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हिंदी का एक समर्पित महर्षिः डॉ. महेश चन्द्र गुप्त

यूं तो हिंदी के माध्यम से आजीविका पानेवालों और हिंदी केविद्वानों की एक लंबी फेहरिस्त है, लेकिन पूर्ण निष्ठा व समर्पण भाव से हिंदी के प्रचार – प्रसार के लिए संघर्षरत हिंदी-सेवियों की गिनती करनी हो तो हाथों की उंगलियाँ पर गिना जा सकते हैं। जब मैं राजभाषा विभाग की सेवा में आया तब से एक नाम कई बार सुनने को मिलता रहा वह नाम था – ‘डॉ. महेशचंद्र गुप्त’ । उन दिनों केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद’ नामक संस्था काफी सक्रिय थी। मुंबई में इसकी शाखा थी जिससे मैं भी जुड़ गया था। इसमें केंद्रीय कार्यालयों के अधिकारा / कर्मचारा स्वयंसेवकों के रूप में परस्पर सहयोग व समन्वय से केंद्रीय कार्यालयों में सरकारी कामकाज हिंदी में करवाने के प्रयास करते थे। इसके द्वारा कार्य हेतु तैयार करवाया गया सहायक-साहित्य कार्यालयों में काफी उपयोग में लाया जाता था। इस कार्य के पीछे भी ‘डॉ. महेशचंद्र गुप्त’ का महत्वपूर्ण भूमिका थी।

उनसे मेरी पहली मुलाकात तब हुई जब वे रेलवे बोर्ड में निदेशक (राजभाषा) थे। मुंबई में मध्य रेल तथा पश्चिम रेल मुख्यालयों की क्षेत्रीय राजभाषा कार्यान्वयन समिति की अनेक बैठकों में रेलवे बोर्ड की और से उनका आना होता था और गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय की ओर से मेरा जाना होता था। संघ की राजभाषा नीति का उनका विषद् ज्ञान तथा हिंदी के प्रति उनका दृढ़ दृष्टिकोण प्रभावित करता था । जहाँ प्राय: अधिकारियों की औपचारिकताओं की पूर्ति की दृष्टि दिखाई देती है वहीं उनकी राजभाषा के लिए समुचित निर्णय करवाने तथा जवाबदेही तय करवाने का उनका रुख प्रभावित करता था। जब मेरे किसी सुझाव को वरिष्ठ अधिकारी गोलमोल करने का प्रयास करते तो वे उसे निर्णय में परिवर्तित करवाने में दृढ़ता से सामने आते । तब मुझे लगा कि कोई तो है जो एक प्रहरी की भांति संघ की राजभाषा के लिए सजगतापूर्वक एक वीर की भांति डटा है हालांकि तब तक उनसे कोई सीधा संबंध न था लेकिन राजभाषा हिंदी के प्रति लगाव के चलते कई बैठकों और कार्यक्रमों में उनसे मिलना हुआ । तब तक भी मुझे उनके बारे में बहुत अधिक जानकारी न थी । बाद में उनके संबंध में जो जानकारी मुझे मिली उससे मेरी क्षद्धा उनके प्रति और अधिक बढ़ गई।

डॉ. महेशचंद्र गुप्त का जन्म देवबंद (जिला सहारनपुर), उत्तर प्रदेश में हुआ था । वे इंजीनियरी के विद्यार्थी थे। रुड़की विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरी में प्रथम श्रेणी में डिप्लोमा प्राप्त करके सन् 1961 में उन्होंने सिविल इंजीनियरी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग में सिविल इंजीनियर नियुक्त हुए। केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग में सिविल इंजीनियर रहते हुए उहोंने अनेक भवनों आदि के अभिकल्पन किए और नेपाल, भूटान में अनेक निर्माण कार्य, पहाड़ी सडकों और जलापूर्ति आदि के कार्य कराए । नेपाल में होते हुए निर्माण कार्यों के ठेकेदारों से हिंदी में पत्र व्यवहार का सूत्रपात कर दिया, जिससे 1970 से 1972 के दौरान ठेकेदारों को बहुत सुविधा हुई ।

सन् 1963 से ही केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् के सदस्य बनते ही उन्होंने भाषा की दृष्टि से कठिन माने जाने वाले कठिन मोर्चों पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने भवनों के संरचनात्मक आरेख हिंदी में बनवाने का दुष्कर कार्य आरंभ करा दिया । तत्पश्चात केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् में ही अवैतनिक कार्यालय मंत्री, साहित्य-संस्कृति मंत्री, प्रतियोगिता मंत्री आदि रहे । सन् 1964-65 में डॉ. महेश चन्द्र गुप्त ने मुंबई में हिंदी परिषद् की अनेक शाखाएँ विभिन्न केन्द्रीय कार्यालयों में स्थापित कराई ।


केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग में कार्यपालक इंजीनियर (हिंदी) का दायित्व संभालते हुए पूरे विभाग में हिंदी प्रयोग का और तकनीकी कार्य हिंदी में कराने का अभियान चलाया । विभाग का लगभग संपूर्ण तकनीकी साहित्य हिंदी में अनुवाद कराकर सुलभ करा दिया । इस बीच केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् के अवैतनिक संगठन मंत्री और राष्ट्रीय महामंत्री के दायित्व भी संभाले रहे ।

भले ही इजीनियरी के क्षेत्र में कार्यरत थेलेकिन उनकी आत्मा तो संघ की गाजभाषा को उसका सही सम्मान व संथान दिलवाने के लिए लालायित थी। इसीके चलते उन्होंने केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग जैसे विभाग को छोड़कर सन् 1985 में भारत सरकार के गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग में निदेशक (अनुसन्धान) का पद भार संभाला और इंजीनियरी सेवा को तिलांजलि दे दी । इसी दौरान भारत सरकार की सोलह ऐसी सूचनात्मक फ़िल्में बनवाईं, जिनसे देश में और प्रदेशों में हिंदी के प्रयोग और प्रसार का दिग्दर्शन हुआ, जिनमें से हिंद की वाणी, देश की वाणी, एकता की वाणी, संघ की भाषा, अरुणांजलि, मेघांजलि, पूर्वांजलि, उत्कलांजलि, मणिपुर गाथा आदि मुख्य हैं । तब से अब तक फिर दोबारा ऐसा कार्य नहीं हो सका।

राजभाषा विभाग में रहते हपए उन्होंने अनेक केन्द्रीय कार्यालयों का और बैंकों आदि का हिंदी प्रयोग और प्रसार के लिए निरीक्षण किए और सैंकड़ों कार्यशालाओं में निःशुल्क व्याख्यान देकर हजारों अधिकारियों का मार्गदर्शन किया । साथ-साथ राजभाषा भारती पत्रिका का 7 वर्ष तक सम्पादन भी किया ।

सन् 1993 में रेल मंत्रालय में संघ लोक सेवा आयोग के माध्यम से निदेशक (राजभाषा) का दायित्व संभाला और रेल राजभाषा पत्रिका के संपादन के साथ-साथ भारतीय रेलों के सैंकड़ों कार्यालयों के निरीक्षण किए और सैंकड़ों बैठकों में शामिल होकर हिंदी का प्रसार किया । तकनीकी कार्य हिंदी में करवाए और हिंदी पुस्तकालयों का विस्तार किया ।

डॉ. महेशचंद्र गुप्त सेवानिवृत्ति की आयु आने पर सरकारी सेवा से निवृत्त हुए लेकिन हिंदी की सेवा से उन्हें कौन निवृत्त कर सकता था । इसलिए वे हिंदी के अथक प्रहरी की तरह हिंदी प्रसार के कार्यों में लगे रहे। सेवानिवृत्ति के बाद वे केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद्, हिंदी व्यवहार संगठन, भारतीय भाषा सम्मेलन, हिंदी साहित्य सम्मेलन और नागरी लिपि परिषद् आदि में उन्होंने सेवाभाव से हिंदी के प्रसार के लिए संपूर्ण समय समर्पित कर दिया । उन्होंने भारत सरकार के मंत्रालयों, कार्यालयों और अधिकारियों को सैंकड़ों पत्र हिंदी प्रयोग अभियान को बढ़ाने के लिए लिखे । सन् 1997 में सांस्कृतिक गौरव संस्थान की स्थापना कराई जो भारत के नागरिकों के कर्तव्यों के पालन हेतु सक्रिय है । उसके माध्यम से भी वे हिंदी व अन्ट भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार के कार्य को करते रहे।



डॉ. महेशचंद्र गुप्त मंत्रालयों की हिंदी सलाहकार समितियों में केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् के प्रतिनिधि के रूप में विशेषतः गृह मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, योजना मंत्रालय, खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय, शहरी विकास एवं आवास मंत्रालय आदि में हिंदी प्रयोग-प्रसार के लिए पूरे तन-मन से भरपूर प्रयत्न किए । भगवान की कृपा से अभी-भी हिंदी और भारतीय संस्कृति की सेवा में अखिल भारतीय संस्थान सांस्कृतिक गौरव संस्थान के माध्यम से लगे हुए हैं । हाल ही में जब संविधान की अष्टम अनुसूची में हिंदी की बोलियों के नाम पर हिंदी को विघटित न करने के के मुद्दे पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने हिंदी बचाओ मंच के प्रतिनिधिमंडल को आमंत्रित क्या तो भी महेशचंद्र गुप्त हिंदी के एक सजग प्रहरी की तरह वहाँ पहुंचे और हिंदी को बोलियों में विघटित करने के दूरगामी दुष्प्रभावों के प्रति सरकार को सचेत किया।

सेवा निवृत्ति के इतने लंबे अर्से बाद भी वे पहले की भांति या यूँ कहें कि और भी अधिक सक्रियता से भारत भाषा प्रहरी की तरह दिन-रात हींदी की सेवा में लगे हुए हैं । वैश्विक हिंदी सम्मेलन भारत-भाषा प्रहरी डॉ. महेशचंद्र गुप्त को हिंदी के प्रचार-प्रसार के प्रति उनके अमूल्य योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है। हमें आशा है कि आनेवाली पीढ़ियां भी उनके व्यक्तितत्व और उनके कार्य से प्रेरणा ले सकेंगी।

संपर्कः डॉ. महेशचंद्र गुप्त
{Fellow of the institution of Engineers (India), Ph. D., D. Lit. (Hindi)}
घर का पता – मकान नं-195, सेक्टर-23, गुरुग्राम-122017
मोबाइल नं. – 9289686427
दूरभाष – 0124-2460195
ई-मेल – [email protected]

प्रेषक
वैश्विक हिंदी सम्मेलन -www.vhindi.in
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