शनिवार 10 जून का दिन था पारिवारिक कार्य से असनावर जाना हुआ। दिन के 11 बजे थे असनावर से 40 किमी पर सारथल के हनुमान मंदिर से बाईं ओर 4 किमी दूरी पर परवान नदी के किनारे स्थित काकोनी के मंदिर समूह देखने के लिए पहुंच गये। बीस सीढ़ियां चढ़ कर मंदिर परिसर सामने था। कोई 35 साल पहले जब देखा था तो कुछ मंदिरों के भग्नावशेष मौजूद थे, जिनके आज चबूतरे से शेष रह गए हैं और मंदिरों के पाषाण खंड परिसर में और परिसर के बाहर चारों और बिखरे थे।
एक कमरे में पुरातत्व विभाग ने कुछ मूर्तियां सुरक्षित रख कर पुरातत्व विभाग द्वारा ताले में बंद कर सुरक्षित कर दिया गया था। पुरातत्व विभाग के दो सूचना पट्ट लगे थे जो इस स्थान का इतिहास बताते हैं। सुरक्षा गार्ड की एक चौकी बनी है, जिसमें भी एक भव्य कलात्मक मूर्ति सुरक्षित रखी गई है।
सीढ़ियां चढ़ कर परिसर में 9वीं से 12वीं शताब्दी की सुंदर स्थापत्य एवम् शिल्प कला के नमूने हैं। पूर्व में यहां मालवा के प्रतिहार और परमार शासकों का शान रहा। बाद में यह स्थान चौहान राजाओं के अधीन आ गया। मंदिर समूह में प्राचीन विष्णु मंदिर का अभी भी अस्तित्व है, जो खंडहर के रूप में है।
प्रतिहार कला का प्रभाव आज भी इस मंदिर के गर्भ गृह के बाहर दीवार, छत और स्तंभों पर देखा जा सकता है। इसी के समीप 18 खंबों पर श्रृंगार चंवरी बनी है। इसके कलात्मक स्तंभों और छतों पर तत्कालीन समय की कारीगरी दिखाई देती है। परिसर में ही कुछ ऊंचाई पर एक चौकी पर यहां के चर्चित और विशाल सहत्रमुखी शिवलिंग पर भी प्रतिहार कला का प्रभाव साफ दिखाई देता है। यह शिवलिंग 3 फीट ऊंचा और 6 फीट गोलाई लिए मोटा है।
परिसर में ही विशाल करीब 15 फीट ऊंची परमार कालीन नृत्य गणेश की प्रतिमा जिसकी सूंड बाईं ओर है लोक आस्था का केंद्र है जो एक पूर्ण मंदिर अपेक्षाकृत नए मंदिर में विराजित है। श्रृंगार की वजह से मूर्ति शिल्प दब गया है। गर्भगृह के ऊपर शिखर बना है। गणेश मंदिर में एक बड़ा ही कलात्मक नंदी की खंडित प्रतिमा देखते ही बनती है। इस पर सैंकड़ों देवी – देवताओं को बहुत ही बारीकी से सुंदरता के साथ उकेरा गया है। गणेश प्रतिमा और शिवलिंग पूजित हैं।
मंदिर परिसर के कुछ चबूतरे। बताते हैं कि इन पर कभी भव्य और कलात्मक मंदिर रहे होंगे। अनेक कलात्मक पाषाण खंड परिसर और परिसर के बाहर बिखरे हैं, जो कभी भव्य मंदिरों का हिस्सा थे। यहां कभी शैव, वैष्णव और जैन मंदिर अस्तित्व में थे जिनकी अनेक मूर्तियां कोटा के राजकीय संग्रहालय में प्रदर्शित हैं। नवीं सदी की मयूर पर आसीन कार्तिकेय प्रतिमा, वाहन मूषक पर आलिंगनबद्ध स्पत्निक गणेश हाथों में लेखनी,कुल्हाड़ी,कमल का फूल एवम् मोदक लिए हैं, सुंदरी द्वेय, कंठाहार – वनमाला पहने हुए और बाएं हाथ में दर्पण लिए स्थानक पुरुष, पदम पर विराजित शिव – पार्वती आदि प्रतिमाएं शैव धर्म और लोक जीवन का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऐसे ही आदिनाथ, पार्श्वनाथ, छत्र युक्त तीर्थंकर महावीर, स्थानक ऋषभदेव, अजीतनाथ, पद्मप्रभा, विमलनाथ आदि की अत्यंत कलात्मक प्रतिमाएं संग्रहालय में काकोनी मंदिरों की मूर्ति शिल्प के गौरव की गाथा सुनाती हैं।
काकोनी की अनेक मूर्तियां झालावाड़, बारां संग्रहालय के साथ – साथ जयपुर के छोटी चौपड़ स्थित मेट्रो संग्रहालयों की शोभा बनी हैं।
इतिहासकारों के मुताबिक यह स्थान कभी कांतापुरी के नाम से व्यापार का बड़ा केंद्र था। स्थल की सुरक्षा के लिए मौके पर मिला सुरक्षा गार्ड बनवारी लाल भील ने बताया कि यहां आठ – आठ घंटे से चौबीस घंटे तीन सुरक्षा कर्मी तैनात रहते हैं। उसने बताया कि महाशिव रात्रि और सावन के महीने में शिवलिंग की आस्था की वजह से बड़े पैमाने पर भक्तगण आते हैं और मेला जुड़ा रहता है। यद्यपि परिसर का फर्श पक्का कर दिया गया है, परंतु 35 वर्षों में गौरवमय अतीत का इतना उपेक्षित वर्तमान देख कर तो लगता नहीं की किसी पर्यटक को यहां आना चाहिए। आज यह धरोहर केवल पुरातत्व की वस्तु बन कर रह गई है और यदा कदा इतिहास और पुराविदों के लिए ही उपयोगी है। यह स्थल बारां से 85 किमी दूर बारां जिले में स्थित है।
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
पर्यटन लेखक
कोटा, राजस्थान
मो.9928076040