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विद्रोही पथिकः नई पीढ़ी को क्रांति का संदेश देता रोचक उपन्यास

‘विद्रोही पथिक’ के लेखक सुनील प्रसाद शर्मा जी हैं। यह पुस्तक एक उपन्यास के रूप में लिखी गई है। जिसमें लेखक ने देश की वर्तमान पीढ़ी को झकझोर कर क्रांति के लिए तैयार रहने का महत्वपूर्ण संदेश दिया है। पुस्तक के लेखक श्री शर्मा लोकतंत्र को ‘लूटतंत्र’ मानते हैं। जिसके विरुद्ध क्रांति का बिगुल फूंक नाम है अपना नैतिक दायित्व मानते हैं। अतः आज की युवा पीढ़ी को झकझोरते हुए श्री शर्मा लिखते हैं :-

लोकतंत्र के सिपहसालारों से अब तो जंग जरूरी है।
कहने को आजाद हैं हम पर यह आजादी अभी अधूरी है।।

वास्तव में लोकतंत्र तभी स्थापित हो सकता है जब देश का शासक वर्ग अपने ‘राजधर्म’ का यथोचित और सम्यक पालन करना सीख ले। यदि शासक का धर्म अधर्म में परिवर्तित हो गया है तो देश में अनीति, अन्याय और अत्याचार को प्रोत्साहन मिलेगा ही। इसी को ‘यथा राजा – तथा प्रजा’ के रूप में चाणक्य ने स्थापित किया है ।वर्तमान समाज में चारों ओर फैली रिश्वतखोरी और बेईमानी को देखकर लेखक श्री शर्मा व्यथित होकर कहते हैं कि :-

कदम कदम पर रिश्वतखोरी छीना झपटी और है बेईमानी।
लब चुप हैं और खामोश निगाहें यह कैसी मजबूरी है ?

आज की राजनीति लोकलुभावन नारों और वादों से जनता का मूर्ख बनाती हुई दिखाई देती है । प्रत्येक राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणा पत्रों में झूठे वादे करता है। दु:ख की बात यह है कि उसके चुनावी घोषणा पत्रों को एक वचन पत्र न मानकर न्यायालय और राजनीति भी उनकी ओर से मुंह फेर लेती है। जबकि होना यह चाहिए कि ऐसे झूठे नारों और वादों को करने वाले लोगों और राजनीतिक दलों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए । लेखक नेताओं के इस प्रकार के लोकलुभावन नारों के बारे में लिखते हैं :-

लोकलुभावन वादों से कब तक दिल बहलाए जाएंगे ?
खंजर घोंपे सीने में फिर से जख्म सहलाए जाएंगे ।।

जब मुंसिफ़ कातिल हो तो न्याय मिलने की कोई उम्मीद नहीं होती। न्याय वहीं से मिल सकता है जहां ईमानदार और न्याय प्रिय लोग न्यायाधीश की गद्दी पर बैठे हों। चाणक्य ने कभी राजनीति को सबसे बड़ा धर्म कहा था तो उसका अभिप्राय यही था कि राजनीति सबसे बड़ा न्यायाधीश भी है। पर जब न्यायाधीश अर्थात राजनीतिक पदों पर ‘कातिल मुंसिफ’ बैठ जाएंगे तो उनसे न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती। लेखक का ह्रदय ऐसी ‘कातिल मुंसिफी’ की व्यवस्था के खिलाफ बगावत करते हुए लिखता है :–

मुर्दे उखड़ेंगे कब्रिस्तानों से जिंदा दफनाये जाएंगे।
जिनके हाथ रंगे लहू से उनसे ही इंसाफ कराए जाएंगे।।

आज की युवा पीढ़ी से एक अच्छी अपील करना प्रत्येक क्रांतिकारी लेखक का कर्तव्य होता है। अपनी पुस्तक से वह जो संदेश देना चाहता है अन्त में उसे संक्षेप में अपीलीय शैली में अवश्य प्रकट करना होता है।। अपने इस कर्तव्य धर्म को समझते हुए लेखक श्री सुनील प्रसाद शर्मा कहते हैं :-

करना होगा आगाज हमें ईमान का परचम लहराना होगा।
तम की बदली को चीर वतन में नया सवेरा लाना होगा ।।
जो अब तक हैं दूर उजालों से जिनके हिस्से ना सूरज निकला। जो छूट गए सबसे पीछे उनकी खातिर हाथ बढ़ाना होगा।।

इस प्रकार श्री शर्मा का यह उपन्यास आज की पीढ़ी के लिए बहुत ही प्रेरणास्पद है। पुस्तक बहुत ही सुंदर सहज सरल शैली में लिखी गई है। जिसके कुल पृष्ठों की संख्या 122 है। परंतु 122 पृष्ठों की विषय सामग्री बहुत ही उपयोगी है। जो कि हमारी युवा पीढ़ी को अंधकार में आशा की एक किरण के रूप में दिखाई देगी ।

यह पुस्तक ‘साहित्यागार’ जयपुर द्वारा प्रकाशित की गई है। पुस्तक का मूल्य ₹200 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता जयपुर, 302003 फोन नंबर 0141- 2310785 व 4022382 पर संपर्क किया जा सकता है।

साभार- https://www.ugtabharat.com/ से