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उत्तरप्रदेश में बदलाव की बयार

राजनीति में यह नई शुरूआत एवं नया सकारात्मक राजनीतिक प्रचलन ही है कि हम चुनावी वादों को भी पूरा होते हुए देख रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ होते ही अपने चुनावी वादों को पूरा करने की ओर अपने कदम बढ़ा दिये हैं। मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मन्त्रिमंडल की पहली विधिवत बैठक में ही राज्य के किसानों के फसली ऋण माफ कर दिये हैं। इसके अलावा भी प्रांत की कानून-व्यवस्था एवं अन्य मूलभूत अपेक्षाओं की पूर्ति के निर्णय लिये हंै। अवैध बूचडखानों पर कार्रवाई एवं गौवध को नियंत्रित करने के लिये भी उन्होंने कठोर निर्णय लिये है। शासन सुचारुरूप से संचालित होने लगा है, उत्तरप्रदेश उत्तम प्रदेश बनने की दिशा में डग भर रहा है, बदलाव की यह बयार शुभता एवं श्रेयस्करता की सूचक है।

उपनिषदों में कहा गया है कि ”सभी मनुष्य सुखी हों, सभी भय मुक्त हों, सभी एक दूसरे को भाई समान समझें।“ ऐसा ही लक्ष्य योगी सरकार का प्रतीत हो रहा है और यही उनका मिशन है। इतिहास अक्सर किसी आदमी से ऐसा काम करवा देता है, जिसकी उम्मीद नहीं होती। और जब राष्ट्र की आवश्यकता का प्रतीक कोई आदमी बनता है तब वह नायक नहीं, महानायक बन जाता है। योगी आदित्यनाथ एक संन्यासी की ही नहीं, एक यायावरी की ही नहीं, एक राजनीतिज्ञ की ही नहीं, एक ऋषि की समझ रखते हैं। आध्यात्मिकता की गंगा, पराक्रम की जमुना और ज्ञान की सरस्वती उनमें साथ-साथ बहती है। इसलिये प्रदेश एक शांतिपूर्ण प्रगतिशील प्रदेश बनने की ओर अग्रसर है।

अक्सर राजनीतिक दल चुनावों के समय चांद-तारे तक तोड़कर लाने के वादे कर बैठते हैं मगर सत्ता हासिल होते ही वे किये गये वादों को भूल जाते हैं और बगले झांकने को मजबूर हो जाते हैं। राज्य के विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान किसानों से वादा स्वयं प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने किया था और कहा था कि वह विश्वास दिलाते हैं कि अगर भाजपा की सरकार गठित हुई तो उसकी पहली बैठक में ही किसानों के फसली लघु ऋण माफ कराने का वह काम करेंगे। योगी ने ऐसा करके न केवल मोदी की जबान भी रखी और बल्कि अपनी पार्टी के संकल्प पत्र का भी अनुसरण किया। मेरी दृष्टि में यह शुरुआत है, प्रदेश की समस्याएं इतनी सघन है कि उनको सुलझाने एवं उसे प्रगति की ओर अग्रसर करने के लिये संकल्प के साथ-साथ पुरुषार्थ भी अपेक्षित है। नियत और निष्ठा भी जरूरी है। क्योंकि भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता की शक्तियां जबड़े फैलाए, जीभ निकाले, सब कुछ निगल रही थीं। सब अपनी जातियों और ग्रुपों को मजबूत कर रहे थे– प्रदेश को नहीं। अब एक नया सूर्योदय हुआ है जिसमें सबके विकास की संभावनाएं आकार लेती हुई दिख रही है। लोग केवल बुराइयों से लड़ते नहीं रह सकते, वे व्यक्तिगत एवं सामूहिक, निश्चित सकारात्मक लक्ष्य के साथ जीना चाहते हैं। अन्यथा जीवन की सार्थकता नष्ट हो सकती है और होती रही है।

दो तरह के नेता होते हैं- एक वे जो कुछ करना चाहते हैं, दूसरे वे जो कुछ होना चाहते हैं। असली नेता को सूक्ष्मदर्शी और दूरदर्शी होकर, प्रासंगिक और अप्रासंगिक के बीच भेदरेखा बनानी होती है। संयुक्त रूप, सबको साथ लेकर कार्य हो तो प्रदेश के नक्शे को बदला जा सकता है, प्रगति की फिजाएं उद्घाटित की जा सकती है। लेकिन प्रदेश का यह दुर्भाग्य रहा है कि इससे पूर्व नेतृत्व के नीचे शून्यता एवं स्वार्थता ही धनीभूत थी। शून्य एवं स्वार्थ तो सदैव खतरनाक होता ही है। तेजस्वी और खरे नेतृत्व की पदचाप अब सुनाई दे रही है तो शुभ घटित होगा ही। योगी सरकार अन्य समस्याओं को सुलझाने पर भी जिस तरह लगी हुई है वह लोकतन्त्र में पवित्रता एवं जिजीविषा को दर्शाता है।

योगी सरकार का सफर इतना भी आसान नहीं है, क्योंकि उत्तर प्रदेश की ऐसी अनगिनत समस्याएं हैं जिनका सीधा सम्बन्ध सत्तारूढ़ सरकार के चरित्र से जुड़ा हुआ है। चूंकि योगी सरकार सही मायनों में जनता की सरकार है और ऐसी बहुमत की सरकार है जिसे समाज के सभी वर्गों और सम्प्रदायों का समर्थन मिला है अतः इसका असर होना चाहिए। व्यवस्था सुधार पहली आवश्यकता है। राजनीतिक मूल्यों में भी बदलाव के साथ-साथ सेवा की भावना बल पकड़नी चाहिए। सिस्टम में सुधार की शुरुआत शीर्ष से हो, क्योंकि आदर्श सदैव ऊपर से उतरता है। सभी वर्गों में यह भरोसा पैदा होना जरूरी है कि यह उनकी सरकार है और उनके वोट से सत्ता पर विराजी है।
प्रदेश की जनता ने लम्बा वनवास भोगा है। पिछले दस वर्ष के मायावती और अखिलेश शासन के दौरान पुलिस बल का नैतिक बल तोड़कर रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। पुलिस को जनता का सेवक और कानून का पालक होने की जगह सत्तारूढ़ राजनीतिक दल और उसके छुटभैये नेताओं तक का गुलाम बनाने की कोशिशें की गईं। पुलिस के कार्य में बेइन्तहा राजनीतिक हस्तक्षेप किया गया और कानून की अवहेलना करने वाले छुटभैये के कारनामों से उसे निगाहें फेरने तक की परोक्ष हिदायतें दी गईं। अतः उत्तर प्रदेश में कानून का राज स्थापित करना बहुत कठिन कार्य होगा जिसे योगीजी को पूरा करना होगा क्योंकि महिलाओं का सम्मान और उन पर अत्याचार सभी कुछ कानून के राज से जुड़ा हुआ है। कानून-व्यवस्था के सिलसिले में जिस तरह नई सरकार ने काम करना शुरू किया है उससे इस तरह के अंधेरे छंटते हुए दिखाई दे रहे हैं। प्रदेश के केनवास पर शांति, प्रेम, सुरक्षा, विकास और सह-अस्तित्व के रंग भरने हांेगे, क्योंकि लम्बे दौर से केवल दलगत स्वार्थ और सत्ता की भूख प्रदेश पर हावी रही है।

सबकी पूजा, प्रार्थना, उपासना की स्वतंत्रता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। यही सबको भयमुक्त रखता है। किसी का कोई विरोध नहीं। सम्प्रदाय नहीं लड़ता है सम्प्रदायवाद लड़ता है। यह सम्प्रदायवाद तब बनता है जब इसका प्रयोग किसी दूसरे सम्प्रदाय के विरुद्ध राजनीतिक या सामाजिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। दरअसल साम्प्रदायिक विद्वेष के बीज वहीं जन्म लेते हैं जहां एक सम्प्रदाय का हित दूसरे सम्प्रदाय के हितों से टकराता है। हिन्दू-मुस्लिम हितों को आपस में भिड़ाने और परस्पर टकराने की राजनीति होती रही हैं, इसलिए साम्प्रदायिकता बढी़, धार्मिकता नष्ट हुई। साम्प्रदायिकता का जन्म अनेक जटिल तत्वों से जुड़ा है – आर्थिक, धार्मिक एवं मनोवैज्ञानिक। आज तेजी के साथ साम्प्रदायिकता एक जीवन शैली का रूप ग्रहण कर रही है। यह खतरनाक स्थिति है, कारण सबको अपनी-अपनी पहचान समाप्त होेने का खतरा दिख रहा है। आवश्यकता है धर्म को प्रतिष्ठापित करने के बहाने राजनीति का खेल न खेला जाए। राजनीति में सम्प्रदाय न आये, नैतिकता आए, आदर्श आए, श्रेष्ठ मूल्य आएँ। नैतिकता मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है। ”कर्तव्य“ और ”त्याग“ भावना पूर्ति करने वाली है। अतः न ही इनका विरोध हो और न ही इनकी तरफ से दृष्टि मोड़ लेना उचित है। यही स्थिति योगीजी को प्रदेश में स्थापित करनी है, जो एक चुनौती है।

प्रदेश को एक ऐसे परिवेश की आवश्यकता है जिसमें सभी धर्म, जाति, वर्ग एवं सम्प्रदाय के लोग बिना भेदभाव के प्रगति की ओर अग्रसर हो सके। मुसलमान समाज को विकास की बात सोचनी चाहिए। समय के साथ कदम ताल करते हुए आगे बढना चाहिए और अपनी महिलाओं को वे अधिकार देने चाहिएं जो भारत का संविधान किसी भी महिला को देता है। ऐसा होने से प्रदेश में साम्प्रदायिक सौहार्द का वातावरण निर्मित होगा। जिन मतदाताओं ने भाजपा को मत भी नहीं दिया उन्हें भी यह लगना जरूरी है कि यह जनता की सरकार है, यह उनकी सरकार है, यह सबकी सरकार है। इसके लिये भाजपा के कार्यकर्ताओं को भी अपना मन और मानसिकता बदलनी होगी। ऐसा होने से ही एक क्रांतिकारी बदलाव सामने आयेगा और यही राज्य को प्रगति की अमाप्य दूरियों तक ले जायेगा।

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(ललित गर्ग)
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