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भारत की बैंकें भारतीय भाषाओँ का ही अपमान करती है

सेवा में,

श्रीमती निर्मला सीतारामन

भारत की वित्त मंत्री

नई दिल्ली

विषय- भारत में कार्यरत बैंकों के लिए भारतीय भाषाओं में सेवा देना व जानकारी देना अनिवार्य किये जाने संबंधी याचिका

महोदया,

भारत में कार्यरत बैंक खातों, गृह ऋण, निजी ऋण, कृषि ऋण की सही जानकारी न देने के लिए अपनी शर्तें, प्रपत्र, विवरण व वेबसाइट केवल अंग्रेजी में तैयार करवाते हैं ताकि कर्ज की चुकौती में चूक होने पर या शर्तों का उल्लंघन होने पर ग्राहकों से शुल्क वसूला जा सके, उनके साथ छलकपट किया जा सके। अंग्रेजी के बल पर भी देश में बैंक फल फूल रहे हैं और ग्राहकों को लूट रहे हैं, मेरी बात पर भरोसा न हो तो आप किसी स्वतंत्र एजेंसी से सर्वेक्षण करवा लीजिए।

इन बैंकों को पता है कि भारत में आज भी 95 प्रतिशत लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है इसलिए ग्राहकों पर अंग्रेजी भाषा थोपकर उन्हें आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है।

भारत सरकार अथवा भारतीय रिजर्व बैंक ने आज तक बैंकों के लिए यह अनिवार्य नहीं किया है कि वे अपने ग्राहकों से सबसे पहले उनकी पसंदीदा भाषा पूछें और ग्राहक जो भाषा बताए उसमें उसके खाते व कर्ज से संबंधित सभी जानकारियाँ दी जाएँ, ईमेल, ओटीपी, एसएमएस आदि उसी भाषा में भेजे जाएँ।

भारतीय रिजर्व बैंक ने केवल सरकारी बैंकों में हिन्दी व अन्य स्थानीय भाषाओं के प्रयोग के लिए 2011 में परिपत्र जारी किया है परंतु उस परिपत्र का पालन सुनिश्चित करवाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। 10 वर्षों में किसी भी सरकारी बैंक ने उस परिपत्र का पालन शुरू नहीं किया है। विश्व तेजी से बदल रहा है पर भारतीय रिजर्व बैंक ने इन दस वर्षों में परिपत्र में कोई संशोधन भी नहीं किया है।

1. भारत में संचालित सभी निजी बैंक अपना पूरा कामकाज अंग्रेजी में करते हैं।

2. भारत में संचालित सभी सार्वजनिक बैंक भारतीय रिजर्व बैंक के राजभाषा के प्रयोग संबंधी परिपत्र का उल्लंघन करते हैं, भारतीय रिजर्व बैंक ने आज तक इस परिपत्र के उल्लंघन पर किसी भी सरकारी या निजी बैंक के विरुद्ध कार्यवाही नहीं की है ।

2. बैंकों में खाता खोलना, कर्ज लेना आदि की प्रक्रिया पूरी तरह अंग्रेजी में होती है इसलिए महानगरों के अलावा अन्य जगहों के ग्राहकों को भारी परेशानी होती है। बैंक के अधिकारियों द्वारा भारतीय भाषाओं में चैक लिखने वालों को हतोत्साहित किया जाता है।

3. देश में कई निजी बैंक हैं पर एक ने भी आज तक अपनी वेबसाइटों पर भारतीय भाषाओं का विकल्प नहीं दिया है क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक ने केवल अंग्रेजी भाषा में वेबसाइट बनाने का आदेश दिया है। दिखावा करने के लिए एक्सिस बैंक ने गूगल के घटिया अनुवाद को बिना जाँचे डाला है।

4. केवल अंग्रेजी की नीति अपना कर बैंक ग्राहकों का अहित कर रहे हैं। भारत में कार्यरत एक भी बैंक ऐसा नहीं है जो ग्राहकों का हित चाहता हो।

5. डिजिटल बैंकिग सुविधा के युग में बैंकों के ऑनलाइन आवेदनों की पूरी प्रक्रिया पूरी तरह अंग्रेजी में होती है इसलिए महानगरों के अलावा अन्य जगहों के ग्राहकों को भारी कठिनाई होती है, वे समझ ही नहीं पाते हैं कि उनके कर्ज की शर्तें क्या हैं।

6. बैंक अपने उत्पाद देश के करोड़ों अंग्रेजी न जानने वाले लोगों को बेच रहे हैं, जबकि हर बैंकिंग उत्पाद के सारे दस्तावेज, ईमेल, ओटीपी, एसएमएस, करार दस्तावेज, जमा रसीद, आवेदन पत्र आदि केवल और केवल अंग्रेजी में होते हैं।

7. लगभग सभी निजी बैंक अरबों का व्यापार कर रहे हैं, हर वर्ष करोड़ों रुपये का शुद्ध लाभ कमा रहे हैं पर इन बैंकों ने अंग्रेजी न जानने वाले ग्राहकों को उनकी भाषा में सभी प्रपत्र व जानकारी देने के लिए आज तक एक रुपया भी खर्च नहीं किया है।

हमारी माँग है कि भारत सरकार व्यापक जनहित में सभी बैंकों को निर्देश दे कि –

1. कर्ज देते समय व खाता खोलते समय ग्राहकों से संवाद-संचार की पसंदीदा भारतीय भाषा पूछी जाए, बाय डिफॉल्ट अंग्रेजी थोपना बंद करें। भाषा चुनने के बाद से ग्राहकों से सभी प्रकार का संवाद चुनी हुई भाषा में करना अनिवार्य किया जाए।

2. मौजूदा ग्राहकों को भी यही विकल्प दिया जाए।

3. हिन्दीभाषी राज्यों के सभी शाखा कार्यालयों में सभी सूचनाएँ, नामपट, निर्देश पट व शाखा में उपलब्ध सभी छपे फ़ॉर्म प्राथमिक आधार पर द्विभाषी (एकसाथ हिन्दी-अंग्रेजी) में उपलब्ध करवाए जाएँ। और अन्य राज्यों में संबंधित राज्यों की राजभाषाओं का प्रयोग अनिवार्य किया जाए।

4. बैंकों की वेबसाइटों पर हर बैंकिंग सेवा, उत्पाद की जानकारी-ब्रोशर आदि हिन्दी में उपलब्ध करवाए जाएँ।

5. सभी निजी व सरकारी बैंकों में दस्तावेजों को भारतीय भाषाओं में तैयार करने के लिए राज्यों की राजधानी में राज्यवार भाषा अधिकारियों की नियुक्ति करना अनिवार्य किया जाए इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे व अंग्रेजी के बल पर किया जा रहा ग्राहकों का शोषण रुकेगा।

6. भारतीय रिजर्व बैंक अपने केंद्रीय कार्यालय व राज्य मुख्यालयों में विभिन्न भारतीय भाषाओं के विशेषज्ञों की नियुक्ति करे जिन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी जाए कि वे इस नीति के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करें, उन्हें हर छमाही में बैंकों का निरीक्षण करने व उल्लंघन करने पर कारण बताओ नोटिस भेजने व दंड लगाने का अधिकार दिया जाए।

7. जब तक निजी या सरकारी बैंक ग्राहकों को सभी सुविधाएँ भारतीय भाषाओं में देना शुरू नहीं करते हैं उनके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएँ खोलने की अनुमति न दी जाए।

8. सभी निजी या सरकारी बैंकों को अनिवार्य किया जाए कि वे अपनी वार्षिक रिपोर्टों में भारतीय भाषाओं में बैंकिंग सेवाएँ देने के लिए उठाए गए कदमों, उनके बैंक द्वारा भारतीय भाषाओं में दी जा रही बैंकिंग सेवाओं व खर्चों की जानकारी का एक पैराग्राफ जोड़ें।

9. सभी निजी या सरकारी बैंकों को अनिवार्य किया जाए कि 3 महीनों के भीतर नेटबैंकिंग सेवा, एसएसएस व ओटीपी सेवा भारतीय भाषाओं में शुरु करें। और जब तक बैंक ये सुविधा न दें, तब तक ग्राहकों से वसूले जा रहे तिमाही शुल्क पर रोक लगाई जाए।

आशा करता हूँ कि आप सकारात्मक कदम उठाएँगे।

भवदीय,

अभिषेक कुमार

ग्राम-सुल्तानगंज

तहसील-बेगमगंज

जिला-रायसेन

(म.प्र.)

पिन-464570