मोती मिले ना मिले
समुद्र की गहराई तो नापना सीख जाओगे ।
इस जगह है ना सही और कहीं ,
परचम लहराने के काबिल हो जाओगे ,
जब संघर्षों की भट्टी में तपकर, तुम संघर्ष करना सीख जाओगे ।
खुद को मजबूर नहीं ,मजबूत साबित है करना। असफलता पग पग खड़ी
तुम प्रयासों से कभी न थकना ।
ऊंचाइयां तुम्हें नीचे गिरने के लिए नहीं
पैरों तले रखने के लिए बनी हैं ।
रस्सियां तुम्हारी गर्दन के लिए नहीं
सफलता खींच लाने के लिए बनी हैं ।
“जीवन का हवन कुंड: कोचिंग सिटी कोटा” शीर्षक से लिखी यह काव्य रचना मेघना ” तरुण” को एक चिंतनशील और समस्या का रास्ता सुझाने वाले रचनाकार की श्रेणी में ला खड़ा करती है। कोचिंग सिटी की सबसे भयावह समस्या विद्यार्थियों द्वारा विविध कारणों से अपनी जीवन लीला समाप्त कर देने के अत्यंत संवेदनशील विषय को आधार बना कर लिखी गई मानवीय पक्ष के सृजन की बानगी है।
भविष्य बनाने आए हो, यह रणभूमि है जिसके मायने समझने होंगे, असफलताओं से सामना भी होगा, तुम्हारी नादानी पिता के लिए कितनी पीड़ा दायक होगी, पिता के तप और त्याग को समझना होगा जिन्होंने तुम्हारी जवानी बनाने के लिए अपनी जवानी होम कर दी, समझना होगा कि मुमकिन कुछ नहीं है के भावों के तानेबाने को बुनकर सृजन के माध्यम से हवन कुंड से तप कर सफल हो कर निकलने की संदेश प्रधान रचना में आगे लिखती हैं….
असफलता पर उंगली उठाने वाले बहुत होंगे ।
तुम्हारी स्थितियों का क्या उन्हें भान,
जो कभी तुम्हारी परिस्थितियों से गुजरे ही नहीं।
तुम्हारे रण के क्या मायने उनके लिए ,
जो कभी रणभूमि में उतरे ही नहीं ।
थककर टूटेगी कमर इक दिन जब पिता की
तुम्हारे छूने से राहत मिल जाएगी ।
तुम्हारी अर्थी को कंधा देकर तो उनके
जीने की आस ही टूट जाएगी ।
ऐ ! चांद के टुकड़ों,आंखों के तारों , मिश्री की डोलियों , मोतियों की लड़ियों ,
रास्ते जिनके जो तय हैं
वह ना तुम्हें पता ना हमें पता ।
बस चलते रहना उस बुढ़ापे के लिए,
जिसने जवानी गला दी ,तुम्हारी जवानी के लिए ।
तुम आ जाना , मां भर लेगी आंचल में ,
तुम आ जाना राहें और भी हैं
तुम आ जाना घर तुम्हीं से रोशन है तुम आ जाना क्योंकि बस तुम हो तो सब कुछ मुमकिन है ।
दिलों को झकझोर देने वाली रचनाकार प्राय: हिंदी में और यदा-कदा राजस्थानी भाषा में गद्य और पद्य दोनों विधाओं में कविता, गीत,कहानी और उपन्यास, हास्य व्यंग्य आदि रचनाएं लिखती हैं। इनकी लेखन शैली प्रेरक,
कथात्मक,व्याख्यात्मक अथवा विवेचनात्मक और वर्णनात्मक है। लेखन में हास्य रस ,करुण रस ,वीर रस ,शांत रस, वत्सल रस और भक्ति रस साफ दिखाई देता है। लेखन का विषय मुख्यतः समसामयिक घटनाओं से प्रेरित है जिसमें अनुभव और आदर्श का वर्तमान घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक विवरण रखने का प्रयास किया गया है।
इनकी कविताएं अंतर्दृष्टि के विकास हेतु चेतना और विवेक को जागृत कर, सही गलत की निर्णय क्षमता विकसित करना और सत्य के लिए खड़े होने, गिरते हुए जीवन मूल्यों को बचाने की मुहिम का संदेश समाज को देती नज़र आती हैं। हताश और निराश जीवन की निरंतरता को बनाए रखने के लिए अपने आसपास बिखरे अदृश्य आनन्दों का आभास करने का पैगाम भी हैं कविताएं।
इनकी कविता ” सती का वियोग” उस धार्मिक प्रसंग का काव्यमय सृजन है जब पार्वती सती हो जाती है और भगवान शंकर उस वियोग में तांडव कर ब्रह्मांड को सिर पर उठा लेते हैं। सती को कंधे पर रख कर तांडव करते हैं। इस दौरान जहां – जहां सती के अंग और वस्त्र गिरते हैं वहां 51 शक्तिपीठ बन जाते हैं। रचनाकार ने सम्पूर्ण प्रसंग को बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है इस सृजन में, देखिए बानगी…
जटा बिछन्न हो रही प्रचंड वेग था भरा,
भुजा में ले निष्प्राण दक्ष सुता, रूप विकराल हो रहा।
मही भी कांपती सी थी,अम्बर स्तब्ध था बना,
महाकाल के रोद्र वेग से ,कैलाश डोलता सा था।
चक्षु अंगार उडेलते से थे,कपोल रक्त तप्त थे, भिंची थीं दंत पंक्तियां ,भृकुटी पर शिखर बने। श्वास धोकनी बनी, नथुनों में कोप का फुलाव था,
अंतर की वेदना में निमग्न ,रुद्र कर्णविहीन थे।
श्वांसों की अग्नि ज्वाला से वसुधा भी भभक उठी,
प्रचंडता विकराल थी जल राशि भी धधक उठी।
जटा की चोट से कई ,विशाल वृक्ष नष्ट थे,
लघु दीर्घ तत्व सभी ,काल के गले मिले।
रुद्राक्ष माला टूट कर, प्रचंड वेग से गिरे ,
गिरे जहां-जहां घोर गर्त निर्मित किए।
पगों की थाप से उठे ,बवंडर विशाल थे, लिपट जिनमें प्राणी जगत ,तुंग पर घूमते थे।
भुजंग, नंदेश्वरी असंतुलित ,जटा में डोलते से थे ,
त्रिशूल के प्रहार से, धरा में पड़ी दरार थे।
डमग् डमग् डमरु का नाद कर्ण भेदी था ,
भाल विस्थापित विधु,शीतल नहीं आज तप्त था।
यह प्रेम था जो बना प्रलय ,त्रिनेत्र थे प्रतिशोध में लय,
कृपा निधान अनभिज्ञ थे तीनों लोक हो रहे क्षय।
विकराल रूप देखकर, देव-नर -प्राणी डरे,
विनीत नतमस्तक नारायण की शरण चले।सतीपति तांडव अब, विनाशकारी हो चला, करो उपाए हे! नारायण, बहुत विनाश हो चुका।क्षीर सागर के निवासी ,जगत कल्याण को उठे,
शेषनाग की शैय्या से ,कमलापति कैलाश चले।
उठा सुदर्शन चक्र ,सती की काया को खंड खंड किए ,
गिरे जहां अंग सती के इक्यावन शक्तिपीठ बने।
थमा अनर्थ ,यह क्रोध पर प्रहार था,
कल्याणकारी ,”योगी शिव”का प्रादुर्भाव था।
प्रेमचंद ,बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, शरद चंद्र , महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, कैफ़ी आज़मी, रामधारी दिनकर, मैथिली शरण गुप्त , सियाराम शरण गुप्त आदि इनके पसंदीदा रचनाकार हैं। इनका प्रभाव भी इनकी रचनाओं पर नज़र आता है। दुनिया किस पर टिकी है…..?
इस शीर्षक से अपनी पहली कविता 1999 में 23 वर्ष की उम्र में लिखी और सृजन यात्रा निरंतर जारी है। इनके जीवन साथी तरूण मेहरा वन विभाग में सेवारत होने से इन्हें प्रकृति के अत्यधिक निकट से अनुभूत करने का अवसर प्राप्त हुआ और उन्हीं के अनुभवों को इन्होंने स्मृतियों के रूप में लिखा है साथ ही देश के विभिन्न प्राकृतिक स्थलों के यात्रा वृतांत भी लिखे हैं।
इनकी कविताओं का एक संग्रह ” पंच सोपान” नाम से राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित हुआ है। पंच सोपान की कविताओं को पांच भागों में विभक्त किया है । प्रथम सोपान “परम शक्ति” को माना है परम शक्ति में से जीव का उद्भव प्रकृति में होता है अतः” प्रकृति” द्वितीय सोपान कहा जा सकता है ।अब जीव अपने परिवर्धन के लिए नारी में संरक्षण प्राप्त करता है अतः नारी तृतीय सोपान है और नारी द्वारा जीव को कर्म करने योग्य बनाया जाता है ,” कर्म “तीसरा सोपान है और कर्म का अंतिम उद्देश्य आनंद है अतः “आनंद” जीव का अंतिम पांचवा सोपान है । इस आनंद में ही परमानंद की प्राप्ति होती है और इस प्रकार परम शक्ति से पुनः चक्र प्रारंभ होता है।
इस प्रकार पंच सोपान पुस्तक की संपूर्ण कविताओं को पांच भागों में विभक्त अवश्य किया है परंतु सभी कविताएं अपने आप में स्वतंत्र रचना है । एक साझा संकलन
“दिशाएं जिंदगी की” में भी आपकी दो कविता प्रकाशित हुई हैं। एक जीवन के विभिन्न आनन्दों से ओतप्रोत कविता है और दूसरी सैनिक के आनंद को सर्वोपरी बताती है।
गद्य लेखन में इनकी कहानियों की विषय वस्तु अधिकांश आसपास घटित छोटी-छोटी घटनाओं से प्रेरित है। जिसमें किसी मजदूर , विक्षिप्त ,नारी मन, भूख ,पारिवारिक आनंद और कहीं राजनीतिक खेल का सृजन करने की कोशिश भी की गई है । साथ ही कुरीतियों और पूर्वाग्रहों को उजागर करने का प्रयास भी है । कहानियों द्वारा समाज के अनछुए पहलुओं को सामने लाने का प्रयास किया है।
ये कहानी संग्रह की कृति पर कार्य कर रही हैं। है। जिसमें से “मेहनत का मोल” कहानी का आकाशवाणी द्वारा प्रसारण हो चुका है और “गुलमोहर का इंतजार” कहानी पुरस्कृत की जा चुकी है। “मेहनत का मोल” कहानी में एक बंगला बनाने के लिए आए हुए कुछ मजदूरों के समूह में से श्यामली मजदूरन की कहानी है जो उस बनते हुए बड़े से घर के हर कोने में स्वयं को रखकर देखती हैं । “गुलमोहर का इंतजार” मैं एक विक्षिप्त बालिका की कहानी है जो अपनी कामकाजी मां से स्नेह और परवाह हासिल नहीं कर पाती और जिसके लिए उसे कामवाली के भरोसे छोड़ दिया गया है । उसकी इस दशा का गुलमोहर के वृक्ष द्वारा अनुभव करना दर्शाया है।
ये एक उपन्यास लेखन पर भी काम कर रही हैं। उपन्यास की कहानी महिला प्रधान है। एकल जीवन यापन करती नारी संघर्षों को दर्शाती है। इस उपन्यास द्वारा महिला सशक्तिकरण को दर्शाया है । विपरीत परिस्थितियां होने पर भी नारी में इतनी क्षमता होती है कि उसे उसके कर्मों को करने से कोई नहीं रोक सकता।
वे कहती हैं यह उपन्यास कोई इसलिए पढ़े, क्योंकि उपन्यास में भारतीय नारी के परिवेश ,उसकी परवरिश , संस्कार , अंकुश का वह चित्रण है जो वास्तविक है और सदियों से चला आ रहा है तथा आज भी पर्दों के भीतर हमारे ही घरों में होता है । भीतर इसकी वास्तविकता आज भी कुंठित है । इसकी कई घटनाएं हमें अपने आसपास घटती हुई या स्वयं पर घटती हुई अनुभूत होती हैं । वर्तमान में ये कहानी संग्रह प्रकाशन की तैयारी में हैं।
परिचय :
मानवीय संवेदनाओं के साथ आनंद की प्राप्ति को लेकर लिखना जिनके लेखन का मर्म है ऐसी रचनाकार मेघना ‘तरुण ‘का जन्म 16 नवंबर 1976 को जोधपुर में पिता ओम प्रकाश मेहरा और माता प्रभा रानी मेहरा के आंगन में हुआ। आपने बी.एससी, हिंदी साहित्य में एम.ए., बी.एड.पीजी डिप्लोमा इन योग साइंस तथा कथक (भूषण, प्राचीन कला केंद्र ,चंडीगढ़ ) शिक्षा प्राप्त की। विद्यार्थी जीवन से अब तक आप काव्य मंचों पर कविता पाठ करती रही हैं। अनेक काव्य प्रतियोगिताओं में भी आपने भाग लिया।
चलते – चलते एक कविता के अंश……..
कविता तुम मेरी पहचान हो
जुड़ी हो मेरी हर धड़कन से
या मेरी आत्मा की आवाज हो
जो बहती हो प्राणों में ,रमती रक्तधारों में
ओह! मेरी कविता….
बस, मैं तुम सी और तुम मुझ सी हो ।