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हवा निकल रही है हवाई कंपनियों की

आकाश खाली है। विमान बहुत कम उड़ रहे हैं। दुनिया भर सहित देश का आकाश भी हवाई जहाजों से सूना है। हवाई कंपनियां बहुत कम उड़ानें संचालित रही हैं। नागरिक विमानन क्षेत्र कहीं से भी रफ्तार पकड़ता नहीं दिख रहा। कोरोना के कारण लॉकडाउन के हल्ले में सरकारों ने दुनिया भर के कई देशों में विमान सेवाएं बंद कर दी थीं। अब धीरे धीरे खोल तो दी, पर बहुत कम संख्या में उड़ानें होने के कारण विमान कंपनियों को बहुत घाटा उठाना पड़ रहा है। कोरोना ने विमान कंपनियों को भी बरबाद करने में कोई कमी नहीं रखी है। अनेक एयरलाइंस कंपनियां नौकरियां कम कर रही है, यात्रियों की सुविधाएं समाप्त कर रही हैं और खर्चे समेट रही हैं। क्योंकि कमाई तो है नहीं और घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। अर्थव्यवस्था के जानकार मानते हैं कि हालात सुधरने में कम से कम चार से पांच साल लग सकते हैं। एयकलाइंस कंपनियों के अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन’ (आईएटीए) ने भी कहा है कि दुनियाभर की एयरलाइंस कंपनियों को कोरोना संकट से पहले के यानी मार्च 2020 के स्तर पर पहुंचने के लिए 2024 तक इंतजार करना पड़ सकता हैं।

मुंबई एयरपोर्ट अपनी क्षमता की केवल 10 फीसदी उड़ानें ही संचालित कर रहा है। देश की आर्थिक राजधानी में, जहां हर तीन मिनट में एक विमान या तो उड़ान भरता था या फिर उतरता था, उस सबसे व्यस्ततम मुंबई एयरपोर्ट पर अब आधे घंटे के अंतराल पर केवल दो विमान ही उड़ते – उतरते हैं। हालांकि मुंबई एयरपोर्ट पर उड़ानों की तादाद अब बढा दी गई है। यहां पर पहले एक दिन में 50 केवल फ्लाइट के ऑपरेशन की मंजूरी थी, उसे बढाकर 15 जून से 100 तक कर द‍िया गया है। इसमें से भी 50 फ्लाइट आएगी और 50 फ्लाइट जाएंगी। जबकि मुंबई एयरपोर्ट के पास एक दिन में 1000 उड़ानों का ऑपरेशन हैंडल करने की क्षमता है। ऐसे में धंधा नहीं होने से एयर लाइन कंपनियों की आर्थिक हालत लगातार बहुत खराब होती जा रही है।

अब जब पहले के मुकाबले बहुत कम संख्या में विमान सेवाएं चालू हैं, तो विमान कंपनियों के लिए अपने सारे विमानों को खड़ा रखना पड़ रहा है और अपने सामान्य खर्चे भी निकालना बहुत मुश्किल हो गया है। अकेले मुंबई एयरपोर्ट पर ही विभिन्न भारतीय एवं विदेशी एयरलाइंस से कमसे कम 400 के आसपास छोटे बड़े विमान यूं ही खड़े हैं। एयरलाइंस कंपनियों की वैश्विक संस्था आईएटीए ने भी चिंता व्यक्त की है कि अगर यही हाल रहा, तो एयरलाइंस को बड़ी संख्या में अपने स्टाफ में कमी करनी होगी। एयर इंडिया, इंडिगो, गो एयर, स्पाइसजेट जैसी कंपनियां वैसे भी अपने कर्मचारियों को इस बारे में आगाह कर चुकी है। वैसे, विमान खड़े रहे, तो भी खर्चे लगातार जारी पहते हैं। क्योंकि उनको हैंगर का किराया तो एयरपोर्ट को देना ही होता है, साथ ही लंबे समय तक विमान के खड़े रहने से उन पर मेंटेनेंस भी बहुत ज्यादा आता है।

नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी पिछले दिनों कहा था कि एयर इंडिया का निजीकरण जरूरी हो गया है, और सरकार इस दिशा में काम कर रही है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि सभी एयरलाइंस कंपनियां अपने कर्मचारियों को विदाउट पे लीव पर भेज रही हैं। क्योंकि यह उनकी मजबूरी है। आर्तिक हालात भी हर तरफ बहुत खराब हैं, इस कारण सरकार भी इन कंपनियों की कोई बड़ी आर्तिक मदद करने में अक्षम है। गौरतलब है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण भारत ने 23 मार्च से अंतरराष्ट्रीय यात्री उड़ानों पर प्रतिबंध लगा रखा है। केवल वंदे भारत योजना की उड़ानें ही विदेश से कभी कभार भारत आ रही है। इसके साथ ही घरेलू विमान सेवाओं को भी बंद कर दिया गया था। लेकिन बीते 25 मई से घरेलू उड़ानें शुरू कर दी गई थीं, जो बहुत ही कम संख्या में है। इन उड़ान सेवाओं के लिए कोरोना से जुड़ी गाइडलाइंस भी इतनी उलझी हुई है कि एयरलाइंस कंपनियों को उनका पालन करने पर बहुत बड़ा खर्च उठाना पड़ रहा है।

अमेरिका, ब्राजील और भारत जैसे देशों में कोरोना संक्रमण की सबसे तेज रफ्तार की वजह से हवाई कारोबार पर खतरा बरकरार है। दुनिया भर में हवाई यातायात बंद होने से एयरलाइंस उद्योग का भट्टा बैठ गया है। सबसे खराब बात यह है कि कोरोना की वजह से आर्थिक हालात सुधरने में किसी भी तरह की गुंजाइश अब बहुत ही मुश्किल लग रही है। दुनिया भर में तो सात महीने हो गए हैं, लेकिन भारत में कोरोना संक्रमण शुरू हुए पांच महीने पूरे हो गए हैं। लेकिन दुनिया भर में कोरोना संकट बढ़ रहा है। ऐसे में, वर्तमान हालात देखते हुए साफ लगता है कि एयरलाइंस उद्योग को अपनी पहले वाली स्थिति में साल 5 साल लगेंगे। वैसे भी, अर्थशास्त्री भी मान रहे हैं कि संसार के किसी भी धंधे के पहले की तरह फिर से धमकने और चमकने की स्थिति फिर लौटने की गुंजाइश बहुत ही कम है।