1

हमारे उत्सव अब सेलिब्रेशन हो गए, इसलिए भाव, रिश्ते और आनंद का रस छूट गयाः श्री वीरेंद्र याज्ञिक

उत्सव का मतलब है हमारे उत्स (ह्रदय) के आनंद की अभिव्यक्ति। भारतीय परंपरा में घरों में होने वाले धार्मिक व पारिवारिक कार्यक्रम उत्सव का प्रतीक होते थे, लेकिन अब हमने पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण कर उत्सव को सेलिब्रेशन बना दिया है। यही वजह है कि जो उत्सव हमारे समाज, परिवार और रिश्तों को जोड़ने के लिए शुरु हुए थे वे व्यावसायिक हो गए हैं और इसका दुष्परिणाम ये हो रहा है कि हमारे रिश्ते तेजी से टूट रहे हैं।

मुंबई के भागवत परिवार द्वारा आयोजित नंदोत्सव समारोह में गीता के मर्मज्ञ श्री वीरेंद्र याज्ञिक ने उत्सव की भारतीय परंपरा, इसके निहितार्थ और अध्यात्मिक महत्व से लेकर इसके सामाजिक पहलुओं का सटीक विवेचन प्रस्तुत किया। नंदोत्सव का आयोजन मुंबई के कांदिवली पूर्व के ठाकुर विलेज के धर्मनिष्ठ परिवार श्री एसपी गोयल ने किया था।
श्री याज्ञिक ने कहा कि नंद वो है जो आनंद प्रदान करे। इस तरह नंद कृष्ण के आत्मज यानी नंदात्मज हैं। यशोदा वो जो यश प्रदान करे। उन्होंने कहा कि हमारी भारतीय परंपरा में नामकरण का भी अपना विशिष्ट महत्व होता था। सोलह संस्करों में नामकरण संस्कार भी एक प्रमुख संस्कार है। उन्होंने कहा कि जब हम उत्सव मनाते हैं तो पूरा परिवार, समाज परिचित सभी भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं, उत्सव में हर व्यक्ति की भागीदारी भी होती है और इसे सफल बनाने की जिम्मेदारी भी। जबकि सेलिब्रेशन पूरी तरह मैकेनिकल होता है। इसमें सारे आयोजन की जिम्मेदारी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के लोगों के पास होती है। आपके यहाँ कौन मेहमान आएगा, क्या खाएगा, कैसे रहेगा वो सब इवेंट मैनेजमेंट कंपनी तय करती है, यानी आपके यहाँ जो मेहमान आया है और आकर चला गया है इसके बारे में आपको कुछ खबर ही नहीं होती। आप भी उससे यंत्रवत ही मिलते हैं और वह भी यंत्रवत आपके यहाँ आकर चला जाता है। सेलिब्रेशन एक तरह से लेन-देन की परंपरा बन गया है, जबकि उत्सव में रिश्तों की मिठास और भावनाओँ का आदान-प्रदान होता है। उन्होंने कहा कि इस तरह से इवेंट आयोजित करने से हमारे उत्सव आडंबर में बदल गए हैं। आत्मीय रिश्तों की महक इवेंट की भट्टी में राख बन जाती है।

श्री याज्ञिक ने कहा कि हमें अब उत्सव का मतलब और इनको मनाना सीखना होगा। विवाह भी हमारे यहाँ एक उत्सव ही है और इसको लेकर एक समाजशास्त्रीय परंपरा थी। लेकिन अब हमने अपने इस घरेलू कार्यक्रम को भी ठेके पर देना शुरु कर दिया है। इसमें इवेंट मैनेजमेंट कंपनी का पूरा जोर भौतिक सुविधा पर रहता है, आप कितने अच्छे कमरे में ठहरेंगे, आपको दिन भर क्या खाना-पीना मिलेगा, आपको कितनी बजे क्या करना है….आदि इत्यादि, इन सब के बीच वर और वधू पक्ष के रिश्तेदार आपस में रिश्तेदारी, संबंधों, अपने जीवन मूल्यों और परंपराओं के बारे में बात भी नहीं कर पाते हैं, न एक दूसरे से मिलजुल पाते हैं। यही वजह है कि हमारे वैवाहिक रिश्ते तेजी से टूट रहे हैं।

भारतीय कैलेंडर सिस्टम की व्याख्या करते हुए श्री याज्ञिक ने कहा कि श्रावण और भाद्रपद का अपना महत्व है। श्रावण यानी सुनने का महत्व, जिसमें हम भजन-कीर्तन आदि का श्रवण करते हैं। और भाद्र का मतलब है हम भद्र बनें, संस्कारिक बनें। हमारे अंदर भद्रता पैदा हो।

श्री वीरेंद्र याज्ञिक को सुनना यानि…तृप्त होकर अतृप्त रह जाना

हमारा कर्म ही यज्ञ हैः श्री वीरेंद्र याज्ञिक

कृष्ण जन्माष्टमी की व्याख्या करते हुए श्री वीरेंद्र याज्ञिक ने कहा कि जो व्यक्ति निष्कपट हो उसके यहाँ कृष्ण जन्म लेते हैं। देवकी का मतलब है जब आपकी बुध्दि श्रध्दामय हो तो आपके यहाँ कृष्ण प्रकट होते हैं। उन्होंने कहा कि जब बुध्दि ज्यादा हो जाती है तो चित्त की शुध्दता खत्म हो जाती है। श्रध्दा खत्म हो जाती है और मन में अहंकार आ जाता है। कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र बुधवार रात्रि को ठीक 12 बजे हुआ, इसका गहरा निहितार्थ है। सौर मंडल में दो तत्व सूर्य और चंद्र हैं जो हमें प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। राम का जन्म सूर्य वंश में हुआ और कृष्ण का जन्म चंद्र वंश में हुआ। सूर्य उष्मा और उर्जा देता है जबकि चंद्र शीतलता प्रदान करता है। राम और कृष्ण का जीवन संघर्ष का जीवन है। हमे उनके इस संघर्ष के मर्म को समझेंगे तो ही इनके आदर्शों को अपने जीवन में सही ढंग से उतार सकेंगे।

उन्होंने कहा कि हमारे भारतीय ग्रंथों में जीवन को संदेश को गहराई से समझेंगे तो इसके मूल को समझ सकेंगे। राम वन में इसिए गए कि उन्होंने पूरे वनवासी समाज का रुपांतरण किया।

कृष्ण ने अर्जुन से संवाद के माध्यम से हमारे जीवन के उन तमाम प्रश्नों का उत्तर दिया है जिनसे हम जीवन भर जूझते रहते हैं। कृष्ण-अर्जुन संवाद हमारे जीवन की तमाम उलझनों की अभिव्यक्ति है। लेकिन हम अपनी समस्याओँ और उलझनों से इसलिए नहीं निकल पाते हैं कि हम अर्जुन की तरह कृष्ण के आगे समर्पण नहीं करते। जिस दिन हम समर्पण भाव से कृष्ण के संदेश को समझ लेंगे, उस दिन हमारे जीवन की तमाम उलझनें सुलझ जाएगी।

इस अवसर पर श्री वनमाली चतुर्वेदी ने बृज भाषा की सुंदर कविता के माध्यम से कृष्ण महिमा प्रस्तुत की।
अदि अनंत अलौकिक व्यापक ब्रह्म स्वरूप श्री कृष्ण
त्रिभुवन सुंदर नंदलाला गोपालक गाय चरावत श्री कृष्ण
नंदलाला तुम होते लड़की तो गले कट जाते करोड़ों के

इस अवसर पर नासिक से आई युवा गायिका ईशा ने कृष्ण भक्ति के सुंदर गीत प्रस्तुत कर पूरे वातावरण को मस्ती और आनंद से सराबोर कर दिया।