Saturday, April 20, 2024
spot_img

Monthly Archives: October, 2015

सामना संपादकीय में आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली द्वारा किए भंडाफोड़ को समर्थन

महाराष्ट्र की स्वाति ने स्कूल जाने के लिए बस पास के लिए २६० रुपए नहीं होने पर अपनी जान दे दी। लेकिन राज्य सरकार की तिजोरी से ‘बँकॉक’ को जाने वाले नृत्य कला दल को आठ लाख रुपए किसी भी तरह की चर्चा हुए बिना मिल गए। राज्य की अस्वस्थ्य मानसिकता का ये विदारक चित्र हैं। सामना ने सोमवार को संपादकीय में महाराष्ट्र सरकार की खिंचाई करते हुए अपरोक्ष तौर पर आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने 2 दिन के पहले कए गए भंडाफोड़ का समर्थन किया।

इन्दिरा गाँधी भी राहुल को नहीं प्रियंका को अपना उत्तराधिकारी मानती थी

इंदिरा गांधी को प्रियंका गांधी में अपना राजनीतिक अक्श नजर आता था। वो प्रियंका को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखती थीं। ये खुलासा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एमएल फोतेदार ने किया है। फोतेदार के मुताबिक, जब इस बात की जानकारी सोनिया गांधी को हुई तो वो बहुत परेशान हुईं।

इंग्लैंड के बर्मिंघम शहर पहुंचा ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’

'इंग्लॅण्ड' में 'बर्मिंघम' शहर के 'गीता भवन' में श्रीमती शैल अग्रवाल जी की ई-पत्रिका 'लेखनी' का वार्षिक कार्यक्रम 'लेखनी सानिध्य' आयोजित किया गया। जहाँ ब्रिटेन के गणमान्य साहित्य-प्रेमी उपस्थित थे। तीन घंटे तक चले इस कार्यक्रम में काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमे ब्रिटेन तथा भारत के अनेक प्रसिद्ध साहित्य-प्रेमी कवियों ने अपनी सुन्दर रचनाओं का पाठ किया.

ज़रूरत है ईमानदार को सम्मानित करने की

मौजूदा दौर में माना जा रहा है कि दुखी बढ़ रहे हैं या यह कहें कि सुखी कम हो रहे हैं। वैसे दोनों बातें एक ही हैं लेकिन एक प्रश्न है 'सुख को बढ़ाने से दु:ख कम होगा या दु:ख को घटाने से सुख बढ़ेगा ?' इन दोनों में से कौन सी बात सही है ? असल में मनुष्य का दु:ख कम करने के लिए उसे सुखी करना आवश्यक है।

ये मीडिया तो जोकरों को भी मात दे रहा है

जब प्रेस को चौथा खंभा बताया गया था तब उसका मकसद था प्रेस के जरिए विधायिका और कार्यपालिका को निरंकुश होने से बचाना। पर आज उलटा होता जा रहा है। कॉरपोरेट मीडिया अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए उस सच को दिखा रही है जो दरअसल घटा ही नहीं। अकसर बात का बतंगड़ बना देता है मीडिया। आपने क्या कहा और मीडिया के कारीगरों ने उसे क्या बता दिया, इन दोनों में जमीन-आसमान का अंतर होता है।

भ्रष्ट नेताओँ, बाबुओं और कारोबारियों ने ऐसे बढ़ा दिए दाल के भाव

जब मैं विद्यार्थी था तो मुझे इस बात ने बहुत चौंकाया था कि हमारे यहां मिलने वाले चने को अंग्रेजी में 'चिक पी' कहा जाता है और अरहर को 'पिजन पी'। मैंने जाना चूंकि दालें योरपीय खानपान का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं है और ब्रिटेन-फ्रांस में चना मुर्गे-मुर्गियों को खिलाया जाता है, अरहर की दाल कबूतरों को तो इसी कारण वे इन्हें क्रमश: 'चिक पी' और 'पिजन पी' कहते हैं।

खेतान स्कूल के बच्चों के सवालों से हैरत में पड़ गए जम्मू कश्मीर विधान परिषद् के सदस्य सुरेंद्र अंबरदार

श्री सुरेंद्र अंबरदार के वक्तव्य के बाद छात्र-छात्राओं ने उनसे पीडीपी और भाजपा के गठबंधन, जम्मू कश्मीर के विस्थापित हिन्दुओं की वर्तमान दशा और उनके भविष्य, पाकिस्तान द्वारा लगातार की जा रही गोलीबारी, गिलगिट बाल्टिस्तान, भारत पाक युध्द, बांग्लादेश के निर्माण से लेकर कई तीखे राजनीतिक सवाल पूछे। श्री अंबरदार ने अपने तर्को, सहजता और विनम्रता से सब छात्र-छात्राओं को लाजवाब कर दिया।

बाजार प्रतिस्पर्धा को अपनाकर ही पटरी पर आ सकता है रेलवे

भारत में यात्रा करने वाले अधिकांश लोगों को यह पता है कि त्योहारों का मौसम यात्रियों के लिए परीक्षा की घड़ी से कम नहीं होता। अगर आपने समय रहते ट्रेन का टिकट नहीं खरीदा है तो त्योहारों के मौसम के ऐन पहले या उसके दौरान आपको टिकट मिलना लगभग असंभव है। जिन लोगों के पास पैसा है वे विमान यात्रा कर सकते हैं लेकिन उसके लिए भी सामान्य की तुलना में दोगुना तक धन खर्च करना पड़ता है।

जम्मू कश्मीर का भारत में विलयः भ्रांतियाँ और तथ्य

26 अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर के देशभक्त लोग हर बरस विलय दिवस मनाते हैं। इसी रोज 1947 में यहां के तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के लिए विलय-पत्र पर दस्तखत किए थे। गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने 27 अक्तूबर को इसे मंजूरी दी। विलय-पत्र का खाका हूबहू वही था जिसका भारत में शामिल हुए अन्य सैंकड़ों रजवाड़ों ने अपनी-अपनी रियासत को भारत में शामिल करने के लिए इस्तेमाल किया था। न इसमें कोई शर्त शुमार थी और न ही रियासत के लिए विशेष दर्जे जैसी कोई मांग।

क्या न्यायालय में फटे पुराने कपड़े पहनने वालों को न्याय नहीं मिलेगाः मुख्य न्याायाधीश के खिलाफ अवमानना की याचिका

रतलाम के पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर के खिलाफ मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में कंटेम्प्ट पिटीशन दायर कर दी है। इसके जरिए सवाल उठाया गया है कि क्या अपनी सुविधा अनुसार या फटे-पुराने कपड़े पहनकर हाईकोर्ट की शरण लेने वाले किसी गरीब को इंसाफ मांगने का हक नहीं?
- Advertisment -
Google search engine

Most Read