लोक परंपरा में “भाई- दूज “

Sunita Tripathi

आज बहनें देती हैं भाईयों को गाली,
जो करती है उनके जीवन की रखवाली।
ब्रत करके, बलाएँ लेके ,बहु- विधि देती हैं उनको गाली।
नये अन्न से,शुद्ध मन से, नाना पकवान बना ली।
घर- आंगन खलिहान किए हैं, सबने साफ -सफाई ,
बहु विधि करके यत्न सभी ने गोबर है मंगवाई।
लोकगीत के खातिर सखियों ने हर घर फेरी लगाई।
तब जाकर हर घर से एक-एक बहू -बेटियां आईं।
गोबर से गोधन बनवाई,
मूसलचंद मंगाई ,
लोक गीत के लोक चित् ने मंगल गीत को गाई।

पूजा- पाठ किये सब मिलकर,
सबने त्यौहार मनाई,
बेचारे गोधन भाग न पाए ,
हुई उनकी खूब कुटाई ।
पांच- पांच या सात- सात,
जितना था जिसने कूटा,
लड्डू मिश्री खील -बतासे ,
सब बच्चों ने लूटा।
मिल-जुल सब त्यौहारी खाए, सबने खुशी मनाएं।
बड़ा मनोहर ,बड़ा लुभावना ,
कैसा त्यौहार है भाई।
भाई – बहन के रिश्तों की,
परंपरा कितनी निराली?

भारत ही एक धर्म -राष्ट्र हैं,
जहां मंगल होती है गाली।।
करते हैं त्यौहार यहां हर
रिश्तों की रखवाली,
प्रेम और मर्यादा की जिसने है डोर संभाली।
द्वापर युग में हुए कृष्ण ,
जिसने गोबर्धन उठा ली,
लोक- परंपरा, लोक संस्कृति,
ने अपनी जगह बना ली।।
हमको तो बस करनी है ,
इन रश्मों की रखवाली,
आर्याव्रत की यही धरोहर,
यहां पर होती मंगल गाली।
भाई- दूज, गोबर्धन पूजा,
या होली दिवाली,
रहें सभी मिल एक यहां
हर घर में हो खुशहाली।
इन्हे बचाने के खातिर ,
बस करनी है रखवाली।

“भाई दूज” का पर्व अनोखा
बहनें देती हैं भाई को गाली।

– डॉ सुनीता त्रिपाठी “जागृति”
नई दिल्ली