1

आखिर पाकिस्तान भारत से क्यों डरा?   

क्या मोदी सरकार की आतंकवाद-विरोधी नीति और पाकिस्तान में भारत के दुश्मनों की हत्या में कोई संबंध है?

अभी हाल ही में पाकिस्तान ने आरोप लगाया है कि 14 अप्रैल को आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के सहयोगी अमीर सरफराज तांबा की ‘अज्ञात बंदूकधारियों’ द्वारा हत्या में ‘भारत की भूमिका’ है। आलेख लिखे जाने तक सरफराज जीवित है या गंभीर रूप से घायल, इसे लेकर पाकिस्तानी अधिकारियों में भ्रम की स्थिति है। कुछ समय से पाकिस्तान में वे आतंकवादी ‘अज्ञात हमलावरों’ का शिकार बन रहे है, जो भारत की ‘सर्वाधिक वांछित सूची’ में शामिल है।

इसमें मौलाना रहीम उल्लाह तारिक, अकरम गाजी, ख्वाजा शाहिद, शाहिद लतीफ, रियाज अहमद, मौलाना जिया-उर-रहमान, खालिस्तानी परमजीत सिंह पंजवार और बशीर अहमद पीर शामिल है। पाकिस्तानी मंत्री नकवी ने सरफराज के साथ इन हत्याओं में भी भारत के शामिल होने का आक्षेप लगाया है।

आखिर सरफराज ने ऐसा क्या किया था कि उसकी हत्या का बेतुका आरोप पाकिस्तान ने सीधा भारत पर लगा दिया? माना जाता है कि सरफराज और उसके साथी मुद्दसर ने पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर वर्ष 2013 में लाहौर की जेल में बंद भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। यह हत्या भारत में आतंकवादी अफजल गुरु की फांसी के दो माह बाद हुई थी, जो 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद हमले का मुख्य षड्यंत्रकर्ता था। कालांतर में पाकिस्तान की एक अदालत ने सरबजीत की हत्या के दोनों आरोपियों को इसलिए बरी कर दिया, क्योंकि जेल में उपस्थित किसी ने भी इनके खिलाफ गवाही नहीं दी। यह स्थिति तब थी, जब पोस्टमार्टम में सरबजीत के शव पर बर्बरता के कई निशान मिले थे।

सरबजीत भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे तरनतारन जिले (पंजाब) के भिखीविंड गांव के रहने वाले थे। 30 अगस्त 1990 को वे अनजाने में पाकिस्तान पहुंच गए थे, जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद सरबजीत को बम धमाका मामले में फंसाकर बाद में दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुना दी। सरबजीत की बहन दलबीर कौर 1991 से लेकर 2013 में उनकी नृशंस हत्या तक रिहाई के लिए पाकिस्तान से लगातार पैरवी कर रही थी। 11 वर्ष बाद सरबजीत का मामला पुन: अपने ‘हत्यारे’ सरफराज की ‘अज्ञात हमलावरों’ द्वारा ‘हत्या’ के कारण फिर से सर्खियों में है।

पाकिस्तान से पहले ब्रिटिश समाचारपत्र ‘द गार्जियन’ ने 6 अप्रैल को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि भारत विदेशी धरती पर रहने वाले अपने सर्वाधिक वांछितों को समाप्त करने की रणनीति के अंतर्गत पाकिस्तान में लोगों की हत्या कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, “2019 में हुए पुलवामा हमले के बाद से भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने 20 हत्याएं करवाईं। इन सभी को भारत अपना दुश्मन मानता था।” भारत सरकार इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर चुका है।

यह तीसरी बार है, जब भारत पर विदेशी धरती पर अपने दुश्मनों की हत्या या हत्या का प्रयास करने का आरोप लगाया गया है। इससे पहले, गत वर्ष कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने दावा किया था कि खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ था। इसके बाद में अमेरिका ने भी कह दिया कि भारत ने खालिस्तानी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की भी हत्या की कोशिश की थी, जिसे उसने विफल कर दिया। मोदी सरकार इस प्रकार के सभी आरोपों का खंडन कर चुकी है। परंतु क्या अमेरिका या किसी अन्य पश्चिमी देशों को इस मामले में भारत को कोई उपदेश देने का अधिकार है?

सच तो यह है कि अमेरिका के स्वयं का इतिहास विदेश में अपने शत्रुओं को ठिकाने लगाने का रहा है। 2 मई 2011 को पाकिस्तान में मध्यरात्रि घुसकर अमेरिकी सेना ने उस ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था, जिसने सितंबर 2001 में अमेरिकी के न्यूयॉर्क में भीषण 9/11 आतंकवादी हमले की साजिश रची थी। यही नहीं, कई देशों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए अमेरिका ने वर्ष 2003 में इराक पर यह कहकर हमला कर दिया था कि उसके तानाशाह सद्दाम हुसैन के पास सामूहिक विनाश के घातक हथियार हैं। बाद में अमेरिका को कोई हथियार नहीं मिले।

इसी तरह 2019 में अमेरिका ने सीरिया में आईएसआईएस सरगना अबु अल-बगदादी, 2020 में ईरान में शीर्ष सैन्य अधिकारी कासिम सुलेमानी और जुलाई 2022 में अफगानिस्तान के काबुल में आतंकवादी अल-जवाहिरी को मौत के घाट उतार दिया था। इतना ही नहीं, अमेरिकी जांच एजेंसी ‘सीआईए’ ने क्यूबा के नेता फिदेल कास्त्रो की हत्या के आठ असफल प्रयास तक चुका था।

इज़राइल भी आत्मरक्षा में अपने दुश्मनों को दुनिया के किसी भी छोर में ठिकाने लगाने में पारंगत है। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में 11 इज़रायली खिलाड़ियों की हत्या करने वाले फ़िलिस्तीनी आतंकवादियों को इटली, फ्रांस, नार्वे, लेबनान और साइप्रस में ढूंढकर मारना— इसका उदाहरण है। आज भी इज़राइल इस प्रकार के कदम उठाने से नहीं हिचकचता। गत वर्ष हमास के हमले के बाद इजराइल द्वारा गाजा-पट्टी को मलबे के ढेर में परिवर्तित करना— इसका उदाहरण है। यही नहीं, डेढ़ माह पहले ईरानी सैन्यबलों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सुन्नी आतंकवादी संगठन जैश अल-अदल के कमांडर इस्माइल शाहबख्श सहित अन्य जिहादियों को मार डाला था।

वास्तव में, शेष विश्व में भारत के आलोचक इस बात से हतप्रभ है कि मई 2014 के बाद मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर शून्य सहनशक्ति प्रदत्त नीति अपना रही है कि वे आवश्यकता पड़ने पर सीमापार करने से भी नहीं हिचकते। वर्ष 2016 और 2019 में भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के साथ देश में आतंकवादी हमलों में एकाएक कमी आना— इसका प्रमाण है। इस पृष्ठभूमि में भारत पर पाकिस्तान, अमेरिका और कनाडा द्वारा अपने दुश्मनों की हत्या करने का आरोप लगाना— शेष विश्व में उस राजनीतिक, वैचारिक, गैर-सरकारी संगठनों और निजी संस्थाओं की संयुक्त बौखलाहट का परिचायक है, जो भारत की मौलिक सनातन पहचान, सांस्कृतिक पुनरुत्थान, आर्थिक प्रगति, देशहित केंद्रित विदेश-नीति, तुलनात्मक रूप से सुरक्षित सीमाओं और आत्मनिर्भरता (आयुध सहित) की ओर बढ़ते कदमों से कुंठित हो चुके है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं ,हाल ही में लेखक की ‘ट्रिस्ट विद अयोध्या: डिकॉलोनाइजेशन ऑफ इंडिया’ पुस्तक प्रकाशित हुई है।)