बहुत ज्यादा बीमार हो गईं और उन्हें इलाज के लिए लंदन व स्विटजरलैंड ले जाना पड़ा. बाद में ठीक होकर आने पर उन्होंने कैरेक्टर रोल करने लगीं.

कमाल अमरोही मीना कुमारी से २७ साल बड़े थे | मीना कुमारी का पूना में एक्सीडेंट हुआ और वो अस्पताल में भर्ती थी. कमाल अमरोही जब पहली बार उन्हें अस्पताल में देखने पहुंचे तो मीना कुमारी की छोटी बहन ने उन्हें बताया कि आपा तो मौसम्बी का जूस नहीं पी रही हैं. लेकिन कमाल अमरोही के सामने मीना कुमारी ने झटके से जूस पी लिया. इसके बाद मीना कुमारी को देखने के लिए कमाल अमरोही सप्ताह के एक दिन मुंबई से पूना आने लगे. कुछ ही दिनों में लगने लगा कि एक दिन की मुलाकात में दिल की बात नहीं हो पा रही है, तो फिर दोनों ने रोजाना एक दूसरे को खत लिखने का फ़ैसला लिया.

इनका निकाह 14 फरवरी, 1952 को हुआ. मजे की बात ये की कमाल अमरोही की पहले से ही दो बेगमे थी ..एक उनके साथ मुंबई में और दूसरी उनके शहर यूपी के अमरोहा में रहती थी .और कमाल के आठ बच्चे थे | मीना कुमारी मुंबई की जिन्दगी से तंग आ गयी थी और कमाल अमरोही से बार बार कहती थी की कमाल तुम मुझे अपने गाँव अमरोहा ले चलो .मै वही रहना चाहती हूँ .. एक बार कमाल उन्हें साथ लेकर गये तो कमाल के घर वालो ने मीना कुमारी से बहुत दुर्व्यवहार किया और कहा कमाल तुमने तो किसी वेश्या से निकाह किया है |

मीना कुमारी हमेशा कमाल अमरोही को चंदन के नाम से पुकारा करती थीं, जबकि कमाल अमरोही, मीना कुमारी को मंजू कह कर बुलाते थे.

शादी के बाद अमरोही ने मीना कुमार को एक्टिंग करने की इजाजत तो दी, लेकिन उनके आगे कई शर्ते भी रखीं. कहा जाता है कि अमरोही उनपर बेहद शक किया करते थे, इसी वजह से दोनों के रिश्तों में खटास आईं और कुछ सालों में ही मीना कुमारी की जिंदगी उजड़ गई. फिल्मों में कामयाब, मीना कुमारी की असल जिंदगी कष्टों से भरी थी. 1964 में कमाल अमरोही से अलग होने के बाद वह शराब के नशे में डूब गईं.

जब 1964 में कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को तलाक दिया, तब मीना कुमारी ने अपना दर्द कुछ यूँ व्यक्त किया था

‘‘तलाक तो दे रहे हो नजर ए कहर के साथ, जवानी भी मिरी लौटा दो मेरे मेहर के साथ.’’

बाद में उनका कमाल अमरोही से तलाक हो गया। फिर उन्होने कमाल से दुबारा निकाह किया । हलाला प्यरथा के कारण कोई पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देता है तो वो दुबारा उस महिला से निकाह नही कर सकता। पहले उस महिला को किसी अन्य पुरुष से निकाह करना होता है। फिर वो पुरुष उसे तलाक देगा फिर वो महिला अपने पूर्व पति से दुबारा निकाह कर सकती है।

इस वजह से मीना कुमारी ने जीनत अमान के पिता के साथ निकाह किया फिर उनसे तलाक लेकर कमाल अमरोही से दुबारा निकाह किया ।

मीना कुमारी के पूर्व पति कमाल अमरोही की फिल्म ‘पाकीजा’ को बनकर रिलीज होने में 14 साल का लंबा वक्त लग गया. पहली बार फिल्म के बारे में 1958 में प्लानिंग की गई और 1964 में फिल्म का निर्माण शुरू हुआ, लेकिन 1964 में ही दोनों के तलाक के कारण आधी से ज्यादा बन चुकी फिल्म रुक कई. 1969 में सुनील दत्त और नर्गिस ने फिल्म के कुछ दृश्य देखे और उन्होंने कमाल अमरोही व मीना कुमारी को फिल्म पूरा करने के लिए मनाया.

आखिरकार ‘पाकीजा’ फरवरी 1972 में रिलीज हुई और बॉक्स ऑफिस पर इसे दर्शकों का प्यार नहीं मिला, लेकिन 31 मार्च 1972 को मीना कुमारी की अचानक मौत के बाद फिल्म ने रफ्तार पकड़ी और ये सुपरहिट साबित हुई. फिल्मों में काम करने के बावजूद मीना कुमारी का फिल्मों से रिश्ता हमेशा लव-हेट का रहा. अभिनेत्री के साथ ही वो एक अच्छी उर्दू शायरा भी थीं. उन्होंने अपनी शायरी की ‘आई राइट, आई रिसाइट’ नाम से ख्याम के साथ रिकॉर्ड भी कीं.

शादी के बाद कमाल अमरोही ने शर्त रखी थी कि शूटिंग के दौरान मीना कुमारी के मेकअप रूम में मेकअप आर्टिस्ट के अलावा कोई नहीं जाएगी और वह शाम 6:30 बजे तक शूटिंग खत्म कर सीधे घर लौटेंगी. मीना कुमारी ने यह शर्त मान ली. लेकिन धीरे-धीरे वह अंदर से टूटती चली गईं.

कमाल अमरोही भी विवाह के पश्चात मीना को एक खुशहाल जीवन ना दे सके। विवाह से जुड़े मीना के सुनहरे सपने टूटने लगे। उसी दौरान उनकी जिंदगी में एक पंजाबी गबरू की एंट्री हुई। आज के ही-मैन कहलाने वाले वे गबरू थे धर्मेंद्र। फिल्म फूल और पत्थर (1966) में दोनों ने साथ में पहली बार काम किया।

‘साहिब बीवी और गुलाम’ के निर्देशन अबरार अल्वी के मुताबिक, अमरोही का असिस्टेंट बाकर अली, मीना कुमारी की जासूसी करता था. मीना कुमारी के मेकअप के दौरान बाकर अली उनके मेकअप रूम में मौजूद रहता था. 5 मार्च, 1964 को फिल्म ‘पिंजरे के पंछी’ के मुहुर्त के दौरान जब मीना कुमारी ने गुलजार को अपने मेकअप रूम में आने की इजाजत दी थी. तब कथित तौर पर बाकर अली ने
एक्ट्रेस को थप्पड़ जड़ दिया था.

कहा जाता है कि सोहरब मोदी ने मीना कुमारी और कमाल अमरोही को एक पार्टी में महाराष्ट्र के गवर्नर से यह कहकर परिचय दिया था कि, “यह बेहतरीन अदाकारा मीना कुमारी हैं और ये उनके पति कमाल अमरोही हैं.” सोहरब मोदी की बात बीच में काटते हुए तुरंत अमरोही बोल पड़े, “नहीं, मैं कमाल अमरोही हूं और ये मेरी पत्नी और शानदार एक्ट्रेस मीना कुमारी हैं.” ऐसा कहने के कुछ ही देर बाद अमरोही पार्टी में मीना क
ुमारी को अकेले छोड़कर निकल पड़े.

मीना कुमारी को अनिद्रा की बीमारी थी और वह नींद की दवाइयां लिया करती थीं. 1963 में उनके डॉक्टर ने उन्हें नींद के लिए ब्रांडी का एक छोटा पैग पीने की सलाह दी. यहीं से उन्हें नशे की लत लगी और शराब उनकी मौत का कारण बना. 1964 में पति अमरोही से अलग होने के बाद मीना कुमारी को शराब के नशे में खो गई. गम भूलाने के लिए वह शराब के नशे में डूबी रहती थीं. महज 38 साल की उम्र 28 मार्च, 1972 को उन्होंने दुनिया से अलविदा कह दिया. मीना कुमारी अपने प्रसंशकों को छोड़कर चली गईं और फैन्स बस इतना कह पाए… न जाओ सैंया छुड़ा के बइयां कसम तुम्हारी मैं रो पडूंगी…

मीना कुमारी की पूरी जिंदगी भले ही एक खुली किताब की तरह थी लेकिन वह अकेले में अंदर ही अंदर अपने गमों में घुटा करती थी। इसी घुटन में उन्होंने लिखा था

चांद तन्हा है आसमां तन्हा, दिल मिला है कहां-कहां तन्हा,
राह देखा करेगा सदियों तक, छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा’

यही नहीं, वे छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर पर्स में रखने लगी थीं। जब मौका मिलता एक शीशी गटक लेतीं। मीना की शराब छुड़ाने के लिए अशोक कुमार ने उनको होमियोपैथी की छोटी गोलियां खाने को दीं, लेकिन मीना ने कहा, ‘दवा खाकर भी जिऊंगी नहीं, यह जानती हूं मैं। इसलिए कुछ तंबाकू खा लेने दो। शराब के कुछ घूंट गले के नीचे उतर जाने दो’, यह सुनकर दादामुनि बहुत दुखी हुए थे।

बैजू बावरा में उनके नायक भारत भूषण ने भी उनसे प्रेम का इजहार किया था। पाकीजा में उनके प्रेमी बने राजकुमार को उनसे ऐसा इश्क हो गया था कि वे मीना के सामने अपने संवाद भूल जाते थे। लेकिन, मीना तो प्यार करतीं थीं कमाल अमरोही से, तभी तो उन्होंने शादीश
ुदा अमरोही की दूसरी बीवी बनना भी कबूल कर लिया था।

फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने के लिए प्रयास कर रहे धर्मेंद्र को मीना जैसी स्थापित अभिनेत्री का सहारा मिला। मीना की सिफारिश पर धर्मेंद्र को कई फिल्मों में काम मिला। फिल्मों में साथ अभिनय करते-करते दोनों नजदीक आ गए। लेकिन विडंबना यह थी कि उस समय दोनों ही शादीशुदा थे। उनके रोमांस की खबरें सब और फैल चुकी थीं।

एक बार मीना जब दिल्ली में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन से एक कार्यक्रम में मिलीं तो राष्ट्रपति ने पहला सवाल पूछ लिया कि तुम्हारा बॉयफ्रेंड धर्मेंद्र कैसा है? इसी तरह फिल्मकार मेहबूब खान ने महाराष्ट्र के गर्वनर से कमाल अमरोही का परिचय यह कहकर दिया कि ये प्रसिद्ध स्टार मीना कुमारी के पति हैं। अमरोही यह सुन आग बबूला हो गए थे। धर्मेंद्र और मीना के चर्चे भी उन तक पहुंच गए थे। उन्होंने पहला बदला धर्मेंद्र से यह लिया कि उन्हें पाकीजा से आउट कर दिया। उनके स्थान पर राजकुमार की एंट्री हो गई। कहा तो यहां तक जाता है कि अपनी फिल्म रजिया सुल्तान में उन्होंने धर्मेंद्र को रजिया के हब्शी गुलाम प्रेमी का रोल देकर मुंह काला कर दिया था।

मीना कुमारी ने ऐसे तो कई ऐसी ग़जलें लिखी हैं जो उनकी तन्हा जिंदगी का अक्स सामने लाती है, उनकी ऐसी ही एक ग़ज़ल पेश है।

आबला-पा कोई इस दश्त में आया होगा

वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा

ज़र्रे ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँवारे सज्दे

एक इक बुत को ख़ुदा उस ने बनाया होगा

प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी

रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा

मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर

अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा

ख़ून के छींटे कहीं पूछ न लें राहों से

किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा