महोदय,
लोकतांन्त्रिक मूल्यों पर आधारित राजनीति करने वाले नेताओं व विरासत में मिली नेतागिरी में अंतर समझना हो तो राहुल गांधी के नित्य नये नये बचकाने बयानो को समझों। मूलतः नेहरु-गांधी की विरासत से देश की मुख्य पार्टी ‘कांग्रेस’ के उपाध्यक्ष बनें राहुल वर्षो से राजनीति में अपने को स्थापित करने में लगे हुए है।परंतु ये पिछले दस वर्षों के (2004-2014) के संप्रग सरकार के कार्यकाल में कांग्रेस की मुखिया अपनी माता श्रीमती सोनिया के अथक प्रयासो के उपरान्त भी सफल नहीं हो पा रहें । दलितों -निर्धनों आदि के यहां नई नई नौटकी करने वाले राहुल को कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने अपने स्वार्थ के कारण इस प्रकार से एक चक्रव्यूह में फंसा रखा है।वैभवशाली जीवन जीने वाले कांग्रेसी युवराज को निर्धनता व अभाव भरा सामान्य भारतीय जीवन क्या होता है , का किंचित मात्र भी ज्ञान है ? दुर्भाग्य यह है कि देश का सबसे बडा राजनैतिक दल परिवारवाद की चाटुकारिता से बाहर निकलने का साहस ही नहीं कर पा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी जी के निजी भ्रष्टाचार से पूर्ण अवगत होने वाले राहुल को नेहरु-गांधी परिवार के भ्रष्ट आचरणों के इतिहास का ज्ञान तो अवश्य होगा ? इसके अतिरिक्त मौन मनमोहनसिंह को कठपुतली बना कर अपनी माता व बहनोई (रोबर्ट) के साथ अनेक आर्थिक घोटालों से देश को लूटने में किस किस की भूमिका थी, का भी राहुल उल्लेख कर सकते होंगे ? आज जब मोदी सरकार अपनी कार्य कुशलता से विश्व पटल पर एक अहम भूमिका निभा रही है तो ऐसे में विपक्ष को स्वस्थ राजनीति का परिचय नहीं देना चाहिए, क्या ?
परंतु मोदी सरकार के आरम्भ से ही कांग्रेस आदि विपक्षी दलों को केवल अनावश्यक विरोध की राजनीति ही रास आ रही है। सबसे प्रमुख बात यह है कि जो परिवार जीवन भर सत्ता का सुख भोगता रहा वह आज सत्ता से बाहर होने की खीझ से अत्यंत विचलित है।अपनी पार्टी के शासन काल में प्रायः निष्क्रिय रहने वाले राहुल गांधी आज प्रमुखता से नकारात्मक राजनीति का मोहरा बनते जा रहें है। दिग्गज कांग्रेसियों को अपने इस मोहरे के आभाचक्र से बचना होगा और राष्ट्रीय राजनीति में सकारात्मक भूमिका निभानी होगी ।
भवदीय
विनोद कुमार सर्वोदय
ग़ाज़ियाबाद