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क्या मुंबई की जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं का हल वर्टिकल जंगल उपजाने में हैं?

पिछले दिनों भारत का पहला वर्टिकल जंगल बेंगलुरु में विकसित किया गया. ये हरे-भरे शहर की तरफ़ एक क़दम है लेकिन इससे ये सवाल भी खड़ा होता है: ज़्यादा प्रदूषण स्तर वाले दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में इस विचार को अभी तक क्यों नहीं अपनाया गया है?

मुंबई देश की वित्तीय राजधानी है और भारत के सबसे आधुनिक महानगरों में से एक है. लेकिन इस शहर की लोकप्रियता के साथ-साथ ज़्यादा आबादी, भीड़-भाड़ और प्रदूषण की परेशानी भी साथ आती है. लगातार बढ़ती जनसंख्या वाले इस शहर में भीड़-भाड़ को कम करने के लिए वर्टिकल विस्तार का तरीक़ा ही अपनाया जा सकता है. वर्टिकल कंस्ट्रक्शन के रुझान के मामले में मुंबई सबसे आगे है. यहां सबसे ज़्यादा गगनचुंबी इमारतें हैं. शहरों में जो समस्या सबसे आम होती है वो है बेतरतीब विकास. मुंबई दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी वाले टॉप 10 शहरों में है. एक तरफ़ जहां नीति बनाने वालों को लगातार बढ़ती आबादी की ज़रूरतों पर ध्यान देना होता है, वहीं योजना बनाने वालों को सतत विकास के विचार को ध्यान में रखने की ज़रूरत होती है. इस लेख में मुंबई की विकास परियोजनाओं में हरियाली को शामिल करने की ज़रूरत की वक़ालत की गई है. इसके लिए हरे-भरे इंफ्रास्ट्रक्चर यानी वर्टिकल जंगल पर एक नज़र डाली गई है.

वर्टिकल कंस्ट्रक्शन के रुझान के मामले में मुंबई सबसे आगे है. यहां सबसे ज़्यादा गगनचुंबी इमारतें हैं.

वर्टिकल जंगल की प्रणाली की शुरुआत में मिलान में एक पुनर्विकास परियोजना के हिस्से के तौर पर हुई वर्टिकल जंगल परियोजना या इटालियन भाषा में जिसे बॉस्को वर्टिकाले भी कहा जाता है, उसमें एक रिहायशी टावर का जोड़ा है जिसमें 900 पेड़ और 10,000 से ज़्यादा पौधे और झाडियां भी है ं.

वर्टिकल जंगल शहरी वनीकरण का एक तरीका है, ये इंसानों और दूसरी कई प्रजातियों के एक-साथ रहने के लिए ज़रूरी है. प्रदूषण में कमी और जैव-विविधता में बढ़ोत्तरी जैसे वर्टिकल जंगल के गुण जल्द ही पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गए, ख़ासतौर पर ख़राब एयर क्वालिटी वाले बड़े शहरों में. नानजिंग, सिंगापुर और सिडनी जैसे शहरों ने अपनी अनूठी हरियाली वाली वास्तुकला, जो वर्टिकल जंगल को बढ़ावा देते हैं, की वजह से अलग पहचान बना ली है.

निर्माण के मामले में 1972 से 2011 के बीच मुंबई में व्यापक बदलाव हुए हैं. आबादी में बढ़ोतरी के साथ अलग-अलग रिहायशी, संस्थागत, शैक्षणिक और औद्योगिक इमारतों की वजह से मुंबई 234 वर्ग किलोमीटर से 1,056 वर्ग किलोमीटर में फैल गई. हालांकि मुंबई शहर पर दबाव की वजह से उपनगरीय इलाक़े भी विकसित होने लगे लेकिन कुल मिलाकर पर्यावरण दूषित होने लगी. बेहद हरियाली वाले इलाक़े इमारतों में तब्दील हो गए. मुंबई में ज़मीन के इस्तेमाल को लेकर कई अध्ययनों में पता चला है कि शहर के हरियाली वाले इलाक़े कम हो रहे हैं. कुल क्षेत्रफल में हरियाली वाले इलाक़े का अनुपात 1988 के 46.7 प्रतिशत से घटकर 2018 में 26.67 प्रतिशत हो गया.

बीतते समय के साथ इमारतों के बनने से प्राकृतिक क्षेत्र में कमी का नतीजा शहर में सतह के तापमान में बढ़ोतरी के रूप में सामने आया. अगर ग्लोबल वॉर्मिंग काबू में नहीं आता है तो ज़मीनी सतह का तापमान समय के साथ बढ़ेगा. ज़मीनी सतह का बढ़ता तापमान जैव विविधता पर ख़राब असर डालता है, प्रदूषण बढ़ाता है और लू के थपेड़े लोगों को झुलसाते हैं.

वर्टिकल जंगल कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को सोखते हैं, ऊर्जा क्षमता और ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाते हैं. मानवीय गतिविधियों की वजह से शहरी तापमान बढ़ने को शहर के ज़्यादा जोखिम वाले इलाक़ों में वर्टिकल जंगल से संतुलित किया जा सकता है.

समुद्र के बढ़ते स्तर का ख़तरा, बार-बार बाढ़ का आना, प्रदूषण का उच्च स्तर और बढ़ती आबादी के साथ विकास की योजनाओं में निरंतरता को शामिल करने का दबाव काफ़ी ज़्यादा है. यहां वर्टिकल जंगल का विचार शहर के सामने खड़ी कई समस्याओं में से एक का संभावित निदान है. वर्टिकल जंगल कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को सोखते हैं, ऊर्जा क्षमता और ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाते हैं. मानवीय गतिविधियों की वजह से शहरी तापमान बढ़ने को शहर के ज़्यादा जोखिम वाले इलाक़ों में वर्टिकल जंगल से संतुलित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, मिलान में वर्टिकल जंगल के निर्माण के बाद शहर की एयर क्वालिटी में सुधार, जैव विविधता में बढ़ोतरी और बढ़ते तापमान के असर में महत्वपूर्ण कमी के सबूत मिले. चीन के नानजिंग में हर साल 25 टन कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने और हर दिन 60 किलोग्राम ऑक्सीजन के उत्पादन के मक़सद से नानजिंग ग्रीन टावर का निर्माण किया जा रहा है.

ऐसे वक़्त में जब न सिर्फ़ प्राकृतिक आपदा बार-बार आ रही है बल्कि उनकी तीव्रता में भी बढ़ोतरी हो रही है, ये बेहद महत्वपूर्ण है कि एक टिकाऊ शहरी भविष्य के बारे में सोचा जाए. जंगलों के अनगिनत फ़ायदे हैं. यहां तक कि शहरी जंगल, जिसमें सड़क के किनारे लगाए गए पेड़ शामिल हैं, भी वायु प्रदूषण कम करने में योगदान देते हैं. मुंबई में जंगल से घिरे विशाल इलाक़े हैं. संजय गांधी राष्ट्रीय पार्क में पक्षियों, जानवरों और कीड़ों की कई प्रजातियां मिलती हैं. आरे फॉरेस्ट मुंबई के फेफड़े की तरह है. शहर के पर्याप्त हिस्से में जंगल होने के बावजूद मुंबई की एयर क्वालिटी इंडेक्स समय के साथ ख़राब होती जा रही है. इससे शहर में वर्टिकल जंगल और दूसरे हरियाली वाले इलाक़ों की ज़रूरत का पता लगता है.

जंगलों को प्राकृतिक रूप से विकसित होने में कई साल लगते हैं लेकिन पूरी तरह बर्बाद होने में कुछ ही महीने. पेड़ों के कटने से हवा, पानी और मिट्टी की क्वॉलिटी पर असर पड़ता है. किसी इलाक़े में इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के लिए पेड़ों को काटना और इस नुक़सान की भरपाई के लिए उतने ही पेड़ों को दूसरी जगह लगाना पर्यावरण को कभी भी फ़ायदा नहीं पहुंचाएगा. इसके अलावा पेड़ को पूरी तरह बड़ा होने में इतना ज़्यादा समय लगता है कि बीच की अवधि में पर्यावरण को कभी भी पूरा न होने वाले नुक़सान होता है. आरे इलाक़े को ‘आरक्षित वन’ घोषित करने के फ़ैसले ने मुंबई को जलवायु के मोर्चे पर नीचे की तरफ़ गिरने से बचा लिया.

शहर में योजना बनाने वालों ने आख़िरी बार वर्टिकल जंगल के विचार पर 2015 में चर्चा की. उस वक़्त कुछ कमियों की वजह से विशेषज्ञों ने इस विचार को छोड़ दिया. चिंता की एक वजह इमारतों में स्टील और कंक्रीट की ज़्यादा मात्रा थी. लेकिन मुंबई में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को लेकर नई परियोजनाओं पर काम किया जा रहा है जो शहर के पर्यावरण को फ़ायदा पहुंचाने के बदले नुक़सान पहुंचा रहे हैं. 2020 के मुताबिक़ मुंबई सबसे ज़्यादा ऊंची इमारत़ों के मामले में दुनिया के 25 बड़े शहरों में आती है. शहर के भीतर 53 गगनचुंबी इमारतें हैं. छोटे रिहायशी और संस्थागत इमारतों के निर्माण के अलावा मुंबई में 44 अतिरिक्त गगनचुंबी इमारतों का निर्माण इस वक़्त चल रहा है.

मुंबई में वर्टिकल जंगल के विचार को लागू करने के लिए लागत-फ़ायदा विश्लेषण किया जाना चाहिए. ऐसा करते वक़्त बदहाल होती जलवायु की स्थिति और भविष्य में शहर पर आने वाले ख़तरे को ध्यान में रखना चाहिए.

वर्टिकल जंगल के विचार को अपनाने वाले देशों ने पहले से ही प्रयोग के आधार को तैयार कर दिया है. उन्होंने कुछ रास्ते बताए हैं जिन पर चलकर वर्टिकल जंगल में बेहतरी की जा सकती है. शहरी योजना बनाने वालों को इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना जैसे कि वर्टिकल जंगल पर काम करते वक़्त इसे दिमाग़ में रखना चाहिए ताकि दूसरे देशों द्वारा की गई ग़लती को दोहराने से परहेज किया जा सके. परियोजनाओं को शहर के भूगोल के मुताबिक़ बदला जाना चाहिए. मुंबई में वर्टिकल जंगल के विचार को लागू करने के लिए लागत-फ़ायदा विश्लेषण किया जाना चाहिए. ऐसा करते वक़्त बदहाल होती जलवायु की स्थिति और भविष्य में शहर पर आने वाले ख़तरे को ध्यान में रखना चाहिए.

विकास परियोजनाओं पर सरकार को काम करते वक़्त भविष्य में उसके असर के बारे में सोचने की ज़रूरत है और उसी के मुताबिक़ फ़ैसला लेना चाहिए. हर परियोजना पर्यावरण का सम्मान करे जिससे कि वो टिकाऊ बन सके. इससे भी बढ़कर योजना बनाने वालों को काम करके सीखने और जैसे ही कोई समस्या आए तो उसके निपटारे के विचार को अपनाना चाहिए. शहर में मौजूदा जंगल और हरे-भरे इलाक़ों को सुरक्षित रखना चाहिए और अतिरिक्त हरे-भरे इलाक़े बनाने चाहिए. शहर के पर्यावरण के हालात को देखते हुए वर्टिकल जंगल और दूसरे हरियाली वाले ढांचे अब ज़रूरत बन गए हैं.

(लेखक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में शोध सहायक हैं)