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खूबसूरत जौनसार का घिनौना सामाजिक यथार्थ

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित जौनसार-बावर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यह परगना क्षेत्र विशेष के आधार पर जनजाति घोषित है। देहरादून से जौनसार क्षेत्र महज 50 किमी की दूरी पर है। करीब 369 गांव के इस घोषित जनजाति क्षेत्र में महासू समेत कई देवी-देवताओं के सैकड़ों मंदिर हैं, जिनमें दलितों और महिलाओं का प्रवेश आज भी वर्जित है।

जौनसार-बावर में ”जन अधिकार यात्रा“ 9 से 13 अक्टूबर 2015 तक निकाली गई। राष्ट्र सेवा दल, युवा बिरादरी, समाजवादी समागम, एनएपीएम, जनहक मंच आदि संगठनों के उत्तराखंड के अलावा मध्यप्रदेश, यूपी और दिल्ली के यात्री शामिल थे। ग्रामीणों से संवाद स्थापित कर विकास से जुड़ी जानकारियां जुटाना, नशा बंदी, महिला हिंसा, पलायन, बेरोजगारी, शिक्षा-स्वास्थ्य, अंधविश्वास खत्म करना, भूमि अधिकार आदि मुद्दों पर जागरूकता निर्माण करना यात्रा का उद्देश्य था। नुक्कड नाटक़, नुक्कड़ सभाएं, जनगीत, अंधविश्वास का भंडाफोड़ कार्यक्रम यात्रा के दौरान किए गए। जौनसार की 50 प्रतिशत आबादी वाली सभी जाति-वर्ग की महिलाएं और दलितों को धार्मिक क्रिया-कलापों से वंचित रखने, उन्हें मंदिरों में प्रवेश से वर्जित रखने पर जागरूकता फैलाना भी यात्रा का उद्देश्य था।

यात्रा जौनसार के गांव घोया से बीते नौ अक्टूबर 2015 को शुरू हुई। 10 अक्टूबर को राजकीय इंटर कॉलेज लखवाड़, ब्रहामण गांव होते हुए भराया पहुंची थी। यहां से यात्रा खत फरटाड के लखस्यार गांव होते हुए रात को केनौटा गांव जानी थी। केनौटा में रात का कार्यक्रम और रात्रि विश्राम था। लेकिन, ब्रहामण गांव में ही यात्रियों को सूचना मिली कि लखस्यार गांव में पंचायत चल रही है और कुछ लोग जन अधिकार यात्रा का विरोध कर रहे हैं। लखस्यार में हुई बैठक में केनोटा के ग्रामीणों से लिखित रूप में निर्णरू लिया है कि कोई भी ग्रामीण यात्रा को गांव में नहीं घूसने देगा, घूसे तो उनके कार्यक्रम में शामिल नहीं होगा, न ही यात्रियों की किसी तरह की मदद करेगा। पंचायत के बारे मंे भी कोई, किसी को नहीं बताएगा। पंचायत में हुए निर्णयों का उल्लंघन करने पर 50 हजार का जुर्माना लगाया जाएगा।” इससे पहले खत की पंचायत में किसी परिवार के मुखिया के नहीं पहुंचने पर भी 15 हजार रूपये का जुर्माना लगाने की धमकी दी गई थी।

इसी बीच लखस्यार महासू देवता मंदिर के देवमाली श्री सूरबीर सिंह तोमर अपने एक और साथी के साथ भराया गांव यात्रियों से मिलने पहुंचे और यात्रा की पूरी जानकारी लेते हुए उद्देश्यों को सराहते हुए लखस्यार में भी इसे दिखाने का आग्रह पूरी जिम्मेदारी लेने के साथ किया। उनके साथ ही सभी यात्री लखस्यार पहुंचे। यहां कार्यक्रम शुरू करने की तैयारी चल ही रही थी कि पूर्व प्रधान रघुवीर सिंह के नेतृत्व में हैकुछ अराजक तत्व शराब के नशे में धुत होकर यात्रियों के पास आए और अभद्र ढंग से सामान उठाकर सीधे लौटने को कहने लगे। उन्होंने धमकाते हुए कहा कि फरटाड के नौ गांवों की पंचायत लखस्यार में आज दिन में हुई थी, जिसमें लिखित तौर पर तय हो चुका है कि ”जन अधिकार यात्रा को पूरी खत में नहीं घूसने दिया जाएगा, रघुवीर सिंह ने कहा कि हमारे दलित भी जागरूक हैं, वो पूरे क्षेत्र के राजपुत-ब्रहामणों से भी ज्यादा सक्षम हैं और उनसे बेहतर जीवन जी रहे हैं, उन्हें जागरूक करने की आपको कोई जरूरत नहीं है, नौ गांवों में घूसने की कोशिश की तो हम तुम्हारे साथ कहीं भी और कुछ भी कर सकते हैं“ यात्रा में महिलाएं भी थीं और अंधेरा हो गया था, लिहाज यात्री लौट गए।
देश में प्रत्येक नागरिक को कभी भी और कहीं भी आने-जाने की आजादी के साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। जिन गांवों में जाने से रोका जा रहा है, उनमें यात्रा में शामिल कई यात्रियों के रिश्तेदार रहते हैं, जबकि कुछ यात्री भी यहां से हैं। यात्रा की पूरी सूचना जिलाधिकारी देहरादून के कार्यालय में यात्रा शुरू होने से पहले दी कई थी। लेकिन प्रशासन द्वारा यात्रियों की सुरक्षा का इंतजाम करने का कोई आदेश पुलिस को नहीं दिया गया। शिकायत करने के बावजूद जन अधिकार यात्रा पर फरटाड खत में पंचायत करके रोक लगाने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई।

यात्रा के दौरान सरकार, प्रशासन और मंदिर समितियों की ओर से बयान दिए गए कि इस क्षेत्र के किसी भी मंदिर में किसी भी जाति-समुदाय के व्यक्ति के लिए कोई रोक-टोक नहीं है। यात्रा के साथ हो रहे बर्ताव पर टिप्पणी करते हुए कहा गया कि जनजातियों की अपनी धार्मिक मान्यताएं, परंपरा और रीति-रिवाज हैं, जिसमें प्रशासन द्वारा छेड़छाड़ करना उचित नहीं है। जबकि, जौनसार-बावर में वास्तव में कोई जनजाति है ही नहीं, बल्कि इसे क्षेत्र विशेष के आधार पर जनजाति घोषित किया गया है, इससे यहां रहने वाली सभी सवर्ण जातियां एसटी रिजर्वेशन का लाभ ले रही हैं।
त्रासदी यह है कि मंदिरों के निर्माण कार्य के लिए दलितों से चंदा लेने में समितियों को कोई आपत्ति नहीं है तथा कारीगीरी, मजदूरी, मूर्ति निर्माण में भी दलितों की ही अहम भूमिका रहती है। लेकिन, मंदिर बन जाने के बाद वे सवर्णोंे के जूते रखने के स्थान से आगे नहीं जा सकते हैं।
इतना ही नहीं, जब इस इलाके के एक मंदिर में कुछ दलित नेताओं द्वारा मंदिर प्रवेश का प्रयास किया गया, तो ग्रामीणों पर कथित देवी-देवता अवतरित हो गए। ये हाथ में पत्थर, ईंट, तलवार आदि लिए नाचते हुए मंदिर और यात्रियों के बीच खड़े हो गए। शासन-प्रशासन का दबाव पढ़ा तो मंदिर के आंगन में लेट गए और यात्रियों को अपने शरीर के उपर से गुजरने को कहने लगे। मंदिर के नाम पर छोड़े गए तीन भेड़ (घांडवे) मंदिर समिति और वहां दलितों को रोकने के लिए जमा हुए ग्रामीण खुद काटकर चट कर गए और बाद में अखबारों में खबर फैला दी गई कि दलितों के मंदिर प्रवेश की मांग के चलते ये भेड़ अचानक मर गए।
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यात्रा के दौरान जो घटनाएं सामने आईं उससे यह तो स्पष्ट है कि जौनसार-बावर में कानून और संविधान का राज नहीं चल रहा है, बल्कि कुछ दबंग जाति के आधार पर कानून और संविधान से उपर उठकर अपनी मंशा के अनुसार राजकाज चला रहे हैं। सामाजिक न्याय का विचार रखने वाले स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार तक इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।
यह सब उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार की नाक के नीचे चल रहा है। प्रदेश में पक्ष-विपक्ष यथा स्थिति को कायम रखने में एकजुट होकर संकल्पित दिखलाई पड़ते हैं। इस परिस्थिति को बदलने के लिए पूर्व में भी एक बार सामूहिक मंदिर प्रवेश के प्रयास प्रशासन की मौजूदगी में हुआ, लेकिन वह सिर्फ एक इवेंट (कार्यक्रम) बनकर ही रह गया। 21वीं सदी में दलितों के साथ हो रहा ऐतिहासिक अन्याय फिलहाल खत्म होता नहीं दिख रहा, लेकिन जबरसिंह वर्मा के नेतृत्व में हुए पदयात्रा के कार्यक्रम ने जौनसार-बावर इलाके में जबरदस्त बहस खड़ी कर दी है। दलित युवा अपने अधिकार हासिल करने के लिए उत्साहित एवं प्रतिबद्ध नजर आ रहे हैं, जिससे उम्मीद बनती है कि आने वाले समय में जौनसार-बावर मे ंसामाजिक बदलाव देखने को मिलेंगे।
– डा. सुनीलम, पूर्व विधायक, राष्ट्रीय संयोजक समाजवादी समागम, जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, 09425109770
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