सरकार ने निर्देश दिया है कि प्रत्येक केंद्रीय मंत्रालय को अपने विज्ञापन बजट में यह बताना होगा कि हिंदी में प्रचार के लिए फंड का कितना हिस्सा खर्च किया जाएगा। इसके अलावा मोदी सरकार ने मंत्रालयों से हिंदी भाषा के प्रकाशनों में अंग्रेजी के विज्ञापन जारी न करने को भी कहा है। सभी मंत्रालयों को 29 फरवरी और तीन मार्च को लिखे दो पत्रों में ये नियम बताए गए हैं। सरकार ने एक पत्र में कहा कि है कि उसे 2015 में आधिकारिक भाषा कानून को लागू करने से संबंधित अधिकतम शिकायतें मंत्रालयों की ओर से अंग्रेजी में विज्ञापन हिंदी भाषा के समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाने के मुद्दे पर मिली हैं।
सरकार ने तीन मार्च के पत्र में सभी मंत्रालयों से 30 दिनों के अंदर यह बताने को कहा है कि उनके विज्ञापन बजट का कितना हिस्सा केवल हिंदी में विज्ञापनों के लिए अलग रखा जाएगा। इन नियमों का सभी केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों, सरकारी कंपनियों, स्वायत्तशासी निकायों और सरकारी बैंकों को पालन करना होगा। पत्र में राष्ट्रपति की ओर से 2008 में जारी उन निर्देशों का हवाला दिया गया है जिनमें कहा गया था कि प्रत्येक मंत्रालय को यह बताना चाहिए कि वह अपने बजट का कितना प्रतिशत हिंदी और अंग्रेजी में विज्ञापनों के लिए रखेगा।
सरकार ने 2005 में राष्ट्रपति को प्रपोजल दिया था कि प्रत्येक मंत्रालय को अपने विज्ञापन बजट का 50 प्रतिशत हिंदी विज्ञापनों के लिए और बाकी अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं के लिए रखना चाहिए। हालांकि, राष्ट्रपति ने इस प्रस्ताव में कुछ छूट देते हुए हिंदी में विज्ञापनों पर खर्च की सीमा तय करने का फैसला मंत्रालयों पर छोड़ दिया था। तीन मार्च के पत्र में संकेत दिया गया है कि मंत्रालयों ने इस पर काम नहीं किया है और उन्होंने यह नहीं बताया है कि वे हिंदी विज्ञापनों के लिए कितना बजट रखेंगे।
29 फरवरी के पत्र में चार अन्य बड़ी शिकायतों का भी जिक्र है। इनमें सरकारी वेबसाइट्स का दो भाषाओं में न होना, हिंदी में लिखे पत्रों का अंग्रेजी में जवाब देना, मंत्रालयों में हिंदी के उपयोग के लिए लक्ष्य चूकना, आधिकारिक कार्य और सरकारी कार्यालयों में दस्तावेजों में हिंदी का कम उपयोग और बैंकों, इंश्योरेंस कंपनियों के फॉर्म दो भाषाओं में न होकर केवल अंग्रेजी में होना शामिल हैं।
साभार-इकॉनामिक टाईम्स से