Sunday, November 24, 2024
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राष्ट्रहित में है एक देश -एक चुनाव

भारत गणराज्य के सर्वोच्च दस्तावेज संविधान है( संविधान किसी भी देश के भू – भाग का सर्वोच्च विधि होती है)। संविधान के भाग- 15 में अनुच्छेद 324 से 329 तक निर्वाचन से संबंधित जीवंत प्रावधान किए गए हैं। संघ (केंद्र), राज्य (इकाई) एवं स्थानीय (जमीनी तंत्र) के निर्वाचन के लिए व्यवस्थाएं की गई हैं। देश की लोकतांत्रिक प्रणाली के उत्तरदायित्व, जनविश्वास और शासक – शासित के बीच माधुर्य संबंध के लिए निर्वाचन आवश्यक आवश्यकताएं हैं। निर्वाचन के कारण शासकीय व्यवस्था में उत्तरदायित्व और पारदर्शिता पाई जाती है। जिन देशों में तानाशाही, सैनिक तंत्र और गुट तंत्र की बलात व्यवस्था पाई गई है, इन देशों में लोकतांत्रिक सर्वेक्षण से पता चला है कि इन देशों में जन विश्वासों को आघात करके ,लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचल करके ,मानवीय स्वतंत्रताओं का दामन करके इस व्यवस्थाओं पर सत्तासीन रहे हैं।

एक देश – एक निर्वाचन’ की उपादेयता की बात करें तो इससे चुनाव पर पड़ने वाले अतिशय खर्चे से मुक्ति मिलेगा। भारत वैश्विक स्तर पर विकासशील देश है, जिसको लोक कल्याण में उन्नतशील राष्ट्र बनना है। इसके अतिरिक्त चुनावी खर्च को जन कल्याण में व्यय किया जाए तो भारत की गरीबी का उन्मूलन और शैक्षणिक मूल्य का उन्नयन होगा। भारत को 2047 में विकसित राष्ट्र होना है तो इसको गरीबी /निर्धनता के अभिशाप को समाप्त करना होगा ।2047 तक भारत की साक्षरता 95 % होनी होगी। संघीय स्तर की सरकार( केंद्र सरकार), इकाई स्तर की सरकार (राज्य सरकार )और स्थानीय स्तर की सरकार( मूल तंत्र की सरकार) सत्ता(विधिक शक्ति) को हमेशा चुनावी समर का सामना करना पड़ता है तो उनकी रणनीति और कार्यप्रणाली स्थाई समाधान के बजाय लोक लुभावना वादों तक सीमित रह जाती है।

लोकसभाएं और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो यह सार प्राप्त होता है कि लोकतांत्रिक विकास और लोक कल्याणकारी कार्यों पर होने वाला व्यय निर्वाचित किए व्यवस्था पर व्यय होता है।’ एक देश- एक चुनाव’ के क्रियान्वयन होने से राजकोष पर पड़ने वाले चुनावी खर्च के बोझ को कम किया जाए जो विगत कुछ दशकों में निरंतर बढ़ता ही गया है। इसके अतिरिक्त थोड़े-थोड़े अंतराल के पश्चात होने वाले चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता लागू होने से बहुत सारे विकास कार्य और लोकोपयोग कार्यक्रम बाधित होते हैं। प्रथम आम चुनाव 1951 – 1952 में जब पहली लोकसभा चुनाव हुए थे तो इनमें 53 राजनीतिक दल चुनावी दंगल में उतरे थे, इन चुनावी दंगलों में 1874 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा और इन उम्मीदवारों का चुनावी खर्च 11 करोड़ आए थे। इसी प्रकार, 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 9000 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा और लगभग 60000 करोड रुपए व्यय हुए थे।

राज्यों के सभी विधानसभाओं में 4000 से अधिक सीट् हैं। एक लोकसभा सीट और इसके अंतर्गत आने वाले आठ विधानसभा सीटों के लिए अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं ।ऐसे में यह खर्च दोगुना हो जाएगा ।लेकिन ,अगर इन्हीं चुनाव को समवेत कराया जाए तो इस चुनावी व्यय को काफी मात्रा में न्यून किया जा सकता है। इससे जो धनराशि बचेगी उसका सदुपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण संबंधी समस्याओं के निवारण के लिए और शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए और लोक कल्याणकारी कार्यों की पूर्ति के लिए कर सकते हैं।

एक साथ चुनाव से आशय लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचन एक साथ कराने से है। इस चुनावी प्रक्रिया को लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप, संसदीय परिपाटी के समरूप और जन भावनाओं के अनुरूप सुसंगत बनाना भी इसका मौलिक उद्देश्य है।

स्वतंत्रता के पश्चात देश के निर्वाचित इतिहास में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ संपन्न होते रहे है।यह निर्वाचिकीय क्रम 1967 में टूट गया था। इसी परिप्रेक्ष्य में, विधि आयोग की 1999 में आई’ चुनाव सुधारो पर सुधार’ का प्रतिवेदन उल्लेखनीय है। विधि आयोग के अनुसार एक साथ चुनाव का क्रम टूटने का मुख्य कारण अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग और विधानसभाओं का भंग होना रहा है। हालांकि, अब 356 के आसार बहुत सीमित हो गए हैं। इसलिए अलग-अलग कराए जाने के बजाय लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव प्रत्येक 5 वर्ष में एक बार कराया जाना आदर्श होगा ।भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा है कि भारत का चुनाव आयोग पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए तैयार है ।लेकिन इस मामले पर आखिरी फैसला संसद के हाथ में है।

मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि” एक देश- एक चुनाव व्यवस्था के तहत निश्चित रूप से एक बहुत बड़े तंत्र की आवश्यकता है लेकिन यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर संसद को फैसला करना होगा। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करना चुनाव आयोग के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है। हालांकि, हमने सरकार को यह सिफारिश किया है कि एक साथ चुनाव के प्रबंधन के लिए चुनाव आयोग पूरी तरह तैयार है”। एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के कम से कम पांच अनुच्छेदों का संशोधन आवश्यक है, इसमें अनुच्छेद 83, अनुच्छेद 85, अनुच्छेद 172, अनुच्छेद 174 और अनुच्छेद 356 शामिल है। विधि आयोग की रपट में कहा गया है कि इन संशोधनों को अपनाने के लिए कम से कम 50% राज्यों का अनुसमर्थन आवश्यक है।

संसद की स्थाई समिति ने 17 दिसंबर, 2015 को राज्यसभा में प्रस्तुत एक रपट में सुझाया था कि सभी दलों को एक साथ चुनाव पर गंभीरता से विचार करना चाहिए ।विशेष रूप से आर्थिक विकास की गति को देखते हुए यह विचार बहुत आवश्यक है ,क्योंकि बार-बार चुनाव के कारण लागू होने वाले आदर्श आचार संहिता के कारण कई परियोजनाएं पूर्ण लक्षित नहीं हो पाते हैं ।नीति आयोग का रपट भी यही सुझाव देता है कि जिन विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के 6 महीने पश्चात होने हैं ,उनके चुनाव भी लोकसभा के साथ कर लिया जाए और भले ही परिणाम 6 माह पश्चात उनके कार्यकाल समाप्ति पर घोषित किया जाए।

बार-बार देश को चुनावी गतिविधियों में होने के कारण आदर्श आचार संहिता लागू किया जाता है ,जिसके कारण लोकोपयोगी परियोजनाओं का विकास बाधित होता है। नीति आयोग का रपट भी यही कहता है। विधि आयोग ने अपने रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि जिन – जिन विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के पश्चात होने हैं उनके चुनाव भी लोकसभा के साथ करा लिया जाए ,और भले ही परिणाम 6 माह बाद उनके कार्यकाल समाप्ति पर घोषित किया जाए ।स्पेन में हुए दो अध्ययनों में यह तथ्य सामने आया है कि एक साथ चुनाव और मतदाताओं की सक्रियता सहभागिता में सकारात्मक अनंयोनाश्रित संबंध है।

भारत में भी कई शोध से प्राप्त हुआ है कि आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, उड़ीसा सिक्किम और तेलंगाना में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं जिनके परिणाम बहुत सुखद और फलदायिनी रहा है। वर्ष 2019 में हुए चुनाव में आंध्र प्रदेश में 80.38 % मतदान हुआ था जबकि अरुणाचल प्रदेश में 82.11 %, उड़ीसा में 73.29 % और सिक्किम में 81.41%और तेलंगाना में 62.4 % मतदान हुआ था ,जबकि मतदान का राष्ट्रीय औसत68% था। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि तेलंगाना को छोड़कर शेष राज्यों का मतदान का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से अधिक रहा है।

जहां लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए थे। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उड़ीसा के चुनाव परिणाम से स्पष्ट होता है कि लोकसभा और राज्य विधानसभा में मतदाताओं के प्राथमिकता बदल जाती है और वह राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों का नीर – क्षीर ढंग से निर्धारण करने में सक्षम हो पाते हैं ।इसलिए एक देश – एक चुनाव राष्ट्रहित में प्रगतिशील और प्रगतिगामी कदम है।

(लेखक प्राध्यापक एवँ राजनीतिक विश्लेषक हैं)

एक निवेदन

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