अमित शाह के आत्मविश्वास की असलियत

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सन 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी के लिए 360 से ज़्यादा सीटें जीतने का ऐलान किया है।राजनीति के जानकारों के दिमाग में सवाल है कि इतना बड़ा लक्ष्य रखने की वजह क्या है। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल है कि क्या बीजेपी के लिए इसे हासिल करना मुश्किल है ?

अब जबकि सीधे सीधे दिखता है कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे बहुत बड़े और लगभग अलोकप्रिय कहे जानेवाले फैसले लेने के बावजूद देश में बीजेपी और उसके सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी के सामने कोई बहुत बड़ा चेलैंज नहीं है। लेकिन फिर भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी के लिए 360 से ज़्यादा सीटें हासिल करने का ऐलान पार्टी की राजनीतिक मजबूती पर चिंतन के लिए मजबूर करता है। अमित शाह वैसे भी कोई बात यूं ही नहीं बोलते। उनके कहने के आगे – पीछे, दांए – बांए, ऊपर – नीचे बहुत गहरे अर्थ होते हैं। और इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि यह बात उन्होंने गुजरात के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के अहमद पटेल की अप्रत्याशित जीत के बाद कही है। सो, चिंतन जरूरी है। माना जाता है कि राजनीतिक पार्टियां हमेशा बड़ा लक्ष्य लेकर चलती हैं।

हम हमेशा से देखते रहे हैं कि बड़े राजनेताओं की कोशिश यही होती है कि पिछले चुनाव में जिस स्तर की जीत हासिल हुई थी, उससे भी बड़ी जीत अगले चुनाव में मिले। बीते चुनाव में जितनी सीटें मिली थीं, इस बार उससे भी ज़्यादा हासिल हों, यह प्रयास रहता है। राजनीति में चुनावों की तैयारी इसी तरह से सदा सदा से वर्तमान सफलता से ज्यादा बड़ा लक्ष्य रखकर ही की जाती है। अमित शाह जानते हैं कि लक्ष्य कम रखने से जनता में, कार्यकर्ताओं में और देश के बाकी दलों में संदेश गलत जा सकता है। फिर देश में जिस तरह के राजनीतिक हालात हैं, कांग्रेस जिस तरह से दिन ब दिन कमजोर होती जा रही है, उसके सबसे बड़े नेता राहुल गांधी जिस तरह से लगातार अलोकप्रिय होते जा रहे हैं, विपक्ष बिखरा हुआ है और विपक्ष के नाम पर जो कुछ बचा खुचा कुनबा है, उसमें एकता की बात किसी के गले नहीं उतरती। ऐसे घनघोर राजनीतिक माहौल में अमित शाह ने देश की ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी की भावी जीत के बारे मेंआखिर गलत क्या कहा है?

सन 2019 में क्या होगा, यह तस्वीर अभी से लगभग साफ है। हालांकि कोई नहीं जानता कि ऊंट किस करवट बैठेगा। लेकिन इतना अवश्य पता है कि ऊंट खडा नहीं रहेगा, बैठेगा जरूर। इसीलिए वर्तमान हालात के मुताबिक बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का यह लक्ष्य रखना बहुत स्वाभाविक है। बीजेपी आत्मविश्वास से लबरेज है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में उसे जो ऐतिहासिक जीत मिली, बिहार में बनी बनाई कांग्रेस – जेडीयू की सरकार उसके पक्ष में आ खड़ी हुई और दक्षिण में उसे मिल रहे समर्थन के साथ साथ जिस तरह से बाकी दलों के बड़े नेताओं का टूटकर बीजेपी में आना लगातार जारी है, उसके हिसाब से बीजेपी को लगना भी चाहिए कि उसके लिए यह कोई बड़ा लक्ष्य नहीं है। कई एजेंसियों के सर्वे भी अमित शाह के आंकड़े के पक्ष मेंआते दिख रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय में बीजेपी ही नहीं, हर पार्टी ऐसा करती रही है। रणनीतिक रूप से भी ऐसा किया भी जाना चाहिए। विश्लेषकों के तर्क है कि आम तौर पर राजनीति में जब किसी की ज़मानत ज़ब्त होने वाली होती है, तब भी वह कहता है सरकार उसी की बनने वाली है। नेता को भले नतीजों का अच्छी तरह से पता हो, फिर भी वह नतीजे आने तक अपने भीतर की घबराहट या परेशानी जनता को नहीं दिखाना चाहता। सभी पार्टियां ऐसा करती रही हैं। लेकिन बीजेपी में न तो घबराहट है और न ही परेशानी। इसालिए उसके पास अगले चुनाव में 360 सीटों जीतने का दावा करने कीवजह भी है। कश्मीर से कन्याकुमारी और पूर्वोत्तर से लेकर गुजरात तक हालात सीधे सीधे बीजेपी के पक्ष में नज़र दिख रहे हैं। तमिलनाडु के राजनीतिक समीकरण भी बीजेपी के पक्ष में आते साफ हो रहे है। दरअसल, बीजेपी के साथ राजनीतिक रूप से वही मजबूत माहौल बनता जा रहा है, जैसा कभी कांग्रेस के साथ होता था। एक जमाने में जिस तरह से देश के हर प्रदेश में कांग्रेस का असर फैलता जा रहा था, वही आज बीजेपी के साथ हो रहा है।

देश में कोई भी राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी को सीधे चुनौती देने की मुद्रा में नहीं आ पा रही है। दूर-दूर तक ऐसा नजर ही नहीं आ रहा है। फिर, देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जो बीजेपी को चुनौती दे सकती थी, वह तो खुद बिहार में जनता दल, यूपी में समाजवादी पार्टी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और महाराष्ट्र की नगरपालिकाओं में कहीं कहीं शिवसेना जैसे क्षेत्रीय दलों के साए में सिमटी खड़ी है। देश के कई प्रदेशों में कांग्रेस तीसरे और कहीं कहीं तो वह चौथे नंबर की पार्टी के अवतार में खड़ी है। ऐसे में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के दावे पर किसी को भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि वर्तमान भारत में बीजेपी आज सबसे बड़ी और सर्वाधिक मज़बूत राष्ट्रीय पार्टी हैं, साथ ही उसके पास नरेंद्र मोदी के रूप में देश का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता है, तो फिर लक्ष्य भी बड़ा क्यों नहीं होना चाहिए।

बात अगर लोकप्रियता की करें, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बराबरी तो क्या उनकी पांचवी पायदान पर भी देश में ऐसा कोई नेता नहीं है। कोई भी सर्वे उठाकर देख लीजिए, देश में मोदी की लोकप्रियता की टक्कर में कोई नहीं दिखता। कांग्रेस भले ही राहुल गांधी को बहुत बड़ा नेता मानती हो, लेकिन मोदी के मुकाबले वे कहीं नहीं ठहरते। देश में बीजेपी की अप्रत्याशित स्वीकारोक्ति में लगातार वृद्धि का सबसे महत्वपूर्ण कारण यही है कि उसने अपनी चाल, चेहरा और चरित्र तो नहीं बदला, लेकिन मन में हर किसी के प्रति स्वीकारोक्ति के भाव को विकसित कर लिया है। आज हर किसी के लिए बीजेपी के दरवाजे खुले हैं। अपना मानना है कि यह नई बीजेपी है, अटल – आडवाणी की बीजेपी से बिल्कुल भिन्न। जहां प्रचार के मुकाबले विचार बहुत पीछे छूट गया है। प्रचार में नरेंद्र मोदी देश के सबसे बड़े नेता है, इतने बड़े कि इंदिरा गांधी से भी बड़े। मोदी के नाम पर बीजेपी को वोट मिलते हैं, एक जमाने में जिस तरह से इंदिराजी के नाम पर, मुहर लगती थी हाथ पर। उसी प्रकार से देश भर में कहीं भी मोदी का अपना एक विशेष वोट बैंक है। इसीलिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अगर अगले चुनाव में सबसे बड़ी विजय हासिल करने की बात कही है, तो उसका आधार यह भी है कि उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा देश का सबसे बड़े नेता है और सामने अब तक की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का लगातार सफाया होता जा रहा है। यही वजह है कि बीजेपी के लिए 360 सीटों पर जीत के लक्ष्य को हासिल करना अपने को तो कोई मुश्किल खेल नहीं लगता। जिनको यह मुश्किल लगता हो, वे 2019 के आम चुनाव के नतीजों का इंतजार करके अपना समय बरबाद करते रहें।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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