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अध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर एक जन्म दिन, जो यादगार बन गया

मुंबई का श्री भागवत परिवार भले ही बहुत कम लोगों का समूह है लेकिन इसके अध्यात्मिक मार्गदर्शक पं. श्री वीरेन्द्र याज्ञिक जी के मार्गदर्शन में श्री भागवत परिवार बगैर किसी शोर-शराबे के कई ऐसे कार्य करता है, जो किसी मिसाल से कम नहीं। निर्धन छात्र-छात्राओं को पाठ्य पुस्तकें व कापियाँ वितरित करने से लेकर मुंबई के पास के वनवासी क्षेत्रों में जाकर वनवासी युवक युवतियों के विवाह का आय़ोजन श्री भागवत परिवार द्वारा किया जाता है। मुंबई की अध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करने में भी श्री भागवत परिवार की अहम भूमिका है।

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इस बार कोरोना के कहर और लॉक डाउन के बीच याज्ञिकजी के मार्गदर्शन से मुंबई के युवा समाजसेवी व धर्मनिष्ठ श्री मुकुल अग्रवाल का पचासवाँ जन्म दिन श्रीविष्णुसहसत्रनाम के पाठ के साथ मनाया गया तो इस उत्सव में शामिल सभी आत्मीय जन भाव विभोर हो उठे। जन्म दिन के नाम पर अंग्रेजी व पश्चिमी शैली से फिल्मी तरीके से नाच गाकर, डीजे के कानपोड़ू शोर में केक काटकर जन्म दिन मनाने के आदी लोगों के लिए जन्म दिन का ये आयोजन जीवन का एक दुर्लभ अवसर बन गया। इस आयोजन के लिए श्रीमती कृतिका गोयल ने जिस कल्पनाशीलता से सजावट कर पूरे वातावरण को अध्यात्मिकता सौंदर्य प्रदान किया वह भी अपने आप में अद्भुत और रोमांचक था।

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श्री वीरेन्द्र याज्ञिक के ओजस्वी स्वरों में विष्णुसहसत्रनाम के पाठ में हर श्लोक के साथ ओम नमो भगवते वासुदेवाय के उच्चारण के साथ भागीदारी करते हुए यहाँ उपस्थित हर व्यक्ति को लगा जैसे किसी अध्यात्मिक गहराई में डूब गया है। डेढ़ घंटे में विष्णुसहस्त्रनाम का समापन होते ही हर किसी को ऐसा अनुभव हुआ जैसे वह किसी अध्यात्मिक शिखर को छूकर लौटा है।

याज्ञिकजी ने विष्णुसहस्त्रनाम की पृष्ठभूमि और इसके महत्व की बहुत ही सारगर्भित ढंग से व्याख्या की। उन्होंने बताया कि महाभारत के अनुशासनपर्व में कुरुक्षेत्र मे बाणों की शय्या पर लेटे पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को इसका उपदेश दिया था। इसमें प्रत्येक नाम विष्णु के अनगिनत गुणों का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि अगर इस पर विस्तार से कहा जाए तो एक श्लोक या एक शब्द पर ही दिन भर बोला जा सकता है।

उन्होंने भारतीय परंपरा में जीवन के विभाजन को दुनिया की बेहतरीन व्यवस्था बताया। उन्होंने कहा कि दुनिया की किसी परंपरा में महाभारत जैसा महाकाव्य नहीं है। इसमें एक लाख श्लोक हैं और मनुष्य जीवन के कई आयामों को प्रतिबिंबित करते हैं। जीवन के पचासवें वर्ष का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पचासवाँ वर्ष जीवन की आधी यात्रा पूरी होने का संकेत है।

उन्होंने कहा कि हमारी भारतीय परंपरा में 25 वर्ष ब्रह्मचर्य के लिए समर्पित होते हैं जिसका अर्थ है 25 वर्ष पुरीषार्थ कर जीवन की आगे की यात्रा की तैयारी करना है। 25 से 50 वर्ष पारिवारिक या गृहस्थ जीवन को समर्पित है। 25 का पूर्णांक 7 होता है जिसका अर्थ है इसे किसी भी अंक से विभाजित नहीं किया जा सकता। पचास का पूर्णांक 5 होता है, इसका अर्थ है हमारा शरीर जिन पंचभूतों से बना है, उनका उपयोग हम समाज के लिए करें, तभी जीवन की सार्थकता है। जीवन के 75वें वर्ष का पूर्णांक है , तीन इसका अर्थ है हमें आदि भौतिक, आदि दैहिक व आदि अध्यात्मिक रूपी त्रिगुणात्मक शक्तियों के साथ आगे का जीवन जीना है। जीवन के सौ वर्ष का अर्थ है हमें जीवन को एक परमात्मा के साथ एकाकार करना है। सौ में दो शून्य शरीर और आताम का प्रतीक हैं और एक- एक ईश्वर का प्रतीक है। हमें शरीर और आत्मा के साथ एक ईश्वर के प्रति समर्पित होना है, यही जीवन के सौ वर्ष का सारतत्व है।

श्री मुकुल अग्रवाल के आत्मीय मित्रों के लिए भी ये एक अद्भुत आत्मीय अनुभव था। श्री बिमल केड़िया जो मुंबई के समाजसेवा के क्षेत्र में एक जाना माना नाम है, ने कहा कि इस कार्यक्रम में जिस अहोभाव के साथ हमने भगवान का स्मरण किया है ऐसा हम अपने रोजमर्रा के जीवन में शायद ही कभी ले पाते हैं। मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. करुणा शंकर उपाध्याय ने कहा कि श्री मुकुल अग्रवाल ने गोरेगाँव स्पोर्ट्स क्लब में रहते हुए क्लब को अध्यात्मिक चेतना प्रदान की। उनके नेतृत्व में क्लब में अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन जैसा आयोजन संपन्न हुआ।

श्री सुनील देवली ने कहा कि मुकुल अग्रवाल एक ऐसा व्यक्तित्व है जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। यही एक ऐसा व्यक्ति है जो अपनी हर बात में किसी व्यक्ति के साथ समाज और राष्ट्र के बारे में भी सोचता है। हर किसी की मदद करना और मदद करके भूल जाना मुकुल का स्वभाव है। श्री सुनील सिंघानिया ने कहा कि मुकुल से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इसके व्यक्तित्व के कई आयाम हैं। श्री भागवत परिवार के श्री शिवकुमार सिंघल ने कहा कि मित्रता क्या होती है ये मुकुल अग्रवाल से सीखना चाहिए। इन्होंने अपने आसपास ऐसे मित्रों का समूह तैयार किया है जो हमेशा सकारात्मक ऊर्जा से काम करता है। पुणे से आए मुकुल अग्रवाल के मामाजी ने भी मुकुल जी के बचपन के यादगार संस्मरण साझा किए।

श्री याज्ञिक जी और बिमल जी केड़िया ने इस अवसर पर श्री मुकुल अग्रवाल के स्व. पूज्य पिता श्री महावीर जी नेवटिया का स्मरण करते हुए कहा कि उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा के प्रति समर्पित कर दिया। जहाँ जैसे भी संभव होता वे हर संस्थान और व्यक्ति की मदद करने से नहीं चूकते थे।

कार्यक्रम का संयोजन मुकेश पुरोहित ने किया। यद्यपि एस पी गोयल भले ही जयपुर में थे,किन्तु उनके निर्देशन में यह यादगार आयोजन संभव हो सका। आयोजन को सफल बनाने में महेश पांडे की उल्लेखनीय भूमिका रही।

श्री मुकुल अग्रवाल ने अपने कृतज्ञता ज्ञापन में कहा कि मुंबई में सभी लोग संघर्ष से ही आगे बढ़े हैं, मेरे पिताजी ने भी बहुत संघर्ष किया। मैं मेरे पिताजी के साथ सत्संग में जाता था तो पहली बार मैने राम का नाम सुना और राम का नाम मेरे लिए एक शक्ति और संबल का प्रतीक बन गया। उन्होंने कहा कि माता-पिता ने हमें जो संस्कार दिए वही हमारी असली पूँजी है। मुझे गर्व है कि मुझे मेरी पत्नी का हर कदम पर सहयोग व संबल मिला। वह पूरी तरह अपने घर बच्चों और परिवार में समर्पित है और मुझे समाज में काम करने की हिम्मत और प्रेरणा भी इसलिए मिलती है कि मुझे घर की चिंता नहीं करनी पड़ती।