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35 साल पहले लिखा गया लेख जो आज भी प्रांसगिक है

कोटा ग्रामीण पुलिस अधीक्षक शरद चौधरी द्वारा छात्र जीवन में ब्यूरोक्रेट्स व्यवस्था पर आज से लगभग 35 साल पहले तार्किक लेख लिखा था। गुजरात हाईकोर्ट ने उसी व्यवस्था के तहत गोधरा विधायक के मुखालिफ बोलने पर प्रवीण कुमार के जिला बदर के आदेश को लेकर ब्यूरोक्रेट्स और विधायक यानि सत्ता पक्ष के खिलाफ गंभीर टिप्पणी की है । गुजरात के गोधरा विधायक के खिलाफ उसी विधानसभा क्षेत्र के प्रवीण भाई लोगों के काम काज नहीं करने सहित कई असफलताओं को लेकर विधायक जी से सवाल करते रहे । इसी दौरान उनके खिलाफ ऐसे मामलों में तीन चार मुक़दमे दर्ज हुए और फिर विधायक जी के दबाव में प्रवीण भाई को वहां के एस डी एम ने सात ज़िलों से तड़ीपार करने के आदेश दिए थे। प्रवीण के इस मामले में विधायक के कृत्यों की असहमति के कारण उनके खिलाफ कार्यवाही हुई ।

वे सबूतों के साथ अहमदाबाद हाईकोर्ट गए थे जहाँ गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस परेश उपाध्याय ने इस मामले को गंभीरता से लिया और एस डी एम सहित विधायक जी को भी फटकार लगाते हुए सवाल किया आपके क्षेत्र में कोई भी आपसे सवाल पूंछेगा तो क्या उन्हें तड़ीपार कर देंगे ? हाईकोर्ट जज ने कहा के आपको रजवाड़े नहीं चलाने हैं ,लोकतंत्र है, आप लोगों को बोलने से नहीं रोक सकते। आखिर ऐसा उत्पीड़न करते ही क्यों है ? यह आदेश लोकतंत्र में असहमति के खिलाफ सत्ता और अफसरशाही की सांठ गाँठ का खुला उदाहरण है। पूरे देश में हर ज़िले हर कस्बे ,हर राज्य में ऐसे अनगिनत क़िस्से छुपे हैं। कुछ उजागर होते हैं , कुछ में प्रताड़नाएं छुपी रहती हैं।

मुझे व डॉ.प्रभात सिंघल को इस घटना के साथ कोटा में नियुक्त ग्रामीण पुलिस अधीक्षक शरद चौधरी का छात्र कार्यकाल में ब्यूरोक्रेट्स खासकर शीर्ष अधिकारीयों के क्रिया कलापों उनमें सुझावों के साथ लिखे गए उनके आलेख पर वरिष्ठ आईएएस, आई पीएस अधिकारियों की प्रतिक्रिया ताज़ा हो गयी । शरद चौधरी लगभग 35 वर्ष पूर्व अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बाद , जे एन यू दिल्ली के प्रतिभावान छात्र थे । उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान ही लगातार वरिष्ठ अधिकारियों , प्रशासनिक अधिकारियों के बारे में रिसर्च पत्र लिखा जो जेएनयू के जर्नल भी प्रकाशित हुआ था।

उनका लेख देश के हालातों में ब्यूरोक्रेट्स की भूमिका, उनके कर्तव्य और भौतिक रूप से उनके आचरण से संबधित था, जो उनके कर्तव्यों से अलग उजागर होता था। शरद चौधरी का आलेख आलोचनात्मक भी था और सुझावात्मक भी। शरद चौधरी के इस आलेख को पढ़कर कई भारतीय पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों की भृकुटि तन गयी व नाराज़गी हुई। शरद चौधरी खुद छात्र थे वह भी थोड़े सहमे से रहे , लेकिन उनकी अंतरात्मा की आवाज़ थी के वह सच है ,सही है , जो लिखा है निष्पक्ष भाव से लिखा है। इसलिए वह डिगे नहीं।

शरद चौधरी के ब्यूरोक्रेट्स के इस बहुपक्षीय आलेख को हज़ारों आईएएस , आईपीएस अधिकारियों ने पढ़ा , समझा। कुछ ने बुरा कहा, कुछ ने स्वीकार किया । लेकिन एक दिन अचानक शरद चौधरी का किसी से नंबर लेकर एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी नरेश चन्द्र सक्सेना ने उन्हें फोन किया । शरद चौधरी उनसे बात करने के पहले थोड़े सहमे, उन्होंने शरद चौधरी से उनके लिखे आलेख के बारे में दरयाफ्त किया तो शरद चौधरी ने बेबाक होकर स्वीकार किया उनकी नज़र में यही कुछ सच है, इसमें बदलाव होना चाहिए , बस ।
और लेख पर पुस्तक लिखी गई

उक्त आईएएस को शरद चौधरी के विचार स्वीकार्य लगे और उन्होंने शरद चौधरी से उनके आलेख की थीम पर एक विस्तृत किताब लिखने की स्वीकृति चाही जो शरद चौधरी ने सहज प्रदान कर दी। और फिर सेज प्रकाशन के ज़रिए प्रकाशित नरेश चन्द्र सक्सेना की यह पुस्तक सबसे लोकप्रिय हो गयी। भारतीय पुलिस , प्रशासनिक अधिकारियों के कर्तव्य और उनके वर्तमान ,प्रभावित होकर किये जाने वाले कृत्यों के कई मनोवैज्ञानिक जीवंत उदाहरण के साथ उक्त पुस्तक को रिसर्च व्यवस्था के तहत लिखी गयी जो आज भी शरद चौधरी के पास सुरक्षित है। वह कहते हैं इस तरह की पुस्तक के साथ अन्य पुस्तकों के अध्ययन के साथ हैं।

प्रशांत किशोर अग्रवाल जो वर्तमान निति निर्धारक, चुनावी सर्वेक्षक, चुनाव में जीतने के टिप्स दने के लिए प्रसिद्ध हैं से उन्होंने बहुत कुछ सीखा है । प्रशासनिक अधिकारियों को उनके कृत्य के साथ, विशेषज्ञ सलाहकार की तरह भी कार्य करने के सुझाव रहे हैं और जिन्हें गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने व्यवहारिक रूप से ला गू किये और कामयाबी हासिल की थी। अभी खुद नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यकाल में,अलग अलग विषयों के विशेषज्ञों को अपने साथ जोड़कर , उनकी राय, उनके मशवरे के साथ, राष्ट्र हित में काम करने का फार्मूला शुरू किया है।

वर्तमान हालातों में भी, प्रशासनिक अधिकारी , पुलिस अधिकारी , सरकार के प्रति विधाय , सांसदों के प्रति ,वफादार बनकर, जनता के प्रति उनकी ज़िम्मेदारियाँ भूल जाते हैं ,पक्षपात करते है , मनमानी करते हैं। अपने मंत्री, अपने विधाय , अपने सांसद को खुश रखते हैं और आम जनता के प्रति उनके कर्तव्यों के निर्वहन से कोसों दूर रहते हैं। अधिकारियों में मंत्रियो , सरकार के प्रति वफादारी का मानसिक रोग सिर्फ इसलिए हुआ है कि वह मलाई दार पदों पर रहकर मज़े करे और फिर जब सेवानिवृत्त हों तो भी उन्हें विशेषाधिकारी के रूप में या फिर किसी भी राजनितिक स्तर के राजकीय पद विधाय , सांसद के टिकिट से नवाज़ा जाता रहे। ब्यूरोक्रेट्स की इस मानसिकता के चलते जनता के प्रति जवाबदार , ज़िम्मेदारी का जो कर्तव्य उनके ड्यूटी नियमों में लिखा है उसे वह भूल जाते हैं। एक सो कोल्ड अपने मंत्री , अपने विधायक , सांसद , मुख्यमंत्री को कैसे खुश रखे बस इसीलिए जनता को न्याय की जगह ,अन्याय मिल रहा है , भ्रष्टाचार फैल रहा हैं , नौकरशाही हावी है और पब्लिक सर्वेंट का अर्थ अब विधायक सर्वेंट , सांसद सर्वेंट , मंत्री सर्वेंट , मुख्यमंत्री सर्वेंट तक सीमित होकर रह गया है।

35 साल पहले लिखा गया लेख जो आज भी प्रांसगिक है
अख्तर खान अकेला, कोटा

कोटा ग्रामीण पुलिस अधीक्षक शरद चौधरी द्वारा छात्र जीवन में ब्यूरोक्रेट्स व्यवस्था पर आज से लगभग 35 साल पहले तार्किक लेख लिखा था। गुजरात हाईकोर्ट ने उसी व्यवस्था के तहत गोधरा विधायक के मुखालिफ बोलने पर प्रवीण कुमार के जिला बदर के आदेश को लेकर ब्यूरोक्रेट्स और विधायक यानि सत्ता पक्ष के खिलाफ गंभीर टिप्पणी की है । गुजरात के गोधरा विधायक के खिलाफ उसी विधानसभा क्षेत्र के प्रवीण भाई लोगों के काम काज नहीं करने सहित कई असफलताओं को लेकर विधायक जी से सवाल करते रहे । इसी दौरान उनके खिलाफ ऐसे मामलों में तीन चार मुक़दमे दर्ज हुए और फिर विधायक जी के दबाव में प्रवीण भाई को वहां के एस डी एम ने सात ज़िलों से तड़ीपार करने के आदेश दिए थे। प्रवीण के इस मामले में विधायक के कृत्यों की असहमति के कारण उनके खिलाफ कार्यवाही हुई ।

वे सबूतों के साथ अहमदाबाद हाईकोर्ट गए थे जहाँ गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस परेश उपाध्याय ने इस मामले को गंभीरता से लिया और एस डी एम सहित विधायक जी को भी फटकार लगाते हुए सवाल किया आपके क्षेत्र में कोई भी आपसे सवाल पूंछेगा तो क्या उन्हें तड़ीपार कर देंगे ? हाईकोर्ट जज ने कहा के आपको रजवाड़े नहीं चलाने हैं ,लोकतंत्र है, आप लोगों को बोलने से नहीं रोक सकते। आखिर ऐसा उत्पीड़न करते ही क्यों है ? यह आदेश लोकतंत्र में असहमति के खिलाफ सत्ता और अफसरशाही की सांठ गाँठ का खुला उदाहरण है। पूरे देश में हर ज़िले हर कस्बे ,हर राज्य में ऐसे अनगिनत क़िस्से छुपे हैं। कुछ उजागर होते हैं , कुछ में प्रताड़नाएं छुपी रहती हैं।

मुझे व डॉ.प्रभात सिंघल को इस घटना के साथ कोटा में नियुक्त ग्रामीण पुलिस अधीक्षक शरद चौधरी का छात्र कार्यकाल में ब्यूरोक्रेट्स खासकर शीर्ष अधिकारीयों के क्रिया कलापों उनमें सुझावों के साथ लिखे गए उनके आलेख पर वरिष्ठ आईएएस, आई पीएस अधिकारियों की प्रतिक्रिया ताज़ा हो गयी । शरद चौधरी लगभग 35 वर्ष पूर्व अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बाद , जे एन यू दिल्ली के प्रतिभावान छात्र थे । उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान ही लगातार वरिष्ठ अधिकारियों , प्रशासनिक अधिकारियों के बारे में रिसर्च पत्र लिखा जो जेएनयू के जर्नल भी प्रकाशित हुआ था।

उनका लेख देश के हालातों में ब्यूरोक्रेट्स की भूमिका, उनके कर्तव्य और भौतिक रूप से उनके आचरण से संबधित था, जो उनके कर्तव्यों से अलग उजागर होता था। शरद चौधरी का आलेख आलोचनात्मक भी था और सुझावात्मक भी। शरद चौधरी के इस आलेख को पढ़कर कई भारतीय पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों की भृकुटि तन गयी व नाराज़गी हुई। शरद चौधरी खुद छात्र थे वह भी थोड़े सहमे से रहे , लेकिन उनकी अंतरात्मा की आवाज़ थी के वह सच है ,सही है , जो लिखा है निष्पक्ष भाव से लिखा है। इसलिए वह डिगे नहीं।

शरद चौधरी के ब्यूरोक्रेट्स के इस बहुपक्षीय आलेख को हज़ारों आईएएस , आईपीएस अधिकारियों ने पढ़ा , समझा। कुछ ने बुरा कहा, कुछ ने स्वीकार किया । लेकिन एक दिन अचानक शरद चौधरी का किसी से नंबर लेकर एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी नरेश चन्द्र सक्सेना ने उन्हें फोन किया । शरद चौधरी उनसे बात करने के पहले थोड़े सहमे, उन्होंने शरद चौधरी से उनके लिखे आलेख के बारे में दरयाफ्त किया तो शरद चौधरी ने बेबाक होकर स्वीकार किया उनकी नज़र में यही कुछ सच है, इसमें बदलाव होना चाहिए , बस ।
और लेख पर पुस्तक लिखी गई

उक्त आईएएस को शरद चौधरी के विचार स्वीकार्य लगे और उन्होंने शरद चौधरी से उनके आलेख की थीम पर एक विस्तृत किताब लिखने की स्वीकृति चाही जो शरद चौधरी ने सहज प्रदान कर दी। और फिर सेज प्रकाशन के ज़रिए प्रकाशित नरेश चन्द्र सक्सेना की यह पुस्तक सबसे लोकप्रिय हो गयी। भारतीय पुलिस , प्रशासनिक अधिकारियों के कर्तव्य और उनके वर्तमान ,प्रभावित होकर किये जाने वाले कृत्यों के कई मनोवैज्ञानिक जीवंत उदाहरण के साथ उक्त पुस्तक को रिसर्च व्यवस्था के तहत लिखी गयी जो आज भी शरद चौधरी के पास सुरक्षित है। वह कहते हैं इस तरह की पुस्तक के साथ अन्य पुस्तकों के अध्ययन के साथ हैं।

प्रशांत किशोर अग्रवाल जो वर्तमान निति निर्धारक, चुनावी सर्वेक्षक, चुनाव में जीतने के टिप्स दने के लिए प्रसिद्ध हैं से उन्होंने बहुत कुछ सीखा है । प्रशासनिक अधिकारियों को उनके कृत्य के साथ, विशेषज्ञ सलाहकार की तरह भी कार्य करने के सुझाव रहे हैं और जिन्हें गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने व्यवहारिक रूप से ला गू किये और कामयाबी हासिल की थी। अभी खुद नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यकाल में,अलग अलग विषयों के विशेषज्ञों को अपने साथ जोड़कर , उनकी राय, उनके मशवरे के साथ, राष्ट्र हित में काम करने का फार्मूला शुरू किया है।

वर्तमान हालातों में भी, प्रशासनिक अधिकारी , पुलिस अधिकारी , सरकार के प्रति विधाय , सांसदों के प्रति ,वफादार बनकर, जनता के प्रति उनकी ज़िम्मेदारियाँ भूल जाते हैं ,पक्षपात करते है , मनमानी करते हैं। अपने मंत्री, अपने विधाय , अपने सांसद को खुश रखते हैं और आम जनता के प्रति उनके कर्तव्यों के निर्वहन से कोसों दूर रहते हैं। अधिकारियों में मंत्रियो , सरकार के प्रति वफादारी का मानसिक रोग सिर्फ इसलिए हुआ है कि वह मलाई दार पदों पर रहकर मज़े करे और फिर जब सेवानिवृत्त हों तो भी उन्हें विशेषाधिकारी के रूप में या फिर किसी भी राजनितिक स्तर के राजकीय पद विधाय , सांसद के टिकिट से नवाज़ा जाता रहे। ब्यूरोक्रेट्स की इस मानसिकता के चलते जनता के प्रति जवाबदार , ज़िम्मेदारी का जो कर्तव्य उनके ड्यूटी नियमों में लिखा है उसे वह भूल जाते हैं। एक सो कोल्ड अपने मंत्री , अपने विधायक , सांसद , मुख्यमंत्री को कैसे खुश रखे बस इसीलिए जनता को न्याय की जगह ,अन्याय मिल रहा है , भ्रष्टाचार फैल रहा हैं , नौकरशाही हावी है और पब्लिक सर्वेंट का अर्थ अब विधायक सर्वेंट , सांसद सर्वेंट , मंत्री सर्वेंट , मुख्यमंत्री सर्वेंट तक सीमित होकर रह गया है।

हाड़ोती की धरती पर राजस्थान में आई पी एस पद पर बैठे हुए शख्स शरद चौधरी के जे एन यू के छात्र कार्यकाल में लिखे गए आलेख के तथ्य जो तब भी सच थे और आज भी सच साबित हो रहे हैं। इस दिलेरी बहादुरी के साथ निष्पक्ष रूप सेआज से 35 साल पहले इन हालातों पर क़लम उठाने , लिखने का साहस करने वाले आईपीएस शरद चौधरी साधुवाद के पात्र हैं।साबित हो रहे हैं। इस दिलेरी बहादुरी के साथ निष्पक्ष रूप सेआज से 35 साल पहले इन हालातों पर क़लम उठाने , लिखने का साहस करने वाले आईपीएस शरद चौधरी साधुवाद के पात्र हैं।