आदित्य -एल 1 की ऊँची उड़ान और इससे अपेक्षाएँ

चंद्रयान-3 की सफलता से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)ने वैश्विक स्तर पर अपने उपादेयता सिद्ध कर दिया है, इसके द्वारा दक्षिण ध्रुव का अध्ययन सरल हो गया है ।चंद्रयान – 3 का सफलतम परीक्षण करके भारत ने यह भी साबित कर दिया है कि भारत बहुत कम लागत पर अंतरिक्ष यान तैयार कर सकता है ,बल्कि उसको कामयाब भी बन सकता है। इस तरह सामूहिक संकल्प की सामर्थ्य से असंभव को संभव सिद्ध कर देना भारत का सामर्थ्य बन चुका है ।भारत ने चंद्रयान-3 के द्वारा चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करके वैश्विक स्तर पर अग्रणी देश होने का गौरव प्राप्त किया है।

सूर्य की सतह का अध्ययन सौरमंडल के दूसरे ग्रहों की अपेक्षा इसलिए कठिन माना जाता है कि वह जलती हुई गैसों का गोला है और उसके सतह का तापमान धारणीयता लायक कोई धातु विकसित करना चुनौती पूर्ण कार्य है ।अत्याधुनिक दूरबीनो और तरंग माफी यंत्रों की सहायता से उसकी हलचलों का अध्ययन करके सरल किया जा सके इसलिए आदित्य – L1 को ऐसे सात यंत्रों से लैस किया गया है ।यह उस बिंदु पर रहकर अध्ययन करेगा, जिस स्थान पर सूर्य और पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल और प्रतिकर्षण बल पैदा होता है। समसामयिक परिप्रेक्ष्य में सूर्य का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि सौरमंडल का यही ऐसा ग्रह है जो पृथ्वी के पार्थिव गतिविधियों का संकेतक है। सूर्य पर कोई हलचल होती है तो इसका स्पष्ट प्रभाव पृथ्वी के पर्यावरण पर पड़ता है। इस प्रकार पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन का संकट उत्पन्न हो रहा है तो सूर्य की गतिविधियों का अध्ययन आवश्यक हैं।

आदित्य – एल 1से सौरमंडल का अध्ययन करना है। प्रकाश मंडल और कोरोना की ऊष्मा का अध्ययन करना है, इसके द्वारा कोरोना से विशाल पैमाने पर निकलने वाली ऊर्जा का अध्ययन करना है, आंशिक रूप से आयनित प्लाज्मा की भौतिकी के बारे में जानकारी प्राप्त करना है। सौर वातावरण से प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र के बड़े पैमाने पर विस्फोट का अध्ययन करना है। अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता को समझना है और सौर कंपन का बारीकी से अध्ययन करना है।