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तुलसीमय था मानस के राजहंस डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र जी का जीवन – डॉ.चंद्रकुमार जैन

राजनांदगांव। ऐतिहासिक शोध के आधार पर तुलसी दर्शन के यशस्वी सृजेता डॉ. बलदेवप्रसाद मिश्र हिन्दी साहित्य की नहीं भारतीय मनीषा के प्रतिष्ठापक और उन्नायक हैं। शहर की साहित्य त्रयी की कीर्ति का पूरे देश में निरंतर प्रसार कर रहे दिग्विजय कालेज के प्रोफ़ेसर डॉ.चंद्रकुमार जैन ने उनकी जयन्ती पर कहा कि जिस प्रकार तुलसी का जीवन राममय था, उसी तरह डॉ.मिश्र अपने जीवन और कर्म में तुलसीमय थे। छत्तीसगढ़ महतारी की पुण्य भूमि राजनांदगांव और रायगढ़ उनके जन्म और कर्म क्षेत्र के रूप में साझा सम्मान के अधिकारी बने।

डॉ.जैन ने बताया कि डॉ. मिश्र के प्रशासनिक व्यक्तित्व से जनता एकाकार होकर शासक और शासित की दूरी को कोसों दूर कर लेती है। भरोसा, स्नेह, सम्मान, प्रोत्साहन और वैभव के अधिकारी होने पर भी अनंत सरलता उनकी विशेषताएं थीं। भारत सेवक समाज की महती सेवायें, नगर पालिकाओं के अध्यक्ष और अन्य पदों को सुशोभित करने वाले मिश्र जी खुज्जी विधान सभा क्षेत्र से विधायक के रूप में जनता के सच्चे सेवक बने। प्रदेश के प्रथम मुख्य मंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल ने उनकी विद्वता,दक्षता, राष्ट्रीय भावधारा और समर्पण भाव को देखते हुए उन्हें मध्य प्रदेश भारत लोक सेवक समाज का संयोजक नियुक्त किया था।

डॉ,जैन ने बताया कि छात्र जीवन में डॉ.बलदेव प्रसाद मिश्र जी ने राजनांदगांव में सरस्वती पुस्तकालय, बाल विनोदनी समिति और मारवाड़ी सेवा समाज की स्थापना की थी। सन् 1917-18 की महामारी के समय मारवाड़ी सेवा समाज के सदस्यों ने जन सेवा के बहुत कार्य किये। इसी प्रकार ठाकुर प्यारेलाल सिंह के सहयोग से एक राष्ट्रीय माध्यमिक शाला’ खोली थी और इस संस्था के वे पहले हेड मास्टर थे।

डॉ. जैन ने कहा कि इस छत्तीसगढ़ अंचल में उच्च शिक्षा के विकास में भी डॉ.मिश्र का उल्लेखनीय योगदान रहा है। डॉ. मिश्र ने प्राय: साहित्य की सभी विधाओं में रचनाएं लिखी हैं। वे मानस के एक यशस्वी प्रवचनकार थे। उनके प्रवचन लोग भाव भक्ति पूर्वक सुनते थे। उनका योगदान चिर स्मरणीय रहेगा।