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संविधान, लोकतंत्र, सेना के बाद आरएसएस है भारतीयों का रक्षक

उच्‍चतम न्‍यायालय से सेवा निवृत्त न्यायमूर्ति श्री के.टी. थॉमस ने कहा है कि संविधान, लोकतंत्र और सशस्‍त्र सेनाओं के बाद, आरएसएस ने भारत में लोगों को सुरक्षित रखा है। थॉमस के अनुसार, सेक्‍युलरिज्‍म का विचार धर्म से दूर नहीं रखा जाना चाहिए। कोट्टयम में संघ के प्रशिक्षण कैंप को संबोधित करते हुए पूर्व जज ने कहा, ”अगर किसी एक संस्‍था को आपातकाल के दौरान देश को आजाद कराने का श्रेय मिलना चाहिए, तो मैं वह श्रेय आरएसएस को दूंगा।” थॉमस ने कहा कि संघ अपने स्‍वयंसेवकों में ”राष्‍ट्र की रक्षा” करने हेतु अनुशासन भरता है। उन्‍होंने कहा, ”सांपों में विष हमले का सामना करने के लिए हथियार के तौर पर होता है। इसी तरह, मानव की शक्ति किसी पर हमला करने के लिए नहीं बनी है। शारीरिक शक्ति का मतलब हमलों से (खुद को) बचाने के लिए है, ऐसा बताने और विश्‍वास करने के लिए मैं आरएसएस की तारीफ करता हूं। मैं समझता हूं कि आरएसएस का शारीरिक प्रशिक्षण किसी हमले के समय देश और समाज की रक्षा के लिए है।”

जस्टिस थॉमस ने आगे कहा, ”अगर पूछा जाए कि भारत में लोग सुरक्षित क्‍यों हैं, तो मैं कहूंगा कि देश में एक संविधान है, लोकतंत्र हैं, सशस्‍त्र बल हैं और चौथा आरएसएस है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्‍योंकि आरएसएस ने आपातकाल के विरुद्ध काम किया। इमरजेंसी के खिलाफ आरएसएस की मजबूत और सु-संगठित कार्यों की भनक तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी लग गई थी…वह समझ गई कि यह ज्‍यादा दिन तक नहीं चल पाएगा।”

सेक्‍युलरिज्‍म के सिद्धांत पर, पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज ने कहा कि इसका विचार धर्म से अलग नहीं रखा जाना चाहिए। उन्‍होंने यह भी कहा कि संविधान ने सेक्‍युलरिज्‍म की परिभाषा नहीं बताई है। जस्टिस थॉमस ने कहा, ”माइनॉरिटीज (अल्‍पसंख्‍यक) सेक्‍युलरिज्‍म को अपनी रक्षा के लिए इस्‍तेमाल करती हैं, लेकिन सेक्‍युलरिज्‍म का सिद्धांत उससे कहीं ज्‍यादा है। इसका अर्थ है कि हर व्‍यक्ति के सम्‍मान की रक्षा होनी चाहिए। एक व्‍यक्ति का सम्‍मान किसी भेदभाव, प्रभाव और गतिविधियों से दूर रहना चाहिए।”

साभार- इंडियन एक्सप्रेस से