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नेपाल के हिंदी योध्दा श्री राजेश्वर नेपाली से एक संवाद

विश्व हिंदी दिवस पर विशेष

नेपाल में गत 62 सालों से हिंदी को राज भाषा का दर्जा दिलाने के लिए संघर्षरत एक साधारण सा सामान्य व्यक्ति धोती- कुर्ता पहने आप को नेपाल की जमीं पर कभी भी मिल जायेंगे. जिसे देख कर आप नहीं सोच सकेंगे यह वही व्यक्ति हैं जो नेपाल में हिंदी की अलख जगाने के लिए पिछले 62 वर्षों में 35 से अधिक बार नेपाली जेलों की चारदीवारी में न जाने कितने दिन यातनाओं को भोगा है, जी हाँ इनका नाम है राजेश्वर नेपाली। उम्र है 78 साल के आस-पास। अब तक हिंदी में कई पुस्तकें लिख चुके हैं ,लेकिन सम्मान की तनिक चाह नहीं, बल्कि हिंदी विद्वानों को सम्मान देने की लालसा जरूर उनके मन में है। पिछले दिनों नेपाल के बीरगंज में आयोजित नेपाल हिंदी महोत्सव में उनसे एक मुलाकात हो गई ,तो उससे बतियाने का अपना मोह नहीं रोक सका। जिसे आप के लिए भी परोस रहा हूँ…… .

**राजेशवर नेपाली जी आप पिछले 62 वर्षों से नेपाल में हिंदी को राज भाषा का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस दौरान कई बार जेल भी गए, क्या आप को लगता है कि नेपाल में अब हिंदी की स्थिति में कोई सुधार हुआ है?

* इस सन्दर्भ में आप को जानना होगा कि 57 में नेपाल सरकार की ओर से 26 दिसंबर को एक अधिसूचना जारी की गई थी ,जिसमे यह कहा गया था कि अब नेपाल में पढ़ाई का माध्यम नेपाली होगा, (यहाँ यह बताना समायोचित होगा कि तब तक वहां पर हिंदी माध्यम से पढ़ाई होती थी),जो भारतीय नागरिक व शिक्षक हैं वे नेपाल की नागरिता स्वीकार कर लें, फिर उसके बाद ही हिंदी के लिए एक आंदोलन शुरू हुआ ,ठीक एक महीना बाद पुरे मधेश ( तराई वाले नेपाल क्षेत्र ) में ही नहीं काठमांडू घाटी तक एक व्यापक आंदोलन शुरू हुआ कि हिंदी को नेपाल की राष्ट्र भाषा बनाई जाये? देखते-देखते आंदोलन इतना बढ़ गया कि नेपाल की तत्कालीन सरकार को सरकार को ही बर्खास्त करना पड़ा। इसी के बाद नेपाल में तत्कालीन राजा ने वहां की सत्ता को अपने अधीन में ले लिया।

वे (नेपाल के राजा ने) तुरंत हिंदी रक्षा समिति के प्रतिनिधियों से मिले और बात की और आश्वासन देते हुए हिंदी आंदोलन को फ़िलहाल स्थगित करने का अनुरोध किया। 1960 की 16 दिसंबर को जब नेपाल में संसदीय प्रणाली सिस्टम को समाप्त कर राजा ने पूरे देश की व्यवस्था को अपने तहत टेक ओवर कर लिया। उसके बाद “एक भाषा-एक देश,एक राजा-एक देश ” का नारा दिया गया ,बस उसी के आधार पर वहां पर सभी भाषाओँ को समाप्त कर दिया गया (जिसमें हिंदी के साथ-साथ मैथली,भोजपुरी, अवधी व् नेवरी जैसी स्थानीय भाषाएँ भी शामिल थीं).

केवल इतना ही नहीं ,यहाँ तक की तब भारत – चीन के बीच जब युद्ध हुआ तो चीन ने उस दौरान भी रेडियो बीजिंग से अपना हिंदी समाचार बुलेटिन तक नहीं बंद किया था,लेकिन नेपाल रेडियो ने हिंदी के समाचारों के बुलेटिन के अलावा सभी हिंदी के कार्यक्रम तक बंद कर दिए। हिंदी के साथ -साथ नेवरी (नेपाल-भारत की सीमा से लगे स्थानीय लोगों की आम- बोल चल की भाषा है),को भी बंद कर दिया गया. सिर्फ नेपाली और अंग्रेजी को रहने दिया गया। अब आप सोचिये जिस देश में एक प्रतिशत लोगों को अंग्रेजी न आती हो वहां पर अंग्रेजी को रहने दिया गया.

राजेश्वर नेपाली जी, नेपाल में हिंदी के आंदोलन को ले कर आप की क्या भूमिका रही,कहतें हैं कि कई बार आप जेल भी गए ? जिसके लिए आप अभी तक संघर्षरत हैं ?

* आंदोलन का मुख्य उद्देश्य है कि जब सन 1972 में नए शिक्षा के नाम पर नेपाल में हिंदी की पढ़ाई पूरी तरह से बंद कर दी गई। जो आज तक जारी है,अब केवल कालेजों में ही पढ़ाई जाती है। प्राथमिक स्तर से लेकर माध्यमिक स्तर तक हिंदी की शिक्षा बंद कर दी गई। नतीजा यह हुआ की हिंदी के छात्रों के भविष्य के आगे अँधेरा छा गया। अब केवल विश्विद्यालय स्तर पर पढ़ाई जाती है,लेकिन वह केवल नाम के लिए ही है,ताकि भारत को दिखाया जा सके की यहाँ पर हिंदी पढाई जाती है. उस भाषा का क्या स्तर होगा जिसका आधार ही नहीं होगा, आप खुद ही सोचो ? यही कारण है की आज भी नेपाल में हिंदी की अवस्था बहुत दयनीय है.वैसे नेपाल में आज भी पौने तीन करोड़ की जनसंख्या में आधे से अधिक लोग हिंदी बोलते हैं ,केवल बोलते ही नहीं ,लिखते हैं,पढ़ते हैं। उनके पठन -पाठन की सामग्री भी हिंदी की किताबों से ,पत्र-पत्रिकाओं से उपलब्ध होती है. यह सही है कि मैं कई बार नहीं ,35 बार हिंदी आंदोलन के चलते जेल गया ,और जब तक साँस है हिंदी के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ , क्यों न अपनी जान देनी पड़े।

नेपाल में हिंदी की पत्र -पत्रिकाओं की क्या स्थिति है ?

जी बिलकुल आती हैं ,नेपाल से हिंदी की पत्र-पत्रिकाएं भी निकलती है. लोग चाव से लेकर पढ़ते हैं. लेकिन कभी-कदापि राजनीतिक तौर पर दोनों देशों के बीच कोई रिश्ता बिगड़ जाता है तो भारत से आने वाली पत्र-पत्रिकाओं के यहाँ आने पर कठिनाई हो जाती है. लेकिन सामान्य तौर पर भारत की हर बड़ी पत्र-पत्रिकाएं नेपाल में आती हैं , और बिकती हैं.

आने वाले दिनों में हिंदी को आप नेपाल में किस तरह से देखते हैं ?

देखिये नेपाल में हिंदी आज जरूरत की भाषा है . ठीक है आज बचपन से हिंदी नहीं पढ़ाई जा रही है ,लेकिन टी वी चैनलों के माध्यम से हमारे बच्चे हिंदी सीख रहे हैं , जानते हैं ,समझते हैं. क्योंकि उनके मस्तिष्क पर वह धर जाती है. फिर नेपाल की जनसंख्या में से पचास से साठ लाख लोग भारत में नौकरी करते हैं , ऐसे लोग हिंदी के बीच में ही रहते हैं ,फिर घर लौटते हैं तो भी हिंदी के बीच में ही होते है. इस लिए हिंदी नेपाल की पूरक है, कोई भी कितना भी षड्यंत्र कर ले , लेकिन हिंदी को नेपाल से मिटाया नहीं जा सकता है. मज़े की बात यह है की जनसंख्या के बढ़ने के साथ हिंदी भाषियों की संख्या भी बढ़ रही है. नेपाली संसद में भी बहुत से सांसदों ने हिंदी में ही शपथ ली थी। वे आगे कहते हैं कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ,जिसकी आज सरकार है उसी के नेता मन मोहन अधिकारी जो प्रधान मंत्री भी थे ने पच्चीस साल पहले काठमांडू स्थित त्रिभुवन विश्विद्यालय में आयोजित एक सभा में इस बात को कहा था कि ” नेपाल में हिंदी को विदेशी भाषा कहना सबसे बड़ी मूर्खता है। “.

संपर्क

प्रदीप श्रीवास्तव

लखनऊ उत्तर प्रदेश

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