Sunday, November 24, 2024
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केदारनाथ सिंह ने राजनांदगांव में पढ़ी थी कविता

49वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात हिन्दी कवि केदारनाथ सिंह ने राजनांदगांव में मुक्तिबोध स्मारक-त्रिवेणी संग्रहालय की स्थापना के सिलसिले में 2005 में आयोजित एक काव्य गोष्ठी में श्री केदारनाथ सिंह में काव्य पाठ किया था। मुझे उस यादगार काव्य गोष्ठी के संचालन का सौभाग्य मिला था। आज वास्तव में संस्कारधानी भी सगर्व कह सकती है कि भारत के सर्वोच्च साहित्य सम्मान से विभूषित कवि ने हमारे यहाँ कविता पढ़ी है। इतना ही नहीं, मुलाक़ात के दौरान जब मैंने मुक्तिबोध जी के साथ डॉ.पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और डॉ.बलदेवप्रसाद मिश्र जी के स्मारक को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह जी की मंशा के अनुरूप, जिला प्रशासन और मुक्तिबोध स्मारक समिति की पहल से यह आकार देने की परियोजना की कहानी बताई तो उन्होंने देश में इसे मौजूदा सदी के आगाज़ की एक बड़ी साहित्यिक उपलब्धि निरूपित किया था। इससे स्वाभाविक है कि हमारी कर्मभूमि का नाम रौशन हुआ। 

यथार्थ और कल्पना की जुगलबंदी 
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केदारनाथ जी की कविताएं यथार्थ और कल्पना की खोज का एक कोलॉज है। उनकी कविताओं में पारंपरिक दृष्टिकोण के साथ आधुनिक सौंदर्यशास्त्र का भी बोध होता है। उम्मीद है कि आने वालों दिनों में कविताओं के माध्यम से केदारनाथ सिंह युवाओं को प्रेरित करते रहेंगे। गौरतलब है कि केदारनाथ सिंह को साहित्य अकादमी से भी सम्मानित किया जा चुका है। केदारनाथ सिंह ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने वाले हिंदी के छठें लेखक है। 

स्मरणीय है कि पहले प्रख्यात कवि सुमित्रानंदन पंत, रामधारी ‌सिंह ‌दिनकर, निर्मल वर्मा, श्रीलाल शुक्ल और अमराकांत को ये सम्‍मान दिया जा चुका है। श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को ये पुरस्कार संयुक्त रूप से दिया गया था। अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, यहाँ से देखो, बाघ, अकाल में सारस, तालस्ताय और साइकिल केदारनाथ सिंह के महत्वपूर्ण कविता संग्रह है। उन्होंने आलोचनाओं की भी कई किताबें लिखी हैं। 
सधी हुई रचनाओं का समर्थ संसार 
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केदारनाथ जी का कविता संग्रह प्रकृति पर पहरा हाल ही में प्रकाशित हुआ है। केदारनाथ सिंह का जन्म 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के चकिया गाँव में हुआ था. उऩ्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1956 में हिंदी में एमए और 1964 में पीएचडी की उपाधि हासिल की। गोरखपुर में उन्होंने कुछ दिन हिंदी पढ़ाई और जवाहर लाल विश्वविद्यालय से हिंदी भाषा विभाग के अध्यक्ष पद से रिटायर हुए। उन्होंने कविता व गद्य की अनेक पुस्तकें रची हैं. इससे पहले उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुमार आशान पुरस्कार (केरल) और व्यास पुरस्कार सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं.

केदारनाथ सिंह की प्रमुख रचनाएं हैं- जमीन पक रही है,यहां से देखो,बाघ,अकाल में सारस,मेरे समय के शब्द,कल्पना और छायावाद,हिंदी कविता बिंब,विधान और कब्रिस्तान में पंचायत। जटिल विषयों पर बेहद सरल और आम भाषा में लेखन उनकी रचनाओं की विशेषता है. उनकी सबसे प्रमुख लंबी कविता 'बाघ' है। इसे मील का पत्थर कहा जाता है। केदारनाथ सिंह के प्रमुख लेख और कहानियों में 'मेरे समय के शब्द', 'कल्पना और छायावाद', 'हिंदी कविता बिंब विधान' और 'कब्रिस्तान में पंचायत' शामिल हैं.ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका) और शब्द (अनियतकालिक पत्रिका) का उन्होंने संपादन भी किया।इन दिनों वे दिल्ली के साकेत में रहते हैं.
हाथ की तरह गर्म दुनिया की चाह 
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उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा, दुनिया को हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए। हाथ कविता की ये लाइनें लिखने वाले मशहूर कवि केदारनाथ जी अपनी कविताओं के जरिए हमें अनुप्रास और काव्यात्मक गीत की दुर्लभ संगति दी है। पढ़िए केदारनाथ सिंह की कविता दाने – 
नहीं, हम मण्डी नहीं जाएंगे
खलिहान से उठते हुए
कहते हैं दाने
जाएंगे तो फिर लौटकर नहीं आएंगे
जाते- जाते, कहते जाते हैं दाने
अगर लौट कर आए भी
तो तुम हमें पहचान नहीं पाओगे
अपनी अन्तिम चिट्ठी में
लिख भेजते हैं दाने
इसके बाद महीनों तक
बस्ती में
कोई चिट्ठी नहीं आती। 
जटिल विषयों पर बेहद सरल और आम भाषा में लेखन उनकी रचनाओं की विशेषता है। याद रहे कि उनकी सबसे प्रमुख लंबी कविता बाघ  है. इसे मील का पत्थर कहा जाता है। बहरहाल पूरे यकीन के साथ कहा जा सकता है कि आने वाले वर्षों में केदारनाथ सिंह हिंदी साहित्य को और भी समृद्ध करेंगे। ————————————————
प्राध्यापक,शासकीय दिग्विजय 
पीजी कालेज, राजनांदगांव 
मो.9301054300 

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