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संक्रान्ति पर्व अमृत महोत्सव समारोह में साम्प्रदायिक सौहार्द के स्वर गूंजे

नई दिल्ली। केन्द्रीय जनजाति राज्य मंत्री श्री मनसुखभाई डी. वसावा ने कहा कि राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के लिए साम्प्रदायिक सौहार्द जरूरी है। राष्ट्रसंत श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी ने हमें साम्प्रदायिक संकीर्णता से ऊपर उठकर वास्तविक रूप में मनुष्य बनने की प्रेरणा दी। राष्ट्रीय विकास के लिए आज गुरु वल्लभ जैसे धर्मगुरुओं के बताये हुए मार्गदर्शन पर चलने की ज्यादा जरूरत है।

श्री वसावा कांस्टीट्यूशनल क्लब, रफी मार्ग पर सुखी परिवार अभियान के संस्थापक गणि राजेन्द्र विजयजी के सान्निध्य में आयोजित संक्रान्ति पर्व अमृत महोत्सव समारोह को सम्बोधित करते हुए बोल रहे थे। इस अवसर पर सर्वधर्म सद्भाव सम्मेलन का आयोजन किया गया। संक्रान्ति पर्व का शुभारंभ 75 वर्ष पूर्व आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी म.सा. ने किया था जिसका उद्देश्य पराधीन भारत की परिस्थितियों में राष्ट्रीयता, स्वदेश भावना एवं नैतिकता की स्थापना करना था।

गणि राजेन्द्र विजयजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज देश में साम्प्रदायिक सौहार्द की ज्यादा जरूरत है। क्योंकि विकास की ओर अग्रसर होते हुए देश को अगर कोई नुकसान पहुंचा सकता है तो वह साम्प्रदायिक विद्वेष एवं नफरत ही है। गुरु वल्लभ ने हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी आदि सभी धर्मों के लोगों को एक मंच पर लाकर मनुष्य को मनुष्य बनने की प्रेरणा दी। गणि राजेन्द्र विजयजी ने देश के विकास में धर्मगुरुओं की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करते हुए कहा कि संयम और त्याग के बल पर ही धर्म को जीवंत रखा जा सकता है। आज तथाकथित धर्मगुरु वैभव, प्रदर्शन एवं सुविधावाद के नाम पर जो विकृतियां फैला रहे हैं उनसे सावधान रहने की जरूरत है। गणि राजेन्द्र विजयजी ने आदिवासी लोगों के उत्थान के लिए जैन समाज को आगे आने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि जैन धर्म मंे आदिवासी लोगों का विशिष्ट योगदान है। सांसद श्री रामसिंह भाई राठवा ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए गुरु वल्लभ को एक महान धर्मगुरु के रूप में याद किया।

फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम डाॅ. मुफ्ती मोहम्मत मुक्करम अहमद ने कहा कि किसी भी धर्म में इंसान को इंसान से नफरत करने की भावना नहीं है। आतंकवाद एवं हिंसा की भावना कभी भी धार्मिक नहीं हो सकती। जो लोग नफरत एवं विद्वेष की राजनीति करते हैं वे अमानवीय हैं। श्री अहमद ने गुरु वल्लभ से जुड़े एक संस्मरण की चर्चा करते हुए कहा कि जैन एवं मुस्लिम श्रद्धालुओं के बीच एक स्थान को लेकर जब विवाद हो गया कि तो गुरु वल्लभ ने अपने अनुयायियों से कहा कि मंदिर हो या मस्जिद एक पवित्र स्थान के लिए आक्रमण नहीं अनुकरण का उदाहरण प्रस्तुत होना चाहिए। यह स्थान मस्जिद के लिए दे दी जाए और न केवल स्थान दिया जाए बल्कि मस्जिद के निर्माण में होने वाला खर्च भी जैन लोग उठाए। वल्लभ गुरु की प्रेरणा से इस मस्जिद के निर्माण में जैन समाज सहयोगी बना जो साम्प्रदायिक सद्भाव का एक अनूठा उदाहरण है।

सर्वधर्म सम्मेलन में सिक्ख, ईसाई, मुस्लिम, बहाई, बौद्ध, यहूदी आदि विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए देश के समग्र विकास में सहयोगी बनने की अपील की। उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिक कट्टरता विकास में अवरोधक है। धर्म हमें जोड़ता है, तोड़ता नहीं। धर्म के क्षेत्र में हिंसा, घृणा, नफरत, भय का कोई स्थान नहीं। अनेकता में एकता भारत की मौलिक विशेषता है। सर्वधर्म सद्भाव उसका मूल है। साम्प्रदायिक कट्टरता व जातिवादी जूनून लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करते हैं। इस अवसर पर श्री राजकुमार जैन फरीदाबाद, श्री अशोक जैन, बहाय धर्म के डाॅ. ए. के. मर्चेंट, श्री एजेइकाइल इसाक मालेकर आदि ने अपने विचार रखें। शांति निकेतन विद्यालय-मेरठ के विद्यार्थियों ने सद्भाव एवं राष्ट्रीयता पर केन्द्रित नृत्य एवं नाटिकाएं प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संयोजन श्री संजय जैन ने किया। अतिथियों का स्वागत श्री ललित गर्ग, श्री मुकेश अग्रवाल, श्री अनिल जैन-अंबाला, श्री अमित जैन, श्री मनोज जैन-बड़ोत आदि ने किया।

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(ललित गर्ग)
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