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ज़ी सोनी का विलय दूरदृष्टिपूर्ण रणनीतिक कदम

रूस ने इस हफ्ते यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया है। इस मामले में राजनीतिक और नस्लीय आधार पर यूएस बंटा हुआ नजर आ रहा है। चीन में भी इस मुद्दे पर विरोधाभास नजर आ रहा है। इसके पक्ष-विपक्ष में बयानबाजी भी दिनोंदिन तीखी होती जा रही है। इन युद्धों से पहले सूचना युद्ध (information wars) शुरू हो जाते हैं जो वास्तविक युद्धों को आगे बढ़ाने का काम करते हैं। फेक न्यूज के निरंतर बढ़ते प्रभाव ने हमारी सांस्कृतिक और वैचारिक स्थिति को कठोर बना दिया है।

भारत ने जिस तरह से चतुराई से रूस और यूक्रेन को लेकर संयुक्त राष्ट्र के वोट पर संतुलन का दांव खेला है, यह स्थिति हमारे देश के संकल्प और कूटनीतिक निपुणता की परीक्षा लेगी। आखिरकार हमें रूस के साथ अपने पारंपरिक गहरे संबंधों के अतिरिक्त दुनिया के अन्य बड़े लोकतंत्र, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंधों को भी संतुलित करना होगा।

भारत ने लंबे समय तक गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत की शपथ ली है। क्या अब उन सिद्धांतों के आधार पर एक नई मिसाल बनाने का समय है? क्या यह हमारे उस संतुलन को सपोर्ट करता है और उसे आगे बढ़ाता है?

टेक्नोलॉजी के तेजी से विस्तार की दिशा में भारत भी शामिल है। जीवन और बिजनेस के प्रत्येक क्षेत्र में डिजिटल को अपनाने को लेकर यह पूरी दुनिया के साथ मिलकर चल रहा है और कई मामलों में तो यह उनसे भी आगे है। आइए, कुछ रोचक आंकड़ों पर नजर डालते हैं।

– यूएस का रिटेल मार्केट जो दुनिया में सबसे बड़ा है, जिसमें 20 साल के अनवरत प्रयास के बाद फरवरी 2020 तक ई-कॉमर्स का प्रतिशत 16 प्रतिशत रहा। इसके बाद सिर्फ दो साल में यह तेजी से बढ़कर 26 से 30 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसे कहते हैं तेजी!

– यदि भारत को भी देखें तो यहां 10 मिलियन रिटेल इन्वेस्टर्स थे, जो ‘जेरोधा’ (Zerodha) जैसे नए जमाने के ऐप्स की वजह से पिछले कुछ वर्षों में बढ़कर 25 मिलियन से ज्यादा हो गए हैं। इन इन्वेस्टर्स की वजह से टेक्नोलॉजी आईपीओ (Tech IPOs) में भी काफी सफलता (कम से कम लिस्टिंग में) देखने को मिली है।

– महामारी के बाद दुनिया के किसी भी अन्य देश के मुकाबले भारत ने तेजी से रिकवरी की है और मुझे पूरा विश्वास है कि हम यह दशक खत्म होने से पहले पांच ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य पर पहुंच जाएंगे।

मीडिया और एंटरटेनमेंट सेक्टर क्रिएटिव इकनॉमी यानी रचनात्मक अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। महामारी के बाद हमारे प्रोफेशनल और निजी जीवन में आए हुए बदलावों का यदि तीन शब्दों में वर्णन किया जाए तो वे होंगे- संपर्क रहित (Contactless), सहयोग (Collaboration) और संवेदना (Compassion)। भारत ने इस ‘तीन सी’ (3C) वाली अर्थव्यवस्था को पूरे दिल से अपनाया है और इस नए प्रतिमान द्वारा हम नया समेकन (consolidation) देख रहे हैं।

मेरे विचार से ‘जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेस लिमिटेड’ (ZEEL) और ‘सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया’ (SPNI) के बीच मर्जर इस ‘तीन सी’ (3C) वाली अर्थव्यवस्था की दिशा में उठाए गए कदम का ही हिस्सा है।

‘जी’ और ‘सोनी’ के बीच मर्जर सभी तरीके से एक स्वागत योग्य कदम है। ‘जी’ एक स्वदेशी भारतीय कंपनी है और ग्लोबल दिग्गज के साथ इसका विलय इंडस्ट्री के लिए शुभ संकेत है, क्योंकि यह इस सेक्टर में निवेश बढ़ाने के साथ-साथ एकीकरण (consolidation) और विकास को बढ़ावा देगा।

मुझे उम्मीद है कि इस मर्जर को सभी हितधारकों (stakeholders), नीति निर्माताओं (policy makers) और नियामक संस्थाओं (regulators) की ओर से अप्रूवल मिल जाएगा। इसके साथ ही सभी कानूनी चुनौतियों का सामना भी किया जाएगा। यदि हमें मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को आगे बढ़ाना है, तो यह जरूरी है। मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के लिए एक जीवंत और विकासोन्मुखी भविष्य का मार्ग प्रशस्त करने के लिए हमें कानूनी, नीति और नियामक ढांचे में एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

यहां शामिल एक अन्य परिप्रेक्ष्य को लेकर भी मेरा दृष्टिकोण स्पष्ट है। मेरा मानना है कि वित्तीय निवेशकों (Financial Investors) को अचानक से रणनीतिक साझेदारों (Strategic Partners) की कमान नहीं संभालनी चाहिए। यदि वे सभी हितधारकों के लिए वैल्यू को देखना चाहते हैं तो उन्हें उचित जांच, संतुलन और शासन नियंत्रण स्थापित करते हुए कंपनी के प्रबंधन और बोर्ड पर भरोसा करना जारी रखना चाहिए। यह विशेष रूप से उस समय काफी महत्वपूर्ण है, यदि प्रबंधन हमेशा शानदार रिटर्न दे रहा है।

स्ट्रैटेजिक सपोर्ट यानी रणनीतिक समर्थन और इनपुट निश्चित रूप से प्रबंधन के लिए एक सहायता के रूप में काम करेंगे, लेकिन अल्पकालिक संतुष्टि के लिए इसमें अनावश्यक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि आईपीएल के मीडिया अधिकारों की बोली लगाई जानी है। पहले ये ‘सोनी’ के पास थे, लेकिन अब ‘स्टार’ (डिज्नी इंडिया) के पास हैं। ऐसे में एक निष्पक्ष, प्रतिस्पर्धी और आकर्षक फील्ड तैयार करने के लिए इंडस्ट्री के तमाम प्लेयर्स को बड़े निवेश की आवश्यकता होगी। मेरे विचार से जी-सोनी मिलकर अन्य प्लेयर्स को चुनौती देने के लिए बेहतर स्थिति में होंगे।

इस मर्जर के बाद बनने वाली संयुक्त इकाई रोजगार सृजन के अपार अवसर पैदा करने में सक्षम होगी। वह पूरे रचनात्मक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए परिवर्तनकारी हो सकती है, जो विज्ञापनदाता को और ज्यादा प्रेरित करेगी व विज्ञापन खर्च को बढ़ावा देगी।

मीडिया व एंटरटेनमेंट सेक्टर में एकीकरण (consolidation) के लिए भारत सबसे मुफीद मार्केट है। गूगल और फेसबुक का भारत में बड़े पैमाने पर विस्तार हो रहा है, इसलिए हमें इनका मुकाबला करने के लिए बड़े प्लेयर्स की जरूरत है। अन्यथा डिजिटल एडवर्टाइजिंग एक तरह से दो घोड़ों की रेस बनकर रह जाएगी, जिसमें अच्छी वित्तीय स्थिति वाला शायद आगे निकल सकता है। ऐसे में इस मार्केट को जीवंत (Vibrant) और प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए हमें अन्य बड़े प्लेयर्स के साथ एक मजबूत संतुलन की जरूरत है।

यदि हम भारत के व्यापार जगत को देखें तो ‘अमूल’, ‘टाटा’, ‘बजाज’ और यहां तक कि ‘जी’ जैसी घरेलू कंपनियां देश के विकास का पर्याय रही हैं और हमें यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास करने चाहिए कि वे अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ाने और इसमें अपना योगदान देना जारी रखें।

परिवारों द्वारा संचालित कंपनियां शेयरधारक मूल्य (shareholder value) प्रदान करती हैं। अनुभवजन्य शोध से पता चला है कि पारिवारिक कंपनियों ने भी शानदार रिटर्न दिया है। मुझे पूरा यकीन है कि ‘जी’ के पुनीत गोयनका के साथ जी-सोनी का मर्जर सभी हितधारकों के लिए और भी अधिक मूल्य (value) बनाएगा। यह मर्जर परिवार संचालित कंपनियों को विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए भारत के जीवंत और तेजी से बढ़ते कारोबारी माहौल की मुख्य कड़ी (anchor) के रूप में सशक्त बनाएगा।

‘जी‘ जैसी भारतीय घरेलू दिग्गज कंपनियों ने भी पिछले तीन दशकों में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक सरोकारों की दिशा में अमूल्य योगदान दिया है और देश की तरक्की में भी अपनी अहम भूमिका निभाई है, फिर चाहे वह रोजगार सृजन हो या महामारी के दौरान तमाम तरीकों से राष्ट्र को समर्थन देने का काम हो।

अगर हम भारतीय मीडिया और एंटरटेनमेंट सेक्टर को करीब से देखें तो जी और सोनी के अलावा केवल दो बड़े प्लेयर्स हैं-

– ‘डिज्नी’ द्वारा समर्थित स्टार/डिज्नी जिसने दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाया है और इसके लिए काफी पूंजी लगाई है।

– हमारे पास ‘वायकॉम’ भी है जहां मुकेश अंबानी जल्द ही रूपर्ट मर्डोक के बेटे जेम्स मर्डोक के साथ उनके पूर्व सीईओ और अब बिजनेस पार्टनर उदय शंकर का स्वागत करेंगे।

खबर है कि ‘स्टार’ (Star) व ‘डिज्नी इंडिया’ (Disney India) के पूर्व चेयरमैन उदय शंकर और रूपर्ट मर्डोक के बेटे व मीडिया दिग्गज जेम्स मर्डोक (James Murdoch) ‘वायकॉम18’ (Viacom18) में करीब 40 प्रतिशत हिस्सेदारी (stake) खरीदने की योजना बना रहे हैं।

इस सेक्टर में प्लेयिंग फील्ड को लेवल में लाने और लोकतांत्रिक बनाने के लिए कम से कम एक तीसरे बड़े प्लेयर की जरूरत है। तीन बड़े प्लेयर भारतीय मीडिया और एंटरटेनमेंट सेक्टर के लिए शुभ संकेत होंगे।

एक तरह वर्ष 2022 में जहां गौतम अडानी का मीडिया में प्रवेश हो सकता है, वहीं संजीव गोयनका भी लंबे समय से मीडिया और एंटरटेनमेंट के लिए उत्सुक रहे हैं और अपने पोर्टफोलियो को बढ़ाने के इच्छुक हैं। ऐसा होने पर भी हमें ‘जी’ की विरासत को संरक्षित करने और ‘सोनी’ के साथ इस विलय के माध्यम से ‘जी’ के नेतृत्व वाली एक मजबूत इकाई बनाकर इसे और मजबूती देने की आवश्यकता है।

मेरे विचार से जब तक और अधिक बड़े भारतीय बिजनेस घराने निवेश नहीं करते और इस क्षेत्र में बड़ी भूमिकाएं नहीं निभाते, तब तक बड़ी संस्थाओं (Larger Entities) को तैयार करने और एकीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना होगा, जो अच्छी तरह से प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं और इस क्षेत्र में विकास को जारी रख सकती हैं।

(लेखक ‘बिजनेसवर्ल्ड’ समूह के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह के फाउंडर व एडिटर-इन-चीफ हैं।)

साभार- https://www.samachar4media.com/ से