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कंगना की वजह से देश का असली इतिहास सामने तो आ रहा है

कंगना विवाद का एक फायदा यह हुआ है कि बंटवारे के इतिहास को पढ़ने में जो हमें आलस लगता है और उसे शायद ही ठीक से पढ़ते हैं , उसे एक बार फिर खोद कर पढ़ने की जरूरत जरूर महसूस होती है ।

आज़ादी जरूर मिली थी 15 अगस्त 1947 को , पर वह कितनी संप्रभु थी , वह जानने की जरूरत है , जिससे उस समय के निर्णयों पर पुनर्विचार किया जा सके और कंगना के वक्तव्य की सत्यता भी समझी जा सके .

1947 की आजादी एक भीख में मिली आजादी थी क्योंकि ब्रिटेन में लेबर पार्टी के प्रमुख क्लिमेंट एटली ने अपने चुनाव घोषणापत्र में कहा था कि दूसरे देशों को गुलाम बना कर रखना और उपनिवेशवाद गलत है और यदि ब्रिटेन में मेरी पार्टी सत्ता में आएगी तब मैं ब्रिटेन के सभी गुलाम देशों को आजाद कर दूंगा

और क्लीमेंट एटली जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने तब 3 साल के अंदर उन्होंने लगभग 38 देशों को आजाद किया अब गूगल पर सर्च करेंगे तब पता चलेगा 38 देशों को आजादी दे दी

भारत और पाकिस्तान ब्रिटिश इंडिया के अंदर दो डोमिनियन स्टेट बनाए गए थे जिनका गवर्नर जनरल ब्रिटेन के राजा द्वारा नियुक्त किए गए थे और तकनीकी तौर पर वह उनको रिपोर्ट करते थे .

भारत में मॉउन्टबेटन को वॉयसरॉय से गवर्नर जनरल की पदवी दे दी गयी और पाकिस्तान में जिन्नाह को गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया . ब्रिटैन ने किस टाइप की आज़ादी दी थी, उसके लिए जिन्नाह ने जो शपथ ग्रहण की थी उसका मजमून देखिए ..

In August 1947, King George VI appointed Mohammad Ali Jinnah as the Governor-General of Pakistan and authorised him to exercise and perform all the powers and duties as his representative in Pakistan. Mohammad Ali Jinnah took the following oath of office:

“I, Mohammad Ali Jinnah, do solemnly affirm true faith and allegiance to the Constitution of Pakistan as by law established and that I will be faithful to His Majesty King George VI, in the office of Governor General of Pakistan.”

शपथ में एक तरफ पाकिस्तान के संविधान के प्रति स्वामिभक्ति भी बोल रहे हैं और दूसरी तरफ पाकिस्तान के बादशाह किंग जॉर्ज षष्ठम के प्रति भी वही बात कही जा रही है . दोनों बातें एक साथ कैसे सच हो सकतीं हैं . इसका मतलब पाकिस्तान कोई संप्रभु राष्ट्र नहीं था . बस अंग्रेज गवर्नर जनरल की जगह जिन्नाह आ गए थे . पाकिस्तान का संविधान तो 10 साल बाद बन पाया था .

आप गूगल पर मोनार्च ऑफ पाकिस्तान सर्च करके विस्तार से पढ़िए

अगर आप सोचते हैं कि यह सब लीगल मैटर रहा होगा , असली ताकत तो इन नेहरू , जिन्नाह के पास ही रही होगी तो भी आप गलत हैं .

सैनिक ताकत भी ब्रिटैन के ही हाथ में थी 1951 तक पाकिस्तान में . पहले पाकिस्तानी आर्मी जनरल अयूब खान बने जनवरी 1951 में . उसके पहले के दो आर्मी चीफ पाकिस्तान में ब्रिटिश आर्मी वाले ही थे .

Frank Messervy

Frank Messervy was a British General who took charge of the Pakistan Army soon after the independence and served as the first Commander-in-Chief until February 10, 1948.

Douglas Gracey

Following Frank Messervy, Douglas Gracey became the second Commander-in-Chief of Pakistan on February 11, 1948, and ended his term on January 16, 1951.

Ayub Khan

Ayub Khan replaced Douglas Gracey, as the first Pakistani to serve as Commander-in-Chief of Pakistan Army and later became the first Army General to serve as the President of Pakistan. He was just 43 when he was given the task to lead Pakistan’s Army and was the first Army general to impose the country’s first Martial Law. After becoming president, he elevated himself to the post of Field Marshal Rank and occupied the post of Army Chief for 7 years. His tenure ended on October 27, 1958.

लगभग यही हाल गणतंत्र बनने तक भारत का भी था . यहां मॉउन्टबेटन साहब भी जॉर्ज षष्ठम की स्वामिभक्ति के नाम पर शपथ ग्रहण कर रहे थे और जिसका मतलब मोनार्क ऑफ़ इंडिया भी जॉर्ज षष्ठम ही थे , हमारे यहां राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी के बनने तक .

I, Louis Francis Albert Victor Nicholas, Viscount Mountbatten of Burma, do swear that I will be faithful and bear true allegiance to His Majesty King George VI, his heirs and successors according to law. I, Louis Francis Albert Victor Nicholas, Viscount Mountbatten of Burma, do swear that I will well(?) and truly serve His Majesty King George VI, his heirs and successors in the office of Governor General of India.

भारतीय सेना भी ब्रिटिश जनरलों के आधीन थी और पहले भारतीय जनरल के एम् करिअप्पा 15 जनवरी 1949 को सेना की चीफ बने थे .

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति बने और देश वास्तविक तौर पर संप्रभु राष्ट्र तभी बना . पाकिस्तान को यह हासिल करने में 1956 हो गया क्योंकि उनका कोई संविधान तब तक नहीं बन पाया था .

इस तरह से देखा जाए तो करीब 3 साल तक भारत और 10 साल तक पाकिस्तान ब्रिटैन को ही रिपोर्ट कर रहा था , सेना , करेंसी सब कुछ उन्हीं के हिसाब से था . यह इसलिए भी जरूरी था जिससे भारत , पाकिस्तान में जो अंग्रेज काम कर रहे थे , व्यवसाय या नौकरी कर रहे थे , उनको सुरक्षित रूप से वापस जाने , अपनी ज़मीने , पैसा , कंपनियां बेचने में सुविधा रहे अन्यथा उनका हाल अफ़ग़ानिस्तान में भागते अमेरिकी सैनिकों जैसा हो सकता था .

यह हमें इतिहास में कभी नहीं पढ़ाया गया कि देश सही अर्थों में 26 जनवरी 1950 को आज़ाद हुआ था और 15 अगस्त 1947 को सिर्फ आज़ादी देने का एक नाटक हुआ था . 15 अगस्त 1947 को प्रधानमंत्री नेहरू अंग्रेज बादशाह के गवर्नर जनरल माऊंटबेटन के मातहत थे और कोई भी स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम नहीं थे . पाकिस्तान की स्थिति थोड़ी सी बेहतर थी क्योंकि वहां कोई अंग्रेज गवर्नर जनरल नहीं था .

अब इतना जानने के बाद जरा सोचिए कि अक्टूबर 1947 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया , वहां के राजा ने भारत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए और भारत की सेना पूरे कश्मीर को छुड़वाना चाहती थी तो उसे अचानक बीच में रोक कर UNO में जाने का नेहरू का फैसला क्या सिर्फ उनका अपना फैसला था .

माउंटबेटन साहब जनवरी 1948 तक गवर्नर जनरल थे और वही सेना की कमान भी संभाल रहे थे . और पाकिस्तान में भी ब्रिटिश आर्मी चीफ ही था लड़ने वाला . गिलगित स्काउट्स का जनरल तो एक अंग्रेज ही था जो बिना पाकिस्तान के कहे ही भारत की बजाए पाकिस्तान से मिल गया था ।

मतलब 1947–48 का कश्मीर युद्ध ब्रिटैन का दायां हाथ बाएं हाथ से नूरा कुश्ती की तरह लड़ रहा था. उस युद्ध को ब्रिटैन चाहता तो आसानी से रोक सकता था . ब्रिटेन दिल से पूरी तरह से पाकिस्तान की तरफ था पर भारत में कांग्रेस को नियंत्रित कर के सेक्युलर संविधान आदि बनवाने को निर्देशित कर रहा था ।

15 अगस्त 1947 की आज़ादी के पूरे चलचित्र का निर्देशक ब्रिटेन था , जिनाह , नेहरू , गांधी सिर्फ अभिनेता थे ।

बहुत सारे लोग ऐसा मानते हैं कि 1947 की आज़ादी ब्रिटैन की तरफ से आज़ादी के नाम पर सिर्फ एक स्टॉप गैप अरेंजमेंट था . उनकी सोच यह थी कि 600 से ऊपर रियासतें जो स्वतंत्र कर दी गईं थीं , वह और भारत पाकिस्तान के धार्मिक पचड़े के साथ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के लोग साल दो साल में जब एक बड़े गृह युद्ध में फंस जाएंगे तब ब्रिटिश बादशाह फिर से अपना राज पूरे भारत पर कायम कर लेगा .

लेकिन वह हो न सका सरदार पटेल जैसे नेताओं की वजह से . हाँ , पाकिस्तान के रूप में उनको एक अपना हितैषी अड्डा बनाने के लिए जरूर मिल गया . कश्मीर समस्या को पैदा करने में ब्रिटेन का हाथ था और उसके लिए भारत में नेहरू जैसे अंग्रेज भक्त प्रधानमंत्री का होना आवश्यक था , जिनाह तो थे ही अंग्रेज भक्त ।

अब आते हैं कंगना के वक्तव्य पर . उसमें अर्धसत्य है . 26 जनवरी 1950 तक तो भारत 99 प्रतिशत अंग्रेजों के ही आधीन था .

उसके बाद संविधान जो बनाया , उसमें अनुच्छेद 13(1 ) कहता है कि वह सभी कानून भी कानून बने रहेंगे जो आज़ादी से पहले से कानून हैं , जब तक वह भारतीय संविधान के विरोधी साबित न हो जाएं . क्यों डाला गया इस अनुच्छेद को ।

अरे भाई , 5 साल के अंदर बिल्कुल नए कानून आज़ाद भारत की जरूरतों के हिसाब से बनाने में क्या दिक्कत थी । सांसद, विधायक, मंत्री सिर्फ मलाई खाने के लिए बनना था ।

अगर देश में 4000 कानून गुलामी के समय के चल रहे थे तो कायदे से एक आयोग बना कर उनको संविधान सम्मत हैं या नहीं यह परीक्षण कर के उनको निरस्त कर देना चाहिए था 5 साल के अंदर .

लेकिन वह सभी कानून अभी भी मौजूद हैं . उनमें से एक कानून यह भी था कि ब्रिटैन का राजा भारत का सम्राट है . ऐसे ही 1800 कानून मोदी सरकार ने 2018 में निरस्त किए थे . आज जो भी देश में लचर कानून व्यवस्था है वह सिर्फ इसीलिए है क्योंकि हमने 90 प्रतिशत ब्रिटिश कानूनों को ही प्रचलन में रखा हुआ है और जिनको बदले जाने के कोई आसार नहीं हैं .

पुलिस , नौकरशाही भी यथावत रख ली गयी , उनके तौर तरीके सुधारने के लिए बीसियों आयोग बने पर हुआ कुछ नहीं । इसलिए आज़ादी के पहले का प्रशासनिक तंत्र वैसे ही काम कर रहा है , बस गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेजों ने ले ली है ।

चूंकि हम सभी अंग्रेजी कानूनों और व्यवस्थाओं को बनाए हुए हैं , तो इसका अर्थ तो यही हुआ की उनका शासन ठीक था और हम उसे ही अच्छा समझते हैं .

फिर किस बात की आज़ादी मिली है ?

जी हाँ , 25 प्रतिशत आज़ादी है, गला फाड़ कर चिल्लाने की , धरना , प्रदर्शन की , रेल, सड़क , हवाई जहाज बंद करने की , सड़क पर कब्जा जमाने की , भारत बंद करने की , घोटाले करने की . यह आज़ादी 1947 के पहले किसी को नहीं थी । अगर करते थे तो गोली खानी पड़ती थी । अभी तो राष्ट्रपति भवन पर रईस किसान कब्जा कर लेंगे तो भी कुछ नहीं होगा चुनाव के चक्कर में ।

तो मेरे हिसाब से 15 अगस्त 1947 में 1 प्रतिशत आज़ादी मिली थी और 26 जनवरी 1950 को 20 प्रतिशत आज़ादी मिली थी जनता को . हाँ , देश के धनपतियों , नेताओं , मीडिया, पुलिस , नौकरशाहों को जरूर 100 प्रतिशत आज़ादी तभी मिल गयी थी भ्रष्टाचार करने की .

बाकि जनता तो अभी भी सड़ी गली अंग्रेजी कानून और शासन व्यवस्था को यथावत ढो रही है . 2014 से आज़ादी में 5 प्रतिशत वृद्धि जरूर हुई है पर वह सोशल मीडिया की वजह से है . उससे सब की पोलपट्टी खुलने से कुछ सुधार हुआ है . 2014 से पब्लिक सरकारी और निजी मीडिया के भरोसे नहीं रही है । खुद ही खोद खोद कर पता कर रही है ।

ऐतिहासिक तथ्यों के परिपेक्ष्य में अगर देखा जाए तो 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस मनाने का कोई तुक नहीं है अगर हम 26 जनवरी 1950 तक ब्रिटेन के सम्राट को ही अपना राजा मान रहे थे और उसकी स्वामिभक्ति के नाम पर शपथ ले रहे थे ।

बेहतर हो 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस घोषित किया जाए जिस दिन पहले राष्ट्रपति ने भारत के संविधान के नाम पर पदभार ग्रहण किया था ।

और एक दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात जब जेएनयू में कन्हैया कुमार एंड गैंग हम लेके रहेंगे आजादी जैसे नारे लगाती है जब शाहीन बाग में हम लेके रहेंगे आजादी के नारे लगते हैं तब कोई उनसे यह क्यों नहीं कहता कि हमें तो आजादी 1947 में मिल गई है अब तुम्हें किस बात की आजादी चाहिए।

साभार acebook.com/प्रवीन-शर्मा-नीतू-455400081882173/ से