रवीन्द्रनाथ टैगोर की 163वीं जयंती पर “गीतांजली विमर्श” कार्यक्रम

कोटा / रवीन्द्रनाथ टैगोर की 163वीं जयंती पर मगलवार को राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय कोटा मे पाठक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। स्वागत करते हुए  संभागीय पुस्तकालयध्यक्ष डॉ दीपक कुमार श्रीवास्तव ने बताया की 1913 में रवीन्द्रनाथ टैगोर साहित्य में नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले नॉन-यूरोपियन और पहले भारतीय थे। टैगोर को नोबेल पुरस्कार उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता संग्रह गीतांजलि के लिए दिया गया था। वह एक कवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक, समाज सुधारक थे।
उन्होंने कहा कि रविंद्र नाथ टैगोर के विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
अध्यक्षता कर रहे पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी, फेदरलाईट डेवेलेपर्स इण्डिया राजू गुप्ता ने कहा कि रवीन्द्रनाथ टैगोर को 1915 में नाइट हुड की उपाधि से सम्मानित किया गया था। लेकिन उन्होंने वर्ष 1919 में अमृतसर (जलियांवाला बाग) नरसंहार के विरोध में ये सम्मान अंग्रेजों को वापस लौटाया दिया था।
मुख्य अतिथि पूर्व उप मुख्य अभियंता तापीय परियोजना बिगुल जैन ने कहा कि “गुरुदेव का मानना था कि अध्ययन के लिए प्रकृति का सानिध्य ही सबसे बेहतर है. उनकी यही सोच 1901 में उन्हें शांति निकेतन ले आई। उन्होंने खुले वातावरण में पेड़ों के नीचे शिक्षा देनी शुरू की। रवींद्रनाथ टैगोर के पिता ने 1863 में एक आश्रम की स्थापना की थी, जिसे बाद रवींद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में बदला।
मुख्य वक्ता प्रेरक उदबोधक चन्द्रशेखर सिंह ने कहा कि जो यह जानते हुए भी वृक्ष लगाता है कि वह उनकी छाया में कभी नहीं बैठ पाएगा, उसने जीवन का अर्थ समझना शुरू कर दिया है। इसका अर्थ यह है कि हमें दरिद्र नारायण (मानव समाज) की सेवा करनी चाहिए।
विशिष्ट अतिथि डॉ. शशि जैन राष्ट्रीय अध्यक्ष समरस साहित्य सृजन संस्थान भारत ने कहा कि सफलता का अर्थ है आत्म-समर्पण, जो हमें अपने काम में पूरी तरह से लगे रहने की क्षमता देता है। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ एवं माँ शारदे की तस्वीर पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया । कार्यक्रम में वाचनालय के करीब 40 पाठक मौजूद रहे।
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