भारत को विखंडित करने के प्रयास में लगे शक्तियों को कड़ा संदेश

कर्नाटक के सिद्धारमैया सरकार ने कुछ दिन पहले बैंगलुरु में कांस्टिट्युशन एंड नैशनल युनिटी कान्वेंशन के विषय पर एक सम्मेलन का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में राज्य सरकार ने ब्रिटेन की विवादास्पद लेखिका नीताशा कौल को वक्ता के रुप में आमंत्रित किया गया था। लेकिन नीताशा कौल को बेंगलुरु हवाई अड्डे से वापस लंदन भेजे दिया गया था। इसके बाद से ही देश के लेफ्ट लिबरल गुट के लोगों ने रोना धोना शुरु कर दिया है। 2014 के बाद से बजाया जा रहा वही पुराना रिकार्ड फिर से बजाया जाने लगा है। भारत में बोलने की आजादी नहीं है। देश में असहिष्णुता का माहौल। विरोधियों को बोलने नहीं दया जा रहा है। इन्हीं डाइलगों को फिर से दोहराया जा रहा है।

लेकिन जिस महिला को हवाई अड्डे से ही वापस भेज दिया गया वह महिला कौन हैं? भारत के प्रति उनका दृष्टिकोण क्या है? सरकार ने उन्हें वापस क्यों भेज दिया? इस बारे में जानने के लिए उनके विचार, उनके लिखे हुए लेखों आदि को देखना होगा। तभी उनके बारे में एक साफ तस्वीर सामने आयेगी। नीताशा ब्रिटेन के नागरिक हैं तथा ओआईसी कार्डधारक हैं। लेकिन भारत के संबंध में उनके जो विचार हैं वह पूरी तरह से भिन्न हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है उनका विचार भारत से अधिक पाकिस्तान व पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से मिलता है। जो शक्तियां भारत को विखंडन करने के लिए सपना देखती हैं तथा इस कार्य के लिए दिन रात कार्य करती हैं और जिन्हें हम सरल भाषा में ‘टुकडे टुकडे गैंग’ कहते हैं, उनकी भाषा नीताशा बोलती रही है।

उदाहरण के लिए प्रत्येक भारतीय के लिए ’काश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।’ लेकिन नीताशा के लिए ’कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है’ और ’भारत ने कश्मीर पर कब्जा किया हुआ है’। इसलिए वह अपने लेखों में कश्मीर के लिए ’भारत प्रशासित कश्मीर’ शब्द का प्रयोग करती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए पाकिस्तान और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत व काश्मीर के संदर्भ में जो भाषा व शब्दावली का प्रयोग करते हैं वही समान भाषा व शब्दावली नीताशा प्रयोग करती है।

उनके द्वारा लिखे गये कुछ और लेख व बयानों पर दृष्टि डालते हैं। उन्होंने अपने लेखों में 90 दशक में कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के प्रति हुए भीषण अत्याचार, हत्या व सामुहिक विस्थापन को स्वीकार नहीं करती हैं। उनका मानना है कि कश्मीरी पंडितों के प्रति किसी प्रकार की इस तरह की घटना हुई ही नहीं है बल्कि यह भारत का दुष्प्रचार है। हिन्दुत्व के आंदोलन के लिए कश्मीरी पंडितों का उपयोग किया जा रहा है।

90 के दशक में काश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित इसलामी आतंकवाद द्वारा जिस तरह से अमानवीय व बर्बर कृत्य कश्मीरी पंडितों पर किये गये उसके पीडित आज भी हैं। सारा विषय डाक्युमेंटेड है। इसके बावजूद नीताशा इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।

केवल इतना ही नही वह अपने लेखों व भाषणों के जरिए काश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को सही सिद्ध करती रही हैं। भारतीय संसद द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद नीताशा ने हाउस आफ रिप्रेजेंटेटिव कमेटी के समक्ष में लिखित में कहा था कि भारतीय संसद का यह निर्णय अलोकतांत्रिक है। अतः यह सही नहीं है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान व उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई की भाषा ही वह बोलती आ रही हैं। पाकिस्तान अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए नीताशा व उनके जैसे लेखकों के लेख व भाषणों को प्रचार प्रसार करता रहता है। केवल इतना ही नहीं उनके कई बयान व लेख चीन के समर्थन में व भारत को कठघरे में खडा करने वाले भी हैं।

अब एक महत्वपूर्ण सवाल है कि किसी कानफ्रेन्स के लिए कर्नाटक के सिद्धरमैया सरकार को एक भारत से घृणा करने वाला पाकिस्तान व चीन समर्थक के अलावा कोई और वक्ता क्यों नहीं मिला? उन्हें कांग्रेस के कर्नाटक सरकार ने अतिथि के रुप में क्यों बुलाया? इसका उत्तर को कांग्रेस को व कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को देना ही होगा।

सुरक्षा एजेंसियों ने नीतिशा को हवाई अड्डे से ही लौटा दिया। इस बात ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब बदल चुका है।  पहले का भारत भिन्न था जो भारत में आकर भारत के खिलाफ जहर उगलने वालों को अनुमति देता था। अब स्थिति में परिवर्तन आ चुका है। अब भारत के विखंडनकारी शक्तियों को भारत उनकी भाषा में जवाब देना प्रारंभ कर दिया है। नीतिशा को वापस लौटा देना उन विखंडनकारी शक्तियों को स्पष्ट व कडा संदेश है। केवल इतना ही नहीं नीताशा जैसे लोगों को ओईसी कार्ड को भी रद्द कराये जाने की आवश्यकता है। भारत सरकार निश्चित रुप से इस बारे में विचार कर रही होगी।

(लेखक विभिन्न विषयों पर लिखते रहते हैं।)