1

ब्राह्मण अपने पूजा पाठ को क्यों छोड़ रहा है …

छत्रपाल सिंह सोलंकी

एक ब्राह्मण ने, शास्त्री की, आचार्य किया, डॉक्टरेट किया.. .पूरा जीवन दांव पर लगाया, उदाहरण के लिए, जैसे वकील, जज या डॉक्टर, बैंक मैनेजर या और सभी लोग लगाते हैं। खूब मेहनत करते हैं, पढ़ाई करते हैं लाखों खर्च करते हैं। पढ़ाई और डिग्री के लिए ।

ऐसे ही पण्डित, शास्त्री और आचार्य भी करते हैं। यहाँ तक, कुछ भी अंतर नही। लेकिन आगे भेदभाव देखिए.. वह सभी पैसा कमाते हैं, बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं, बड़े बड़े मकान में रहते हैं। ऐशो आराम का, विलास का जीवन जीते हैं। सब सुख सुविधाए उनके पास है। फिर पण्डित, ज्योतिषी अगर आपसे कुछ पैसा लेते हैं तो आपको मिर्ची क्यों लगती हैं….?

क्यों आपको लगता है की पंडित जी ठग रहे हैँ…?
मेरे समाज के लोगों, क्या एक पण्डित को हक़ नही, समाज के बाकी वर्ग की तरह जीने का, शादी हो, जन्म हो, मरण हो, सब जगह मनचाही दक्षिणा, देते हो…? लेकिन, कभी सोचा है उस पण्डित के बारे में, उसने पण्डित बनकर क्या क्या खोया हैं…? वह कभी तुम लोगो की तरह डिस्को नही जाता, कभी शराब, या मांसाहार नही करता, लड़कियों के साथ गुलछरे नही उडाता

सबको माता जी, बहन जी ही मानता है, सबकी इज्जत करता है सदाचार का पालन करता है सत्व उसके जीवन का आधार है। वह कोई लूटपाट या भ्रष्टाचार नही करता, किसी से कोई छीना झपटी नही करता, वहः सदा तुम्हे तुम्हारी मुश्किलों का समस्याओं का समाधान बताता है, सदा तुम्हारे दुःख दर्द और तकलीफें सुनता है, कितना दर्द सहता है, सुन सुन कर। रात को सो नही पाता , कोई आराम नही हैं उसकी जिंदगी में ।

सुबह 4 बजे उठता है, भगवान की पूजा पाठ, और श्लोक आरती आपको सुनाता है ।फिर दिन में चौकीदार की तरह, मंदिरों की रखवाली करता है। आपको बच्चो को अच्छे संस्कार देता है। उनको माता पिता की सेवा करना सिखाता है। तुम्हें सामान्य मनुष्य से इंसान और भगवान बनाता है। साधारण से साधारण व्यक्ति की तनख्वाह हजार से अधिक है।

जबकि आज का पण्डित और आचार्य कुछ भी नही कमाता और वह सारा जीवन आपको देता है, समाज पर न्योछावर करता है। और अगर वह तुमसे अपनी फ़ीस लेता है। तो बताओ, कौनसा गुनाह करता है? क्या उसको सदा ही आपकी दया पर पलना चाहिए?

क्या आप चाहते हैं उसके बच्चे सड़क पर भीख मांगे? बेरोजगार और अनपढ़ रहें! वह क्यों आप् पर आश्रित रहे?
कोई एक कारण तो बताइए?

साभार- https://twitter.com/rastrvadi_4