Thursday, September 19, 2024
spot_img
Homeभुले बिसरे लोगमैं अकिंचन्य में श्रद्धा रखता हूँ : आचार्य वासुदेव शरण अग्रवाल

मैं अकिंचन्य में श्रद्धा रखता हूँ : आचार्य वासुदेव शरण अग्रवाल

वे प्रवाद पुरुष थे। डॉ अग्रवाल भारतीय ज्ञान मीमांसा की भौतिक सम्पदाओं में से सहस्र वर्षों का शब्दामृत छान कर लाए थे। उन्होंने भारतीय संग्राहलयों को पुरातात्विक चित्र वीथिकाओं और ऐतिहासिक स्रोतों से गछ (पूर्ण) दिया। जिन दिनों वे मथुरा संग्रहालय पहुँचे थे।
उन दिनों को स्मृति में सहेजते हुए कृष्ण वल्लभ द्विवेदी ने कहा है कि इन युगल जिम्मेदारियों के हिमालय जैसे बोझ का वहन करके, उन दिनों जहाँ एक ओर रात और दिन पुरानी मूतियों, ठीकरों, सिक्कों, अभिलेखों आदि के साथ वह अपना माथा लड़ाया करते, वहाँ साथ ही साथ उतनी ही तन्मयता से जूझते रहते अनिश पाणिनीय ‘अष्टाध्यायी’ जैसी दुरूह व्याकरण-रचना के दंडकवन में से प्राचीन भारतीय इतिहास, भूगोल, समाज-व्यवस्था, राज्य-प्रणाली, कला-कौशल, धर्म-दर्शन-विषयक सामग्री के सूत्र खोज निकालने के हेतु भी जो कि उनके शोध-अनुसन्धान का निर्धारित विषय था !
यह रियासतों के विलय का दौर था। भारतीय इतिहास के अनगिनत स्रोतों को उनकी हवेलियों से संग्रहालयों की वीथिकाओं की ओर ले जाना था। डॉ अग्रवाल ने कई ऐसी जगहों पर पहुँच कर उन अमुक महत्वपूर्ण सामग्रियों का संग्रह किया। उन्होंने भारतीय संग्रहालयों का कायाकल्प कर दिया। अपनी अध्ययन यात्रा और इस हिस्टोरिकल रिवोल्यूशन में उन्होंने एक – एक करके अनेक इतिहास स्रोतों को भारत भूमि के हर क्षेत्र से एकत्रित किया। उन्हें संग्रालय के लिए किसी भी महत्वपूर्ण वस्तु का पता चलता, वे किसी भी दाम में इस वस्तु को खरीदने के लिए तत्पर रहते। यहाँ तक की कबाड़ बेचने वाले से भी! उन्होंने अपने सौन्दर्यवेत्ता आनंद कुमार स्वामी से भी प्रेरणा ली थी। उन दिनों आनंद कुमार स्वामी ने जिस तरह अमेरिका के बोस्टन म्यूजियम को डिजाइन किया था। पूरी दुनिया की विद्वत सभाओं में यह चर्चा आम हो गई थी।
डॉ अग्रवाल भारतीय संग्रहालयों की दीवार में कान लगाकर इतिहास का अनुशीलन किया। वे अपने अनुसंधान की परिधि से बहुत आगे निकल गए थे। हजारों वर्ष आगे। उन्होंने काशी के राजघाट में मिले मिट्टी के खिलौने पर जो सौंदर्यशास्त्रीय व्याख्या की है, वह सुंदरता को भी सुंदर बनाता है। जैसे गोस्वामी जी कहते हैं – सुंदरता कहु सुंदर करई।
वे मथुरा से होते हुए काशी आये थे। इसलिए काशी के शास्त्रीय वातावरण में भारतीय ललित कलाओं की बाट जोह सके। वे अपार विद्वता का भार वहन किए भी अपने अकिंचन्य के प्रति कितने सजग और सरल थे। कल उनका जन्मदिन था। मैं उनका सुधी पाठक, उनके जन्मदिन पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।
image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार