आशा रानी जैन ‘आशु’ की कविताएं देती हैं बच्चों को सार्थक सन्देश

बच्चे की मुस्कान।
जड़ी बूटी के समान ।।
कितनी गहरी बात को छोटे से शब्दों में अभिव्यक्त कर बच्चे का महत्व प्रतिपादित किया जिनकी की मुस्कान सभी के दिलों को हर्षित कर जड़ी बूटी का काम करती है, एक नैबुर्जा का संचार करती है। रचनाकार के सृजन कौशल का ही कमाल है कम शब्दों में सार्थक सन्देश देना। आशा रानी जैन ” आशु ” ऐसी ही रचनाकर हैं जिन्होंने बच्चों के मनोविज्ञान को समझ कर सहज और सरल शब्दों में बाल रचनाओं का सृजन कर बाल साहित्य के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई।
इनके द्वारा सृजित कुछ बाल गीतों की बानगी देखिए…………
1. फर फर फर फर उड़े कबूतर कितने सुंदर लगते हैं।
गुटर गुटरगूं गुटर गुटरगूं बातें करते रहते हैं।

2. वर्षा पर……..
छपाक छम भई छपाक छम
पानी बरसा छम छम छम
दौड़ लगाइ जम जम जम
पैर फिसल गया गिर गए हम।
मां ने धोया धम धम धम
आं आं ऊं ऊं रोए हम।

3. चुहिया पर……….
टमरक टूं भई टमरक टूं
चुहिया बोली चूं चूं चूं
सारे घर में दौड़ लगाए
कुतर कुतर सब काटे खाए

4. तकिया पर……..
तकिया मेरा गोलम गोल
लगता जैसे छोटा ढोल

5. तारे पर…….
टिम टिम टिम टिम कितने सारे।
आसमान में दिखते तारे।।
चम चम चम चम चमक रहे हैं।
मोती जैसे दमक रहे हैं ।

6. देशभक्ति पर……….
भिन्न-भिन्न है भाषा वेश।
एक मगर है भारत देश ।।
बाइबल गीता और कुरान ।
यहां सभी को मिलता मान।।

7. धरती माता पर……….
काट -काट कर वृक्ष, धरा को जो सुना कर जाएंगे ।
ठंडी हवा फूल फल मेंवे कहो कहाँ से पाएंगे।।अभी प्रतिज्ञा करें आज हम हरे वृक्ष नहीं काटेंगे ।
खूब करेंगे वृक्षारोपण जग में खुशियां बाटेंगे।।

ऐसे सहज सरल और मनोरंजक शब्दों के माध्यम से शिशु गीत की पुस्तकों में बच्चों को विभिन्न पशु पक्षियों की बोलियां और दिशाओं की जानकारी भी दी गई है ,साथ ही किस पशु पक्षी के शिशु को क्या कहा जाता है इसके बारे में भी जानकारी दे ने वाले अनेक छोटे-छोटे से शिशु गीत हैं। अनेक मनोरंजक और संदेश प्रधान अनेक बाल कविताएं लिखने वाली रचनाकार की अब तक 5 कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें गुंजन– बाल कविता संकलन, कलरव — शिशु गीत संग्रह , छू लो गगन -बाल गीत संग्रह, चीं चीं चूं चूं – शिशु गीत संग्रह और उड़ते पंछी — बाल गीत संग्रह शामिल हैं। इनकी कृति उड़ते पंछी राजस्थान बाल साहित्य अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित है।

अनेक साझा संकलनों भी इनकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। इनका बाल साहित्य समाज में बालकों के माता-पिता और छोटी कक्षा में पढ़ने वाले अध्यापकों तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं हेतु बहुत ही उपयोगी साबित हुआ है कई आंगनबाड़ियों में कार्यकर्ता महिलाएं शिशु गीत की पुस्तकों के माध्यम से बालकों को सिखाने का प्रयास कर रही हैं।

हिंदी ,हाड़ौती एवं मालवी भाषाओं पर इनका समान अधिकार है। ये पद्य विधा में बाल एवं शिशु गीत के साथ-साथ छंद,गीत, ग़ज़ल,मुक्तक लिखती हैं। स्वत: प्रेरणा से इनका लेखन का मर्म सामाजिक समरसता में वृद्धि और समाज के हर वर्ग की कोमल भावनाओं के अभिव्यक्त कर समाज को शांति, ,सद्भावना, त्याग व प्राणी मात्र के प्रति प्रेम और करुणा के भाव का संदेश देना है । इनके लेखन में समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व है विशेष कर नारी के अंतर्मन में झांक कर नारी संबंधी विषयों को छुआ है। एक बानगी देखिए जिसमें नारी मन की पीड़ा को उभारा है…..
शब्द कहां से लाऊं रे मैं शब्द कहां से लाऊं।
पीर घनेरी इतनी है मैं भावों से भर जाऊं।।
युगों युगों से मुझको छलता आया है येजमाना।
आंखों में पानी आंचल में दूध मुझे बस माना ।।
तोड़ पगों की बेडी क्यों न नील गगन तक जाऊं ।
शब्द कहां से लाऊं रे मैं शब्द कहां से लाऊं।।

सुमित्रानंदन पंत जयशंकर प्रसाद महादेवी वर्मा और निराला आदि का साहित्य इन्हें बेहद पसंद है और कई बार इनकी रचनाएं सुन कर साथी रचनाकर इन्हें सहज ही में हाडोती की महादेवी वर्मा भी कह देते हैं । अध्ययन में इनकी सदैव से बहुत रुचि रही है। वनस्थली विद्यापीठ के पुस्तकालय से साहित्य पढ़ने के शौक को बखूबी पूरा किया। मुंशी प्रेमचंद, आचार्य चतुरसेन, मन्नू भंडारी आदि आदि के साहित्य का अध्ययन किया है। प्रकृति प्रेमी होने के कारण आशु के पद्य साहित्य में छायावादी कवियों का विशेष प्रभाव रहा है। जैन पूजा पद्धति और तुलसीदास जी के साहित्य ने छंद लेखन में विशेष मार्गदर्शन किया है। इनकी हिंदी ग़ज़लें भी बहुत ही उम्दा है। कविता, ग़ज़ल या गीत लिखना मन की स्व अनुभूति और अंतरात्मा की आवाज़ होती है जिनमें एक सम्मोहन और गहराई होती हैं। चाहे प्रेम हो, विरह, प्रकृति, सौंदर्य बोध, श्रृंगार या और कोई विषय जिस पर कविता होगी वह सुनने वालों को अपने आकर्षण में बांध लेगी। ग़ज़ल के कुछ अंश की बानगी देखिए……..
किसी की आरजू और कोई मन की आस लिखती है।
किसी के नेह का अनमोल ये विश्वास लिखती है।।
कभी आँसू हैं सीता के कभी राधा की है तड़पन।
कभी ये वेदना गहरी कभी ये रास लिखती है।।
‘ आशू’ ये बड़ी कोमल हवा सी सबको छू लेती।
कलम हर दिल की धड़कन है ,सभी की श्वास लिखती है।

इनका एक ग़ज़ल संग्रह “सैलाब” राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के प्रकाशन सहयोग से प्रकाशित हुआ है। इसे पढ़ने वाले को लगता है जैसे उसके ही मन की बात कह दी है । हर ग़ज़ल का एक- एक शेर हृदय स्पर्शी है । समरसता पर केंद्रित ग़ज़ल की बानगी देखिए……….
सारी खुशियां सारे गम साझा करें।
आओ मिलकर एक नया सौदा करें।।
जाति भाषा धर्म के झगड़े भूला।
आदमी को आदमी समझा करें।।

मां और बेटी दोनों से इनका का विशेष लगाव रहा है। ग़ज़ल संग्रह में तीन गजलें मां को और तीन गजलें बेटियों को समर्पित हैं, देखिए बानगी………
तेरी मुस्कान मेरा हौसला है हिम्मत है।
तेरे आशीष की हर पल मुझे जरूरत है।।
तुझसा पाया न कोई आसरा ऐ मां मेरी।
तेरे आंचल की छांव सबसे खूबसूरत है।।
मैं तेरा कर्ज भला कैसे चुका पाऊँगा।
तूने जो मुझपे लुटाई दुआ की दौलत है।।
न जाने कितने बड़े दिल की तू है मां मेरी ।
बांटना प्यार ही तेरी रही इबादत है।।
तू है करुणा का कलशऔर क्षमा की देवी ।
तूने ही माफ की मेरी हरिक शरारत है।।
तूने नींदें गंवाईं मेरे लिये रातों की।
कभी बयाँ न किया दर्द न शिकायत है।।
‘ आशू’ ममता का हरिक फर्ज निभाया दिल से। कभी मांगी न छुट्टी और न की बगावत है।।

परिचय :
बाल साहित्य में पहचान बनाने वाली रचनाकार आशा रानी ‘आशु ‘ का जन्म 28 नवंबर 1961 को अजमेर में हुआ। आपने हिंदी साहित्य और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की। वनस्थली विद्यापीठ से शिक्षा में बी एड किया। आपकी “कलिकाएं” – मुक्तक संग्रह प्रकाशनाधीन है। आपने कई मंचों पर काव्य पाठ किया और दूरदर्शन राजस्थान एवं आकाशवाणी झालावाड़ से कई बार आपके काव्य पाठ का प्रसारण किया गया। विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं और काव्य पाठ करती हैं। समय – समय राजस्थान की विभिन्न संस्थाओं द्वारा आपको बाल साहित्य भूषण ,ग़ज़ल साधक,छंद गौरव , साहित्य साधक, काव्य साधक, शतकवीर, और लाल बहादुर शास्त्री साहित्य रत्न सम्मानों से सम्मानित किया गया है। आपको विभिन्न संस्थाओं में उत्प्रेरक उद्बोधन हेतु भी आमंत्रित किया जाता है। विश्व हास्य योग महासंघ इंदौर और यूपी प्रतापगढ द्वारा आयोजित “राम पर गीत प्रतियोगिता” में विजेता रही। पिछले 20 वर्षों से गरबा नृत्य प्रशिक्षक के रूप में सक्रिय हैं। आप राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय डोला, जिला झालावाड से द्वितीय श्रेणी अध्यापिका पद से सेवानिवृत्त हुई हैंऔर वर्तमान में साहित्य साधना में लगी हुई हैं।
चलते – चलते………
इंसानियत से बढ़कर क्यों हो गया है पैसा।।
क्यूं दर्द में किसी के हम आंख फेर लेते।
क्या भाई वो हमारा अब है न पहले जैसा।।
झगड़ों को देख घायल मां भारती सिसकती।
दामन किया है बेटों ने तार तार ऐसा।।
इंसान हों सभी बस इंसानियत को पूजें।
या रब तू ही बना दे मजहब कोई तो ऐसा।।
किस मोड़ पे खड़ा है आकर ये देश मेरा।
हो जाए फिर से ‘ आशु ‘ यहां रामराज्य वैसा।।