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संगीत और नृत्य की अद्भुत और रंजक जुगलबंदी

नृत्य ऐसी विधा है जिसमें कला और कलाकार एकाकार हो जाते हैं। बात अगर भरत नाट्यम जैसे शास्त्रीय नृत्य की हो तो कला और कलाकार को एकाकार होते देखने पर सौंदर्य, संगीत और आंगिक अभिनय का चरमोत्कर्ष प्रकट होने लगता है। नवनृत्यांगना आद्या का भरत नाट्यम अपने आप में एक विलक्षण प्रस्तुति की तरह दर्शकों के दिल और दिमाग में रच बस गई।

मुंबई के बोरिवली स्थित प्रबोधनकार ठाकरे रंगमंच के हाल में आद्या ने जिस विद्युतीय गति से अपने नृत्य की शुरुआत की उसी चपलता और आंगिक अभिनय की परिपक्वता के साथ अपने नृत्य का समापन भी किया।

विज्ञापन और मीडिया की दुनिया के पुनीत भटनागर की बेटी आद्या ने अपने तीन घंटे के धाराप्रवाह नृत्य में एक क्षण के लिए भी दर्शकों की दृष्टि को मंच से अलग नहीं होने दिया। अद्या ने नृत्य का प्रारंभ पुष्पांजलि से किया और अपने सधे हुए नृत्य व पादाभिनय से देवताओँ और दर्शकों का आशीर्वाद लिया।

अगली नृत्यरचना देवताओं की स्तुति करते हुए श्री पाँडुरंग कौतुवम की थी, नृत्य, संगीत और भक्ति की त्रिवेणी का ये जादू दर्शकों के लिए एक रोमांचक प्रस्तुति थी। ये नृत्य संरचना आद्या के नृत्य गुरु श्री अक्षय आयरे की थी।

अगली प्रस्तुति जतिस्वरम की थी जिसमें नृत्य और संगीत का अद्भुत मिलन प्रकट हुआ। आचार्य श्री परवित कुमार द्वारा संरचित व निर्देशित और गुरु श्री जनार्दन के संगीत से सजा ये नृत्य आद्या के नृत्य कौशल का एक अप्रतिम उदाहरण था।

अगली प्रस्तुति गणेश शब्दम भगवान गणेश के जन्म की रोमांचक प्रस्तुति थी। नृत्य, संगीत और भावाभिव्यक्ति से गणेश जी के जन्म का ये प्रसंग दर्शकों के लिए रंजक अनुभव था। इस नृत्य का संयोजन पं. श्री वेणुगोपाल पिल्लई का था, जो राग मालिका में प्रस्तुत किया गया था।

वर्णम के माध्यम से आद्या ने विरह वेदना से ग्रस्त नायिका के मनोभावोँ को पूरी संवेदना के साथ अभिव्यक्त किया। राग खमास और ताल आदि की इस प्रस्तुति में संवेदना के भावों की सृष्टि से दर्शक भाव विभोर हो गए।

कलिंग नर्तनम की प्रस्तुति अपने आप में अद्भुत और रंजक थी। आद्या ने एक ही रूप में कृष्ण और कालिया नाग दोनों रुपों को इतनी जीवंतता के साथ साकार किया कि आंगिक अभिनय से कृष्ण और कालियानाग दोनों का अंतर मंच पर स्पष्ट दृष्टव्य हो रहा था। एक ही कलाकार द्वारा नृत्य के माध्यम से दो विपरीत चरित्रों को मंच पर साकार कर आद्या ने अपनी साधना की श्रेष्ठता सिध्द की। इस नृत्य की संरचना श्री अक्षय आर्य की थी और इसे राग रागमाल्लिका में ताल आदि में प्रस्तुत किया गया था।

श्री एम बालमुरलीकृष्ण की रचना को आद्या ने पूरी शास्त्रीयता व नृत्य कौशल के साथ मंच पर साकार किया। इस प्रस्तुति में भारत नाट्यम के विविध रंग भी देखने को मिले। इस नृत्य की संरचना अक्षय आर्य की थी और इसे राग बृंदावनी सारंग में ताल आदि में संगीतबध्द किया गया था।

इस अवसर पर स्नेही व सुधी दर्शकों के साथ ही शास्त्रीय संगीत परंपरा को अपने कौशल, साधना और समर्पण से जीवित रखने वाले सिध्दहस्त गुरु और शिष्य बड़ी संख्या में उपस्थित थे। आद्या और उनके माता-पिता श्रीमती शैलजा मनोरमा और पुनीत भटनागर ने सभी का भावाभिनंदन कर अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।

नृत्य के साथ संगीत इस प्रस्तुति का एक ऐसा पक्ष था जिसके बगैर मंच पर कला कौशल और नृत्य की सिध्दि का ये चमत्कार संभव नहीं था।

संगीत में संगत देने वालों में नटुवंगन पर श्री अक्षय आर्य, गायन में श्री विष्णुदास मनलार की आवाज़ का जादू श्री शेखर तंजौरकर जैसे सिध्द गुरु का वायलिन वादन, श्री राघवेंद्र बलिगा का बाँसुरीवादन, श्री वेंकटेश्वरन की मृदगंम पर गरजती थाप पूरे मंच को जीवंतता प्रदान कर रही थी।

आद्या की वेशभूषा श्री साजिद गुलाम द्वारा तैयार की गई थी, मेक अप श्री भरत अहिरे का था, केश सज्जा श्रीमती माधुरी दोनवलकर की थी और ध्वनि व प्रकाश का इंद्रधनुषी संयोजन सुदानसिंह राजपूत का था।

कुल मिलाकर ये एक ऐसी प्रस्तुति थी जिसके माध्यम से गुरु शिष्य परंपरा के साथ ही हमारी प्राचीन शास्त्रीय विरासत का वो रूप देखने को मिला जो आज के दौर में फिल्म व टीवी की चमक-दमक में खो रहा है। लेकिन आद्या और उनके गुरुओं का ये समर्पण हमें आश्वस्त करता है कि शास्त्रीयता और भारतीयता की ये विरासत अपनी पवित्रता के साथ आने वाली पीढ़ी तक पहुँचती रहेगी।