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छोटे से जीवन में बड़ा सा शांति-नोबेल , धन्य हो !

इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबिय अहमद अली ने 2019 नोबेल शांति पुरस्कार जीता। उन्हे यह पुरस्कार पड़ौसी देश इरीट्रिया के साथ सीमा संघर्ष को बिना किसी रक्तपात के हल करने के लिए उनकी निर्णायक पहल के लिए दिया गया।

बात उन दिनों की है जब इथियोपिया में एक युवक ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। मेरे कान खड़े हो गए। वे उस वोलेगा विश्वविद्यालय के इलाके से आते हैं , जिसमें मैंने दो वर्ष प्रोफेसरी की थी और वहाँ के वाइस चांसलर से दोस्ती सी हो गयी थी क्योंकि डॉ इब्बा मिजेना ( उम्र 30 वर्ष ) इफलु हैदराबाद के पी एच डी हैं। लड़का सा आदमी बन गया प्रधान मंत्री और वह भी नाम से ‘ अली’ और फिर भी मसीही । इस देश में चारो तरफ लड़के ही लड़के हैं । ईसाई बहुल देश में ओरोमिया क्षेत्र के होने के बावजूद उनको युवकों का ही नहीं सबका सहयोग मिला। मैंने तो उन्हे फेस बुक फ्रेंडशिप ही भेज दी थी और बस । प्रधान मंत्री के फ़ेक अकाउंट से नहीं, सचमुच का इंटरएक्शन रहा है । मैंने उन्हे बताया कि आप 15 अगस्त को पैदा हुए थे । यह वह दिन है जब भारत आजाद भी हुआ और विभाजित भी। 1976 में वे जरूर पैदा हुए पर इसमें क्या बड़ी बात है। मैं अरबा मींच में कई बार उनका पी एच डी के डिफेंस का विडियो देख दिखा चुका हूँ। यह स्टूडेंट सा दिखने वाला लड़का बड़ा काम कर गया। विनम्रता की प्रतिमूर्ति सा ।

अबिय अप्रैल 2018 में देश के प्रधानमंत्री बने । ओरोमिया क्षेत्र के लोग संख्या बल में आगे होने पर भी अपने प्रति अम्हारिक भाषियों की उपेक्षा को वर्षों से झेल रहे थे। अम्हारिक- भाषी उनकी भाषा को घृणा से गल्ला ( गँवारू) कहते रहे । ओरोमिया भाषी समाज को लगता रहा है कि देश की प्रधान और प्रबल भाषा अम्हारिक बनती जा रही है और उनकी भाषा ओरोमो या ओरोमिया को उसका स्थान नहीं मिल रहा । हिन्दी – तमिल सा विवाद रहा है। अबिय पहले ओरोमिया हैं जो प्रधान मंत्री बने। बचपन में अबिय ने भी अन्य युवकों की तरह संघर्ष का रास्ता पकड़ लिया था और सशस्त्र क्रांति करके अपने अधिकार लेने का निश्चय किया था। किन्तु उन्हे जन भावनाओं की पकड़ भी खूब थी इसलिए लोकतन्त्र को भी न त्यागा और मौका मिलते ही सत्ता पक्ष में शामिल होकर धीरे धीरे अपनी प्रतिभा के बल पर अध्यक्ष बन गए। और फिर प्रधानमंत्री भी बने ।

प्रधानमंत्री बनते ही उन्होने बहुत से राजनीतिक बंदियों को छोड़ दिया। पत्रकारों को भी रिहा किया । अपने कट्टर शत्रुओं को गले लगाया। बुरी तरह बदनाम हो गई मेकलवी जेल को हमेशा के लिए ताला लगा दिया। विरोधियों और साथियों ने रोष प्रकट किया किन्तु अबिय अहमद ने शत्रुओं को क्षमा करके उन्हे अपना और देश का फिर से मित्र बनाया । कई तथाकथित आतंकवादियों और भ्रष्टाचार के आरोप में बहुत दिनों से बंदी लोगों को भी छोड़ दिया। देश में लागू आपात काल को विदाई दी। एक ऐसा वातावरण बनाया कि लोग उन पर भरोसा करने लगे। आम आदमी को लगा कि अब सरकारी आतंक और मनमानी के दिन लद गए हैं।

जिस देश में स्त्रियाँ ही स्त्रियाँ हैं , वहाँ उनका शासन प्रशासन में कोई खास दखल न था । प्रधानमंत्री के रूप में उन्होने महिला सशक्तीकरण के लिए भी अभूतपूर्व कदम उठाए । आज देश के राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर महिलाएं हैं। पहले ऐसा कभी न हुआ था। इथियोपिया के मंत्रिमंडल में 50 प्रतिशत महिलाएं हैं और वे सब युवा हैं ।

भारत के अरविंद केजरीवाल ने कहा बहुत कुछ किन्तु किया बहुत कम, किन्तु अफ्रीका के अबिय अहमद ने कहा कुछ नहीं, किया बहुत कुछ। देश के अनेक भागों में जनता से सीधे संवाद किया। लोगों से निर्भय होकर अपनी बात रखने के लिए कहा। देश में इतने पेड़ लगवाए कि विश्व रेकॉर्ड बना दिया। चोपट हो रही अर्थ व्यवस्था को चाक-चौबन्द किया और अफ्रीका में सबसे आगे निकल गए। मोदी जी की तरह वे न किसी को खाने देते हैं और न खुद खाते हैं। भारतीय प्रोफेसरों की टेक्स फ्री सैलरी पर 35 प्रतिशत कर लगा दिया । देश की विदेशी मुद्रा के भंडार को खाली न होने दिया। यहाँ के विश्वविद्यालयों में भारतीय प्रोफेसर भरे पड़े हैं । 2000 से पहले यहाँ स्कूलों में भी भारतीय अध्यापक होते थे और शायद ही कोई होगा जिसने कभी न कभी किसी न किसी भारतीय टीचर से पढ़ा न हो। अबिय अहमद भी भारतीय प्रतिभा के योगदान को रेखांकित करते हैं।

मानव अधिकारों के प्रति संवेदनहीनता का आरोप उनकी सरकार पर भी लगा और अब भी लगता है । इंटरनेट बंद करने की चालाकी उनकी सरकार भी करती है। पर बिजली पानी दिल्ली से भी सस्ता है। मेरा बिजली पानी का बिल कभी कभी दो चार बिर (रुपए) का ही आता है। महंगाई बढ़ी है फिर भी लोग संतोषी हैं। इथियोपिया में बदलाव की हवा जिसे ‘अबि इफैक्ट’ कहा जा रहा है , वह सब देख रहे हैं। 41 वर्ष के बाद इथियोपिआ का हवाई जहाज सोमालिया जाता है और बीस साल बाद इथियोपिआ और इरिट्रिया का भरत मिलाप होता है। इरीट्रिया करीब तीन दशक के लंबे संघर्ष के बाद 1993 में इथियोपिया से अलग हुआ था। जल्द ही दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर झगड़े होने लगे और सीमाई शहरों पर बम और गोलाबारी आम बात हो गई। दो दशक से भी लंबे समय तक चले इस संघर्ष में दोनों देशों के कम से कम एक लाख लोगों को जान गंवानी पड़ी थी । इस संघर्ष के खत्म होने के आसार नज़र नहीं आ रहे थे कि तभी सितंबर 2018 में अबि अहमद अली की तरफ से शांति की असाधारण पहल हुई। एरिट्रिया के राष्ट्रपति इसाइआस अफवेरकी के साथ अहमद अली ने शांति समझौते के लिए तेजी से काम किया और दोनों देशों के बीच विवाद को सदा के लिए समाप्त कर दिया किया। ठीक ही कहा जा रहा है कि शांति एक हाथ से बजने वाली ताली नहीं है, दूसरे देश के राष्ट्रपति ने भी बढ़ा हुआ हाथ थामा। क्या ही अच्छा होता यदि यह पुरस्कार दोनों को मिलता! कभी छापामार लड़ाके रहे अबी अहमद अली की इस इलाके के अलग-अलग समुदायों के बीच अच्छी पकड़ है।उन्होने पहले अपने देश के कुख्यात आतंकवादी समूह ओगाड़ें नेशनल लिबरेशन फ्रंट ( ओ एन एल एफ) के साथ समझोता किया और पड़ोसी देश सोमालिया से 34 वर्ष पुराना झगड़ा निपटाया। ओ एन एल एफ को साथ लेकर वे इरिट्रिया की ओर बढ़े क्योंकि वही इस संगठन को धन बल देता रहा था । बात साफ हो गई। उनकी कोशिशों से दोनों देशों के बीच शांति समझौता हुआ और एक लंबे समय से चले आ रहे टकराव पर अंकुश लग गया । अब तो इथोपिया अफ्रीका में शांति दूत का काम कर रहा है, यमन आदि देश बड़ी आशा से देख रहें हैं । कीनिया और सूडान में भी शांति बहाल करने में अबि अहमद की मुस्कान काम आई। जिन देशों में लोकतन्त्र का अर्थ कुछ अलग ही होता है , जहां मिलिट्री और शासन दमन के बल पर चलता है, वहाँ भी अमन की आशा रहती है। कुछ लोग हैं जो चड्ढी पहन के फूल खिलाते हैं ।

2018 सितम्बर माह की ग्यारह तारीख को मैं हैदराबाद से दो महीने की लंबी छुट्टी बिताकर लौटा तो वही ड्राईवर हवाई अड्डे पर अचानक मिल गया जो होटल टाइटु के बाहर खड़ा रहता है। नाम है -तड़ेचे। मैंने कहा – डेढ़ सौ से एक पैसा ज्यादा न दूंगा । देता ही नहीं हूँ । वो बोला – आज कुछ भी मत देना ,सर । आज मेरी अपने माँ बाप ,भाई बहिन से मिलने की 20 साल की पुकार को उम्मीद मिली है। इरिट्रिया और इथियोपिया में मेल हो गया। सब पी एम अबिय अहमद अली का जादू है। दूतावास खुल गया है । हवाई यात्रा मुमकिन है।

भारत और पाकिस्तान जो काम 70 साल में न कर सके उसे इस 42 साल के युवक ने 70 दिन में कर दिखाया और आज शांति का नोबल पुरस्कार ले भागा। आज वे सम्पूर्ण अफ्रीका के लिए युवा हृदय सम्राट बन गए हैं। लोग उनके गीत गा रहें हैं , उनकी प्रशंसा में कविता पाठ हो रहा है। उनकी टी शर्ट पहनकर अदिस अबाबा में युवक नाच रहें हैं।

मेरे हीरो, अगर आप नहीं जानते हैं, तो यह आप हैं ।
आप इसके लायक हैं, सिंहासन पर आने का कोई कारण नहीं है ।
यह कहानी है हमारे बारे में
जुग जुग जियो ।

(मंगुड़ाई मरचो, कवि)

कुछ लोग मानते हैं कि अबि का जादू और उनकी पकड़ अब कम हो रही है। सच भी है। किन्तु इस पुरस्कार की घोषणा ने देश और समाज में फिर से नवीन ऊर्जा का संचार कर दिया है। वे दूसरे अफ्रीकी नेताओं के लिए रोल मॉडल बन सकते हैं। अफ्रीका को भी दुनिया अब पहचान रही है । उनकी गरीबी और लाचारी को ही रेखांकित करने से अब लोग परहेज करेंगे। जन्मजात शत्रु पड़ौसी देश किन्तु अब मित्र बना इरिट्रिया भी हर्ष के आँसू बहा रहा है। टीस भी है क्योंकि उनके देश को इस पुरस्कार में सहभागिता नहीं मिली । अब दुख तो ग्रेटा थनबर्ग को भी हो रहा होगा ? मरीना हाइड ने ‘ द गार्डियन’ में क्या खूब लिखा है – ग्रेटा को किसी स्कूल में होना चाहिए और अबिय को किसी यूनिवरसिटी में । ये दोनों इस बड़ी दुनिया के बड़े लोगों के बीच बच्चे हैं।

वह युवक जो कुछ दिन पहले अपनी लड़खड़ाती अँग्रेजी में डरा सहमा सा पी एच डी उपाधि के लिए सख्त डिफ़ेंस का सामना कर रहा था, आज अफ्रीका के घाघ नेताओं को राजनीति सिखा रहा है !

इथोपिया है ही अनोखा देश। इस देश के लोगों को देखकर आप सोचेंगे कि इनकी पास की रिश्तेदारी तमिल नाडु से है। टमाटर की चटनी से दिन में चार बार डोसा खाते हैं और उसे टेफ नामक अनाज से बनाते हैं । यह थाल के आकार का डोसा इंजिरा कहलाता है। वे लोग समय और वर्ष अपना ही रखते हैं । इनके साल में 13 महीने होते हैं । हर महीने में 30 दिन और तेहरवें महीने में पाँच दिन। किन्तु सैलरी 12 महीने की मिलती है। घड़ी में समय भी 12 घंटे का होता है। सुबह के छह बजते हैं तो इनका एक बजता है और शाम के छह होने पर बारह । इस प्रकार फिर से बारह घंटे की घड़ी चलेगी। सब जगह यही चलता है, एयरपोर्ट को छोड़कर। साल भी यहाँ आजकल 2012 चल रहा है । और आज जब 11 अक्तूबर 2019 को नोबल पुरस्कार की घोषणा हुई , यहाँ की दुनिया में तारीख है तीस और महीना एक। 30-1-12 आज का दिन है। सलाम नु! अक्कम बुलतन! नमस्ते!

(लेखक अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया (पूर्व अफ्रीका) अंग्रेज़ी और भाषाविज्ञान के प्रोफेसर हैं)

प्रेषक
नीरजा
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