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बैतूल के आर्य बलिदानी बृजलाल जी आर्य

मध्य प्रदेश में बैतूल नाम से एक जिला आता है| इस जिले के चिन्चोली गाँव में घनाराम पटेल तथा उनकी पत्नी तापीबाई निवास करते थे| इन ही के सुपुत्र का नाम बृज लाल था| बालाक बृज लाल इस बात से बेहद दु:खी रहते थे कि उनके गाँव के हिन्दु लोग भी ताजिये बनाते थे| आप ने अपने गाँव के हिन्दू लोगों को समझाया और आपके प्रयास का परिणाम यह हुआ कि इस गाँव के हिन्दुओं में ताजिये बनाने की जो प्रथा कभी से चली आ रही थी, वह बंद हो गई| इस कारण इस गाँव के पिंजारा जाति के मुसलमान लोगों को अत्यधिक कष्ट का अनुभव हुआ, जबकि हिन्दू तो ताजिये बनाते थे किन्तु मुसलमान हिन्दुओं के किसी त्यौहार में भाग न लेते थे, तो भी यह पिंजारा जाति के मुसलमान ताजियों क हिन्दुओं की और से बंद होने पर कुपित थे|

दूसरे इस गाँव में ब्रिजलाल जी की मेहनत और प्रभाव से आर्य समाज का प्रभाव भी निरंतर बढ़ने लगा था | इस मध्य ही एक घटना इस गाँव में और घट गई| गाँव की एक महिला को मुसलामनों ने मुसलमान बना लिया| अब बृजलाल जी ने खूब पुरुषार्थ किया, वह इस महिला को पुन: आर्य बनाने के लिए दिन रात एक कर लग गए और अंत में सफलता प्राप्त की| इस प्रकार इस महिला ने एक बार फिर से आर्य धर्म को स्वीकार कर लिया| इतना ही नहीं इस महिला का सजातीय एक आर्य वीर नत्था सिंह से विवाह भी करा दिया|

यह दोनों घटनाएँ आप ही के कारण संभव हो पाई अन्यथा यह कभी नहीं हो सकता था| गाँव में डोलगणपति का उत्सव मनाया जा रहा था| इस उत्सव को हिन्दुओं को संगठित करने का आपने एक साधन के रूप में लिया| आपने डोल गणपति के उत्सव पर सब हिन्दुओं को एक सूत्र में पिरोने के लिए दिन रात एक कर दिया| इस का परिणाम यह हुआ कि इस उत्सव में गाँव के लगभग आठ सौ हिन्दु जुड़ गए जबकि इससे पूर्व इस उत्सव पर नाम मात्र के ही हिन्दू आया करते थे| इस प्रकार आपके भरसक प्रयत्न से आपका नाम क्षेत्र भर में फ़ैलने लगा तथा आर्य समाज का प्रचार और प्रसार भी इस गाँव में अत्यधिक तथा मजबूती के साथ होने लगा| इन सब कारणों से मुसलमानों की आँखों में आपके लिए भय स्पष्ट दिखाई देने लगा था और वह किसी भी प्रकार आँख के इस शहतीर को हटाना चाहते थे| इस कारण मुसलमानों ने इन्हें उकसाने के लिए आर्य समाज के कार्यों में बाधाएं डालनी आरम्भ कर दीं| इस उद्देश्य से ही आर्य समाज के जब सत्संग चल रहे होते थे तो मुसलमान सत्संग में भाग लेने वाले लोगों पर पत्थर फैंकने लगे, जब आर्य समाज का किसी भी प्रकार का उत्सव होता तो वहां आकर गाली गलोच करते हुए आर्यों को मार देने की धमकी देना मानो प्रतिदिन का नियम हो गया था|

यह पिन्जारे मुसलमान वीर ब्रिजलाल द्वारा आरम्भ किये गए किसी भी कार्य में बाधा डालना अपना अधिकार समझने लगे तथा उनके किसी भी काम में बाधा डालने के अवसरों को वह कभी भी हाथ से नहीं जाने देते थे| इन्हीं दिनों बृजलाल जी ने काश्तकारों से कुछ जमीन खरीदने की बात आरम्भ की, मुसलमानों ने इस का खुल कर विरोध करते हुए इस जमीन के टुकडे को अत्यधिक ऊँचे दाम देकर यह भूखंड खरीदना चाहा किन्तु बृजलाल जी भी कोई छोटे खिलाड़ी तो थे नहीं| वह अदालात में गए और अदालत से इस भूखंड का मूल्य निश्चित करवा लिया| इस भूमि के एक टुकडे पर कब्जा लेने के लिए अदालत ने अपने चपरासी को इनके साथ भेज दिया| इस प्रकार एक टुकड़ा तो आपने कब्जे में ले लिया किन्तु जब शेष भाग पर कब्जा लेने के लिए १२ अक्टूबर १९२८ ईस्वी को गए| (यह भू खंड गाँव मैजी चिन्चोली से लगभग दो मील, आज के लागभग तीन किलोमीटर की दूरी वाले खेत थे), जिनका कब्जा लेने के लिए वह जा रहे थे| यहाँ पहुंचते ही कातिल अब्बास खां ने आपके साथ धोखा करते हुए आपकी छाती में छुरा घोंप दिया| इस छुरे का प्रहार इतना तीव्र था कि आप उसी समय यह शरीर यहीं छोड़ते हुए बलि के पथ पर आगे बढ़ गए और अपना बलिदान दे दिया|

अब्बास खां अपने इस घृणित कार्य को पूरा करने के लिए अपने साथ तीन और साथियों को भी लाया था| अत: वह इन तीनों साथियों सहित पकड़ा गया| बैतूल अदालत ने इन चारों कातिलों को सैशन सुपुर्द कर दिया| होशंगाबाद की सैशन अदालत ने चारों को फांसी का दंड देने का आदेश सुना दिया| इस दिन की अदालती कार्यवाही से यह तथ्य सामने आ गया कि इस ह्त्या के पीछे बहुत बड़ा षड्यंत्र काम कर रहा था| इतना ही नहीं इन चारों कातिलों को बचाने के लिए मुसलमानों ने धन को पानी की तरह बहाया| इस धन के बल पर ही मुसलमानों ने नागपुर की ज्युडिशियल अदालत में अपील कर दी| इस अपील पर भी मुसलमानों ने मनमाना धन लुटाया| इसका परिणाम यह हुआ कि कातिल अब्बास खां की फांसी की सजा को तो बरकरार रखा गया किन्तु शेष तीनों दोषियों को बरी कर दिया गया|

अब मुसलामानों के सामने अब्बास खां को बचाने का प्रश्न था| इसके लिए वह नागपुर के गवर्नर के पास अपील लेकर गए| गवर्नर ने इस अपील को नामंजूर कर दिया| इसके पश्चात् मुसलमानों ने वायसराय के पास दया की प्रार्थना दी| इस पर फांसी की सजा को मात्र दस साल के कारावास में बदल दिया गया|

इधर बृजलाल जी का परिवार भी उनके वियोग से तड़प रहा था और इस वियोग के कारण पहले माता पिता तथा बाद में उनकी पत्नी भी इस संसार को छोड़ चुके थे| इस प्रकार बृजलाल जी अपने पीछे तीन संताने असहाय अवस्था में ही छोड़ गए| इनमें पांच वर्षीय कच्छाबाई, जिसकी कुछ ही समय बाद मृत्यु हो गई, दो वर्षीय बेटी चन्द्रावती, जिसका बाद में नत्थासिंह नाम के आर्य समाजी युवक के साथ ब्याह हो गया तथा पुत्र दीप चन्द, जो अपने पिता के बताये मार्ग पर चलते हुए निरंतर आर्य समाज की सेवा में लगा रहा|

बलिदानी बृजलाल जी के गाँव चिंचौली में आर्य समाज खूब फला बढ़ा और यह समाज वेद प्रचार का काम बड़े ही जोर शोर के साथ करती रही| विजय दशमी के अवसर पर यहाँ के गोंड, कोरकू तथा किसान लगभग दो हजार की संख्या में एकत्र हो जाते थे| यह आर्य समाज देहातों में आर्य समाज का प्रचार और प्रसार का कार्य खूब जोर शोर से किया करती थी, छोटी छोटी पुस्तकों का गोदी भाषा में अनुवाद करवा कर प्रकाशित की जाती और फिर इन पुस्तकों को बाँट दिया जाता| इस गांव में आर्य समाज के उत्सवों में भजनोपदेशक तो इस समाज के अपने सदस्य ही हुआ करते थे तथा उपदेश के लिए उपदेशकों को बाहर से बुलाया जाता था| इन अवसरों पर शंका समाधान का कार्यक्रम बड़े ही उत्तम ढंग से होता था|

आज आर्य समाज को अपने इस पुराने युग में लौटने की आवश्यकता है| इतना ही नहीं आज की आर्य समाज को उस पुराने युग के समान ही पुरुषार्थी, त्यागी, निस्वार्थी, पदलिप्सा से दूर और आर्य समाज के लिए जान देने वाले सदस्यों की आवश्यकता है, जो अपने परिवार की चिंता को छोड़कर आर्य समाज की सेवा, इसकी वृद्धि तथा इसके प्रचार और प्रसार के लिए दिन रात एक कर सकें| प्रभु वह दिन एक बार फिर से लौटा दे तो स्वामी दयानंद जी सरस्वती जी का स्वप्न संसार को आर्य बनाना है, एक बार फिर से साकार होने की और बढ़ने लगेगा|

डॉ. अशोक आर्य
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