जुग जुग जियो जस्टिस जिया पॉल

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के जज एम. जियापॉल ने गजब किया। वे सुबह घूमने निकले थे कि उन्होंने देखा कि एक लड़की सुखना झील में बस डूबने ही वाली है। किनारे खड़े लोग चिल्ला रहे हैं लेकिन कोई कुछ नहीं कर रहा है। जज साहब ने आव देखा न ताव! वे कपड़े पहने हुए ही झील में कूद पड़े, उस लड़की को बचाने। जज साहब को कूदते देखकर उनके निजी अंगरक्षक यशपाल ने भी छलांग लगा दी। डूबती हुई लड़की इतने में और आगे बह गई। अंगरक्षक यशपाल कुशल तैराक है। उसने जाकर उस डूबती लड़की को पकड़ लिया लेकिन जज साहब ने देखा कि लड़की और यशपाल दोनों ही डूबने लगे। वे दम फूलने के बावजूद तेजी से तैरकर उनके पास चले गए।

यशपाल की हिम्मत बढ़ी और वह एक झटके से ऊपर आ गया। लड़की ने उसे कसकर पकड़ रखा था। तीनों बड़ी मुश्किल से पानी के बाहर आए। लड़की आधी बेहोश थी। उसे उल्टा लिटाकर उसके पेट से पानी निकाला और अस्पताल में भर्ती करवाया। जज और यशपाल ने अपनी जान दॉव पर लगाकर एक बच्ची की जान बचाई।

उस बच्ची ने इसलिए झील में छलांग लगा दी थी कि उसका पिता उसे आगे नहीं पढ़ाना चाहता था। उसने नौंवी पास कर ली थी। उसका पिता चंडीगढ़ में रिक्शा चलाता है। जस्टिस जि़यापॉल−जैसे कितने जज, कितने नेता, कितने प्रोफेसर, कितने डॉक्टर, कितने पत्रकार इस देश में हैं, जो एक अनजान लड़की को बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दें? उनके अंगरक्षक का नाम तो राजकीय सम्मान के लिए सुझा दिया गया है लेकिन जस्टिस जियापॉल तो राष्ट्रीय सम्मान के हकदार हैं। जि़यापॉल जैसे लोग राष्ट्र ही नहीं, मानवता की शोभा हैं। हमारे देश के टीवी चैनल और अखबार टटपूंजिए नेताओं (और अभिनेताओं) के लिए अपना समय और स्थान बर्बाद करते रहते हैं। उनके जीवन से किसी को कोई प्रेरणा नहीं मिलती लेकिन जियापॉल− जैसे विलक्षण पुरुष के शौर्य की कहानी को हाशिए में डाल देते हैं। जि़यापॉल जैसे सत्पुरुष को किसी पुरस्कार ओर सम्मान की जरुरत नहीं है। पुरस्कार और सम्मान पाने वाले लोग अपनी जान दांव पर नहीं लगाते। वे अपनी जान पुरस्कारों में लगाते हैं। दुनिया को वे ही प्रेरणा देते हैं और बदलते हैं, जिन्हें सिर्फ अपने कर्तव्य की परवाह होती है। न जान की, न शान की, न पुरस्कार की और न ही तिरस्कार की!

साभार-  http://www.nayaindia.com/ से