अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस के पीछे एक भारतीय का संघर्ष

पूरी दुनिया हर साल 12 जून को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाती है। लेकिन आज से करीब दो दशक पहले की स्थिति अलग थी. उस समय दुनिया को बाल मजदूरों की तकलीफों से कोई सरोकार नहीं था और न ही विश्व के नेताओं ने बाल श्रम व दासता को अपराध माना था। लेकिन, इन सबके बीच एक भारतीय ने बाल श्रम को लेकर पूरी दुनिया के नजरिए को ही बदल दिया।

कैलाश सत्यार्थी ने बाल श्रम के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने और बाल मजदूर व गुलामी के शिकार बच्चों के लिए साल में एक दिन समर्पित करने की मांग को लेकर 17 जनवरी, 1998 को फिलीपींस के मनीला से एक ऐतिहासिक वैश्विक जनजागरूकता यात्रा की शुरुआत की थी. यह यात्रा करीब पांच महीने तक चली थी. इस दौरान यह 103 देशों में 80,000 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर छह जून, 1998 को जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) के मुख्यालय पहुंची थी। उस समय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन केंद्र में आईएलओ का एक महत्वपूर्ण वार्षिक सम्मेलन आयोजित हो रहा था।

आईएलओ सम्मेलन के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी सिविल सोसायटी के व्यक्ति को इसे संबोधित करने का मौका दिया गया. इसके तहत कैलाश सत्यार्थी के साथ दो बच्चों को इस वैश्विक मंच पर अपनी बात रखने के लिए बुलाया गया. कैलाश सत्यार्थी ने अपने संबोधन में बाल श्रम के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने और बाल श्रम निषेध के लिए एक विशेष दिन घोषित करने की मांग की।

इसके एक साल बाद 17 जून, 1999 को बाल श्रम उन्मूलन को लेकर आईएलओ कनवेंशन- 182 पारित कर दिया गया. यह बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई में कैलाश सत्यार्थी की एक बड़ी जीत थी. इस कनवेंशन पर बहुत ही कम समय में संयुक्त राष्ट्र के सभी 187 सदस्य देशों ने हस्ताक्षर कर दिए. वहीं, बाल श्रम निषेध को लेकर एक विशेष दिन घोषित किए जाने की मांग को पूरा किया गया. साल 2002 में इसकी घोषणा की गई कि हर साल 12 जून को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाएगा.