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श्री राम नाईक के संस्मरणों की पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति को पुरस्कार

महाराष्ट्र राज्य साहित्य एवं संस्कृति विभाग द्वारा मराठी भाषा गौरव दिन के अवसर पर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक को उनके मराठी संस्मरण संग्रह ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ को लक्ष्मीबाई तिलक पुरस्कार तथा रुपये एक लाख रुपये की राशि प्रदान की गई। मुंबई में आयोजित समारोह में महाराष्ट्र सरकार के मंत्री विनोद तावड़े ने यह अवार्ड देकर राज्यपाल को सम्मानित किया।

महाराष्ट्र सरकार के मराठी भाषा विभाग द्वारा हर साल मराठी साहित्य में लेखन की विभिन्न कलाओं जैसे लघुकथा, ललित गद्य, दलित साहित्य, शिक्षण शास्त्र, बाल वांगमय, नाटक, उपन्यास, आत्मचरित्र के लिए पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं। मराठी की पहली आत्मचरित्र लेखिका लक्ष्मीबाई तिलक की स्मृति में हर वर्ष सर्वोत्तम आत्म चरित्र को रुपये एक लाख की राशि का पुरस्कार दिया जाता है। इस वर्ष राज्यपाल नाईक के संस्मरण संग्रह ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ को सर्वोत्तम आत्म चरित्र के रूप में चुना गया था।

नाईक ने संग्रह ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मराठी दैनिक समाचार पत्र सकाल ने शरद पवार, सुशील कुमार शिंदे, मनोहर जोशी के साथ उनसे अनुरोध किया कि अपने संस्मरण लिखें। इन संस्मरणों पर एक वर्ष तक सीरीज चली। लोगों के आग्रह पर समाचार पत्र में प्रकाशित लेखों को पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के रूप में मराठी भाषा में प्रकाशित किया गया।

‘चरैवेति! चरैवेति!!’ मार्गदर्शिका है

महाराष्ट्र के मंत्री विनोद तावड़े ने कहा कि राजनीति व सामाजिक क्षेत्र में काम करने वालों के लिए संस्मरण संग्रह ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ एक मार्गदर्शिका है। कैसे राजनीति में समर्पित रहते हुए बगैर भेदभाव के काम किया जाता है यह राम भाऊ से सीखने की जरूरत है। यह राज्यपाल राम नाईक का बड़प्पन है कि वे सम्मान समारोह में मुंबई आए हैं। महाराष्ट्र सरकार का विचार था कि यह सम्मान राजभवन लखनऊ में उन्हें प्रदान किया जाए।

पुस्तक का एक रोचक अंश

बचपन में आटपाडी गाँव में तीन मकान बदले, कॉलेज के दिनों में पुणे में गदीमा की पंचवटी में डेरा डालने से पहले छह स्थान बदले, मुंबई में सात और दिल्ली में तीन अलग-अलग जगह पर मैं रह चुका हूँ। आजकल लखनऊ के राजभवन में रह रहा हूँ। हर आशियाने ने मुझे कुछ नया सिखाया, नए लोगों से जोड़ा, मुझे ढाला। अस्सी साल के जीवन में मुझे बीस बार अपना आशियाना बदलना पड़ा, पर अस्थिरता के इस दौर में मेरे कदम कभी डगमगाए नहीं…मैं आगे बढ़ता रहा। (पृष्ठ 29) कई बार जिंदगी में अनायास ही ऐसा मोड़ आ जाता है कि वह जिंदगी की दिशा ही बदल देता है। मेरे जीवन में ऐसे बहुत से मोड़ आए। हर मोड़ पर एक नई चुनौती मुँहबाए खड़ी थी। उनका सामना करते-करते मैं आगे बढ़ता रहा। (पृष्ठ 31) कैंसर को मात करने के बाद मेरी दीर्घायु की कामना करते हुए अटलजी ने कहा, ”सोचो, आप मृत्यु के द्वार से क्यों वापस आए हो? आपने वैभवशाली, संपन्न भारत का सपना देखा है। वह महान् कार्य करने के लिए ही मानो आपने पुनर्जन्म लिया है।” मैंने भी उनसे वादा किया कि ‘पुनश्च हरि ओम’ कर रहा हूँ। विधाता ने जो आयु मुझे बोनस के रूप में दी है, वह मैं जनसेवा के लिए व्यतीत करूँगा। (पृष्ठ 179) क्या हार में, क्या जीत में किंचित् नहीं भयभीत मैं, कर्तव्य-पथ पर जो भी मिला यह भी सही वो भी सही। आदरणीय अटलजी की यह कविता मेरी प्रिय है। मैंने कभी सोचा नहीं था कि यह कविता मुझे वास्तव में जीवन में जीनी पड़ेगी। पराजय की कल्पना मैंने कभी नहीं की थी। एक बार नहीं, दो बार मुझे पराजय का सामना करना पड़ा। चुनाव को मैंने हमेशा जनसेवा के सशक्त माध्यम के रूप में ही देखा। अतः अनपेक्षित हार को मैं ‘क्या हार में, क्या जीत में’ की भावना से पचा ले गया।

यह पुस्तक https://www.amazon.in/ पर बिक्री के लिए उपलब्ध है। इसके सजिल्द संस्करण की कीमत है और पैपरबैक संस्करण की कीमत है 319 रु.