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चंदन यात्रा भगवान जगन्नाथ की ः मानवीय लीला का एक जीवंत प्रमाण

प्रतिवर्ष अक्षयतृतीया के दिन से पुरी के पवित्र चंदन तालाब में अनुष्ठित होनेवाली चंदन यात्रा भगवान जगन्नाथ की मानवीय लीला का एक जीवंत प्रमाण है।यह यात्रा अलग-अलग दो चरणों में अनुष्ठित होती है। पहला चरण 21 दिनों का होता है जिसे बाहरी चंदनयात्रा कहते हैं और दूसरा चरण भी 21दिनों का ही होता है जिसे श्रीमंदिर प्रांगण के अन्दर की भीतरी चंदनयात्रा कहते हैं।भीतरी चंदनयात्रा प्रतिवर्ष देवस्नान यात्रा के दिन मंदिर के देवस्नान मण्डप पर संपन्न होती है।जगन्नाथ संस्कृति में यात्रा का संबंध भगवान जगन्नाथ की यात्राओं तक सीमित नहीं होती है अपितु उनसे जुडे हुए अनेकानेक उत्सव से भी होता है।इसीलिए ओडिशा में भगवान जगन्नाथ को केन्द्र में रखकर वर्ष के 12 महीनों में उनकी कुल 13 यात्राएं अनुष्ठित होतीं हैं।कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म 16 कलाओं से सुसज्जित भगवान जगन्नाथ जब एक साधारण मानव की तरह वैशाख मास और जेठ मास की भीषण गर्मी से परेशान हो जाते हैं तो वे जलक्रीडा करना चाहते हैं,जल की शीतलता का आनंद लेना चाहते हैं। वे अपने शरीर पर चंदन का लेप लगाकर चंदन तालाब के चंदनघर में विश्राम करना चाहते हैं। नौका विहार करना चाहते हैं।उनकी यही 21 दिवसीय बाहरी चंदन यात्रा उनकी इसी मानवीय लीलाओं का एक जीवंत प्रमाण है जिसके दर्शन मात्र के लिए देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु भक्त प्रतिवर्ष पुरी आते हैं।

चंदन तालाब
श्रीमंदिर के उत्तर दिशा में लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है चंदन तालाब जिसे चंदन तालाब,चंदन पुष्करिणी,चंदन पोखरी,नरेन्द्र तालाब तथा नरेन्द्र पुष्करिणी आदि भी कहा जाता हैइसका उपयोग विशेषकर भगवान जगन्नाथ की चंदनयात्रा के लिए ही होता है।यह तालाब कुल लगभग तीन एकड में फैला हुआ है जो पूरी तरह से स्वच्छ तथा शीतल जलाशय है।यह लगभग 253.30 मीटर चौडा है तथा लगभग 266 मीटर लंबा है।तालाब के दक्षिण दिशा में एक पुल है जिसके द्वारा चंदन तालाब के चंदन घर को जोडा गया है।मदनमोहन आदि की चंदनयात्रा तथा नौका विहार के लिए पहले से ही गजदंत आकार की नौकाएं तैयार होती हैं जो हंस की तरह दिखतीं हैं।इन्हें यात्रा से पूर्व ही हरप्रकार से सुसज्जितकर रखा जाता है।

चंदन तालाब को बिजली की रोशनी से ऐसा आलोकित किया जाता है कि जैसे तालाब दिन के उजाले में परिणित हो गई हो।चंदन तालाब में कुल 21 दिनों तक जगन्नाथ जी विजय प्रतिमा मदनमोहन तथा अन्य देव-देवियों को (अक्षयतृतीया से आरंभ होकर)नौका विहार कराया जाता है।चंदन तालाब के बीचोबीच अवस्थित चंदनघर में उनके अत्यधिक स्नान कराने के कारण उनके आराम के लिए रखा जाता है। वहां पर समस्त देवगण साधारण मानव की तरह जलक्रीडा के उपरांत विश्राम करते हैं।उनके बदन पर शीतल चंदन का लेप लगाया जाता है।उन्हें मलमलकर नहलाया जाता है।वे चंदनघर में कुछ देर विश्रामकर पुनः श्रीमंदिर लौट आते हैं।यह सिलसिला पूरे 21 दिनों तक चलता है।

श्रीमंदिर से स्वतंत्र पालकी में निकलते हैं चंदनयात्रा के लिए देवगण
21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा श्रीमंदिर से अपराह्न जातभोग ग्रहणकर श्री जगन्नाथ भगनाव की विजय प्रतिमा मदनमोहन,रामकृष्ण,लक्ष्मी,सरस्वती आदि को स्वतंत्र पालकी में आरुढकराकार (जिसं विमान कहा जाता है) श्रीमंदिर के सिंहद्वार के सामने लाया जाता है। वहां पर 22 सीढियों के सामने प्रतीतक्षारत होते हैं पंच पाण्डव, लोकनाथ, मार्कण्डेय, नीलकण्ठ, कपालमोचन, जंबेश्वर आदि। उन्हें लेकर एक शोभायात्रा निकलती है जिसके आगे-आगे ओडिशा का बनाटी रणकौशल कौशल प्रदर्शन,तलवार चालन प्रदर्शन,पाइक नृत्य प्रदर्शन के साथ-साथ घण्टघडियाल वाद्ययंत्र प्रदर्शन,शंखवादन प्रदर्शन,भेरी वादन प्रदर्शन,तुरही वादन प्रदर्शन के साथ-साथ हिरबोल तथा जय जगन्नाथ के जयकारे के बीच चंदन तालाब लाया जाता है और देवगणों के नौकाविहार आदि के उपरांत पुनः रात्रि बेला में श्रीमंदिर लाया जाता है।कुल 21 दिनों तक चलनेवाली चंदनयात्रा का आनंद 23 अप्रैल,2023 से समस्त जगन्नाथ भक्त ले रहे हैं। यह बाहरी चंदन यात्रा चंदन तालाब में 14मई,2023 को संपन्न होगी।