हमारी अधूरी कहानी (सस्पेंस ड्रामा )

दो टूक : रिश्ते कैसे बनते हैं और किस बिनाह पर ज़िंदा रहते हैं। क्या हम किसी ऐसे रिश्ते पर यकीन कर उसके साथ हो सकते हैं जो हमारे वर्तमान को हमारी तरह जीता है या फिर किसी ऐसे भूले रिश्ते के साथ एक याद के सहारे ज़िंदगी बिता दें जिसे न हमारे वर्तमान की परवाह हो और न ही बीते हुए कल की। निर्देशक मोहित सूरी की विद्या बालन, इरमान हाशमी, राजकुमार राव, नरेंद्र नरेंद्र झा, सारा खान,  मधुरिमा तुली, अमला, अनिल जॉर्ज, राजीव गुप्ता, सुहासिनी मुले और प्रबल पंजाबी के अभिनय वाली फिल्म हमारी अधूरी कहानी भी कुछ ऐसे ही रिश्तों  की कहानी है। 

कहानी : फिल्म आरव (इमरान हाशमी) और वसुधा प्रसाद (विद्या बालन) की है. आरव दुनिया के शहरों में होटल चलाने वाले का बिजिनेस  करता है और वसुधा उसके होटल में काम करती। है.  वसुधा की काम के प्रति निष्ठा और सरलता उसे प्रभावित करती है और वो उसे प्रेम करने लगता है। वसुदा उसका प्रेम स्वीकार नहीं कर सकती। वो पहले ही विवाहित है और एक बेटे की माँ भी। लेकिन उसका पति हरी पाण्डेय (राजकुमार राव ) लापता है। हालत बदलते हैं तो वसुधा भी आरव के प्रेम को स्वीकार कर लेती है। लेकिन वसुधा की दुविधा तब बढ़ती है जब एक दिन हरी लौट आता है और वो अब वसुधा के साथ रहना चाहता है। यही नहीं, हरी पर अब नक्सल और हत्यारा होने का आरोप भी  है। क़ानून उसे मौत की सजा दे चुका है। आरव उसकी मदद का फैसला लेता है और सबूत जुटाने नक्सली इलाके में जाने का फैसला करता है तो जो कुछ घटता है उसकी उम्मीद किसी को नहीं होती.

गीत संगीत : फिल्म में राजू सिंह के साथ जीत गांगुली , मिथुन और एमी मिश्रा का संगीत है और सईद कादरी, कुणाल वर्मा, रश्मि वर्मा और रश्मि सिंह के गीत है। पर श्रेया घोषाल, दीपाली साठे, पापोन, अमी मिश्रा के साथ जीत गांगुली के गए फिल्म के गीतों में बस राहत फतह अली का गाया गीत और शीर्षक गीत ही प्रभावित करता है।

अभिनय : वैसे तो फिल्म के केंद्र में विद्या बालन हैं लेकिन उनके पात्र के चरित्र का आधार इमरान हैं। विद्या परदे पर फैली हुई दिखती हैं और लॉन्ग शॉट में उनके दृश्य बहुत काम हैं।  वो वैसे भी अपने पात्र को गढ़ने के लिए अधिकतर अपनी शारीरिक भाषा का इस्तेमाल करती है. संवाद बोलने में आज भी उनकी काबिलियत कम दिखती है। पर कुछ दृश्य हैं जो फिल्म में उनके एक सक्षम अभिनेत्री होने का दावा करते हैं। अपने पति का इन्तजार करती और फिर प्रेम के बीच उलझी विद्या मोटापे के बावजूद अच्छी लगती हैं। 

इमरान अब  मंझे हुए अभिनेता हैं और अपने  आरव के किरदार और उसकी जद्दोजहद को वो क्लोज शॉट्स में बेहतर भावों के साथ सामने आते हैं खासतौर से संवाद अदायगी में उनका आरोह अवरोह बहुत अद्भुत किस्म का है। राजकुमार राव हरि की भूमिका  चौंकाते हैं और इस बार वो कुछ कुछ नकारात्मक चरित्र में  हैं।  

कुंठिंत और एक ऑब्सेस पति की भूमिका को वो एक नए  कथ्य के शिल्प  के साथ  परदे पर अंकित करते हैं।  हालांकि उनकी भूमिका बहुत बड़ी नहीं है पर  वो ही इमरान और विद्या के साथ फिल्म के ऐसे पात्र हैं जो फ्रेम में ना होते हुए  भी अपनी उपस्थिति बनाये रहते हैं।  फिल्म की उपलब्धि हैं पुलिस अफसर की भूमिका में नरेन्द्र झा। जो अंत तक याद रहते है. उनकी आवाज़ में एक शानदार प्रभाव है जो अपने पात्र को ही नहीं बल्कि संवादों को भी को भी प्रभावशाली बना देता है। अमला बहुत समय बाद दिखाई दी।  

प्रबल पंजाबी के बारे में क्या कहूँ।  अपनी समीक्षा लिखने से पहले मैं कुछ और समीक्षकों की समीक्षाएं पढ़ रहा था पर कहीं उनका जिक्र नहीं मिला। प्रबल फिल्मों में नायक के नए दोस्त की भूमिका के लिए सबसे मुफीद अभिनेता हैं। सारा खान, मधुरिमा तुली, अनिल जॉर्ज और  राजीव गुप्ता के साथ सुहासिनी मुले छोटी छोटी भूमिकाओं में हैं लेकिन वो अपने पात्रों के व्याकरण के साथ दिखाई देते हैं।

निर्देशन : गौर से देखा जाये तो फिल्म में कुछ  भी नया नहीं है।  कहानी महेश भट्ट की है और मोहित ने उसे अर्थ जैसी फिल्मों के साथ सिलसिला और कई दूसरी फिल्मों से जोड़कर रच दिया है। फिल्म का शिल्प और कथ्य भी बहुत धीमा है और विवाहेतर संबंधों को भी कुछ नया अंदाज नहीं देते। पर वो उसे आज  की नयी औरत,परंपरा और मर्यादा के साथ जोड़कर जिस रूप में प्रस्तुत करते हैं वो एक औरत की कहानी भर नहीं है बल्कि ढकोसले , विसंगति और  कई औरतों की त्रासदियों के लिए समाज से सवाल पूछने वाला दस्तवेज भी है। बस उसे ढंग से पढ़ने की जरुरत है।

फिल्म क्यों देखें : इमरान और विद्या बालन के साथ राजकुमार राव के अभिनय के लिए. 
फिल्म क्यों न देखें : अगर इसे एक कहने का सीक्वल समझ रहे हों तो।