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टीवी पर ‘24’ एक ताज़ा हवा का झोंका

टीवी पर सालों चलने वाले उबाऊ सीरियलों के बीच एक ताजी हवा का झोंका-सा आया दिखता है। पिछले कुछ हफ्तों से एक एंटरटेनमेंट चैनल पर प्रसारित हो रहे अनिल कपूर के सीरियल "२४" को देखकर लगता है, जैसे किसी ने उनींदेपन में झकझोर दिया हो। अनिल कपूर बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने इस बात का अहसास कराया कि आज भी छोटी अवधि के सीरियल ज्यादा असरदार या प्रासंगिक हैं, बजाय सालों चलने वाली उन कहानियों के, जिन्हें दर्शक ऊबकर देखना बंद कर देते हैं, लेकिन कहानी बासी होकर सड़ने की सीमा तक चलती ही रहती है।

"२४" सीरियल आंधी की रफ्तार से आगे बढ़ता है। पूरी कहानी २४ घंटे की। एक शाम को सिंघानिया परिवार हवाई जहाज से दिल्ली से मुंबई जाता है, जहां अगली रात एक बड़ी रैली में सिंघानिया परिवार का बेटा आदित्य देश के प्रधानमंत्री पद के लिए दावा पेश करेगा। एक तरफ परिवार की रैली की तैयारियां, दूसरी ओर पड़ोसी देश से आए एक संघर्षरत उग्रवादी समूह के सदस्यों की आदित्य को जान से मारने की योजना। घटनाक्रम रेस की तरह दौड़ता है। सीरियल में एक अन्य बात जिसने चौंकाया, वह है कहानी की प्रासंगिकता।

�कहानी उस सिंघानिया परिवार की है, जो देश पर शासन करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है। वह यह मान ही नहीं सकता कि देश उनके बिना भी चल सकता है। उस परिवार के एक सदस्य की, जो देश का प्रधानमंत्री था, हत्या कर दी गई थी। हत्या भी पड़ोसी देश में सक्रिय उस लड़ाकू गुट ने की, जिसका मानना था कि भारतीय प्रधानमंत्री ने उनके मुल्क की सरकार को उन्हें हराने में मदद की थी। यह गुट अपने समुदाय के नागरिकों के हक के लिए हिंसक संघर्ष में लिप्त है। जब सिंघानिया परिवार के उस सदस्य की एक चुनावी रैली के दौरान हत्या हुई थी, तब उसका बेटा आदित्य व बेटी दिव्या बहुत छोटे थे। उस समय परिवार की कमान संभाली प्रधानमंत्री की विधवा श्रीमती नैना ने।

उन्होंने अपने जीवन का एक ही मिशन बनाया कि समय आने पर बेटा आदित्य देश का प्रधानमंत्री बने। पार्टी की चेयरपर्सन बनने के बाद श्रीमती नैना के प्रयास और तेज हो गए। उनकी एक दुविधा थी कि बेटा लगातार देश की कमान संभालने के प्रति अनिच्छुक होने के संकेत देता रहता है, लेकिन वे हार मानने वालों में से नही हैं। सीरियल में यह भी दिखाया गया है कि इस योजना में उनकी पूरी मदद उनकी बेटी दिव्या (जिसकी शादी विक्रांत नामक एक भ्रष्ट व्यक्ति से हुई है) करती है।

नैना को शक है कि उनका दामाद सिंघानिया परिवार से निकटता का गैरवाजिब फायदा उठा रहा है। एंटी टेररिस्ट यूनिट का मानना है कि कोई अंदर का आदमी आदित्य के मूवमेंट की खबरें उस उग्रवादी गुट को देता है। गुट के उग्रवादियों ने तय कर रखा है कि जिस रैली में आदित्य अपने प्रधानमंत्री बनने का दावा पेश करने वाला है, उसमें उसकी हत्या कर दी जाएगी। नैना सोच भी नही सकतीं कि आदित्य के हर मूवमेंट की खबर उनका दामाद ही उग्रवादियों तक पहुंचा रहा है। आदित्य सिंघानिया रैली में पहुंच तो जाता है, लेकिन वहां पर हरेक को यह कहकर चौंका देता है कि दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के अपने विद्यार्थीकाल में घटे एक हादसे के लिए शायद वह जिम्मेदार था। जनता आदित्य की इस स्वीकारोक्ति को सुनकर भौचक है और परिवार स्तब्ध। कुल मिलाकर पूरा घटनाक्रम दर्शक को बांधता है।

इसमें दर्शकों को सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है, इसकी कुछ घटनाओं का वर्तमान राजनीतिक संदर्भों से सटीक जुड़ाव। मसलन, तत्कालीन प्रधानमंत्री की पड़ोसी देश के उग्रवादी गुट द्वारा हत्या, परिवार की कमान प्रधानमंत्री की विधवा द्वारा संभालना और बेटे को प्रधानमंत्री बनाने का मिशन लेकर चलना, बेटे द्वारा इसमें कोई रुचि न दिखाना और बेटी की शादी ऐसे व्यक्ति से होना, जो परिवार की बदनामी का सबब बन जाता है। इन तमाम प्रसंगों का बेबाक और ईमानदार प्रदर्शन काबिले-तारीफ है। स्पष्ट है कि हमारे पॉलिटिकल "सेंसर" को देखते हुए ऐसा प्रस्तुतीकरण हिम्मत का काम है और इसका निरंतर अबाध चलते रहना भी अनूठी घटना है। पाश्चात्य मानकों के अनुसार भारतीय टीवी और रेडियो पर भी आजादी से विचार व चित्र प्रस्तुत किए जा सकते हैं, यह सीरियल इस बात का केवल संकेत मात्र है, तो भी "२४" साधुवाद का पात्र है।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

mathur [email protected]

साभार-दैनिक नईदुनिया से

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