चौपाल के 26 साल बेमिसाल, सुर-संगीत और यादों की सुनहरी चौपाल

मुंबई में मानसून के आने का बेसब्री से इंतजार हो रहा है। जेठ का सूरज अपनी आन निभाता सबकी टेढ़ी नज़रें सहकर भी पूरी शिद्दत के साथ आग बरसा रहा है। उसे अपने ताप से धान पकाना है, फलों में मिठास भरनी है, कीट- कीडों को नष्ट करना है जो बीमारियों के वाहक होते हैं, तमाम वे सारे काम करने हैं जो प्रकृति ने उसे सौंपे हैं। ऐसी ही कड़कती गर्मी की सोलह जून की दुपहरिया को भवन्स कालेज का सभागार खचा-खच् भरा था। चौपाल ने छब्बीसवां पार जो कर लिया था।

जाहिर है कोई भी चौपाली छुट्टी के उस दिन एयर कंडीशन कमरों में बंद हो ही नहीं सकते थे। दूर-दूर से आए थे, वो जानते थे बखूबी कि बेशक ताप का पारा कितना भी ऊपर चला जाए अंततः आखरों की रस-भीनी बौछार से आतप को सम पर आना ही है और वही हुआ। अदब के मोती अपनी पूरी धज के साथ कलाओं के भिन्न-भिन्न रूप धरकर बरसे और खूब बरसे। काव्य, व्यंग्य, करुण रस, संगीत, नाट्य कर्म और अंत में गायन अर्थात कला के सारे रस, सारे रंग मौजूद थे।

संचालन की डोर अतुल तिवारी के सधे हाथों में थी। पिछले दिनों समूचा देश चुनाव के माहौल में रचा बसा था उसका असर चौपाल में भी भरपूर दिखा। संचालन से लेकर रचनाओं के सृजन में भी उसे आना ही था।

कार्यक्रम का आगाज़ कविताओं से हुआ। पंजाब के क्रांतिकारी कवि ‘पाश’ की रग- रेशा झनझना देने वाली कविताएं जब राजेंद्र गुप्ता पढ़ें तो अंदाज लगाया जा सकता है कि वे सारे सुलगते कालजयी शब्द हर उस श्रोता के कलेजे में पिघले शीशे की तरह उतर गए होंगे जिन्होंने एकाग्रता से कविताओं को सुना। पाश सिर्फ कवि ही नहीं थे वे स्वयं सीधे क्रांति से जुड़े थे। जेल गए और बड़ी मासूमियत से जेल में तैनात सिपाही से पूछते हैं
‘ भाई सिपाही! बता
मैं क्या तुझे भी उतना ही खतरनाक लगता हूं
और एक कविता की पंक्तियां
बहुत ही बेस्वाद है
जिंदगी के उलझे हुए नक्शे से निपटना मेरी दोस्त! कविता बहुत निस्तब्ध हो गई है
और हथियारों के नाखून बढ़ गए हैं

सुभाष काबरा व्यस्त रहते हैं लेकिन चौपाल में पढ़ने के लिए वह हमेशा नई ताजा दम रचना लाते हैं और मंच लूट ले जाते हैं। आज तो उनकी हर पंक्ति पर ठहाके लगे और तालियां बजी। दरअसल हास्य व्यंग्य ऐसी विधा है जहां हास्य की चासनी में लपेटकर बड़ी चतुराई से चुटकी काटने वाला तो संत की मुख मुद्रा धारे खड़ा रहता है मंच पर, जबकि श्रोता ठहाका भी लगाता है और तिलमिला भी जाता है।
मुंबई नगरिया ने चौपाल को
सोने का हिरण बनाकर रख दिया हैं
ससुरा छोड़ा भी नहीं जाता और
हर बार पकड़ा भी नहीं जाता

वी आई पी का ध्यान रखा करो भाई
काहे की वी आइ पी में आई का मतलब
हर-बार इडियट ही नहीं होता
कभी कभी इंटेलिजेंट भी हो सकता है

अंत में कहते हैं सुभाष
चौपाल के पास ऐसा बहुत कुछ है
जो किसी के पास नहीं है
छब्बीस साल की चौपाल
खुद को नहीं हम सबको
बेमिसाल बनाना चाहती है
चौपाल ना तो बीते वक्त को भूलाती है और नहीं आगत की आहट से अनजान रहती है। अगली प्रस्तुति इस तथ्य की प्रामाणिक बानगी थी। शिवांश पांडे तथा रुचिका मुखर्जी ने मानव निर्मित रोबोट और AI के मार्फ़त मनोरंजक जानकारी पेश की। रुचिका मुखर्जी ने रोबोट की भूमिका में अपनी भिन्न-भिन्न आवाजों में गाने की अर्हता को खूबसूरती से अंजाम दिया।। उनके अब तक 70 वीडियो सोशल मीडिया तथा इंस्टाग्राम पर आ चुके हैं। शिवांश AI की कमान संभाले हुए थे।
मनजीत सिंह कोहली ने चौपाल को परिभाषित करते हुए कहा कि
गांव में चौपाल लगती है
जबकि हमारे यहां चौपाल सजती है
उनकी दूसरी रचना वृद्धाश्रम में घटित एक सच्ची घटना पर थी जिसने सब की आंखें नम करदी।
यह वर्ष संगीतकार मदनमोहन का शताब्दी वर्ष है।उन्हें याद करते हुए यूनुस खान ने अपनी यादों की तिजोरी खोल दी।वे मदन मोहन के गानों के बनने की कथा रोचक ढंग किस्सा गोई की तरह पेश कर रहे थे और मंच पर अभिजीत घोषाल, शर्मिष्ठा बासु तथा अनिका अग्रवाल उन गानों को सुरीले अंदाज में गा रहे थे। सभागार में उपस्थित मदनमोहन के संगीत के शैदाई उनके साथ गाने से स्वयं को रोक नहीं पा रहे थे। सभागार में सरस संगीत मयी शै पसर चुकी थी।

अभी संगीत का जादू उतरा ही नहीं था कि मंच पर आई प्रियंका शर्मा, जिन्हें इस वर्ष संगीत नाटक अकादमी ने पुरस्कृत किया है और जिन्होंने अतुल जी की फिल्म सुभाष चंद्र बोस में लक्ष्मी सहगल की भूमिका भी निभाई थी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की बहुचर्चित कहानी ‘बिंदु’ का एक पात्रिय नाट्य रूपांतरण का एक अंश पेश किया। प्रियंका शर्मा की पांच सात मिनट की भावपूर्ण अदायगी ने प्रेक्षकों को अपनी जद में ले लिया और सब ने बड़ी उदारता से उसके काम की प्रशंसा की।

अब मंच पर थे शेखर सेन। पूना में रहने के कारण मुंबई की चौपालों के लिए वे ईद के चांद हो गए हैं। कभी उनके गीतों के बिना चौपाल का समापन नहीं हुआ करता था। उस दिन भी वही दस्तूर निभाया गया।

शेखर जी ने अपने चार वर्षों के पूणे प्रवास पर बोले कि हाथों से उपजाए धान साग सब्जी फल खाने और गौमाता की सेवा करने, प्रकृति के नजदीक रहने का मनचाहा सुख पाने का प्रयास किया है। संगीत साधना भी खूब हो रही है।गौर तलब यह कि अगले सप्ताह उनके एक पात्रिय नाटक का ग्यारहसौवां शो होने जा रहा है। ‘बहुत नाटक करता है’सुनते सुनते नाटकों को जीने लगे शेखर सेन। चौपाल की वर्ष गांठ पर स्वरचित रचनाएं प्रस्तुत की। तबले पर संगत कर रहे थे कौशिक बसु
दीन के धनवान सुखी
धनवान कहे महाराज सुखी
अगली प्रस्तुति मां की अभ्यर्थना में थी
नैनों में ज्योति सीप में मोती
मां के चरणों में थोड़ी जगह मेरी होती
सुख होता दीया और जीभ होती बाती
आंसुवन की स्याही से
मैं मां को लिखता पाती
छोटे छोटे सरल शब्दों को भावनाओं के साथ गूंथना और उसे डूब कर गाना श्रोताओं के लिए विलक्षण अनुभव था।

तीसरी प्रस्तुति तुलसीदास जी की रचना थी इस पर शेखर सेन ने कहा कि तुलसी 550 वर्ष पहले लिखकर चले गए और हम आज तक उन्हें गा रहे हैं जबकि आज के गाने सुनने के पांच घंटे तक भी याद नहीं रहते।
कहां के पथिक किनी गमनवा
कौन गांव के वासी किस कारण तजो भवनवा
उत्तर दिशा नगरी है अयोध्या
राजा दशरथ का है भवनवा
उन्हीं के हम दोनों कुंवरवा
माता के वचन सुन तजो भवनवा
ग्राम वधुएं पूछ रही है सिया से
कौन है प्रीतम कौन देवरवा
सिया मुस्कायी बोली मधु बानी
सांवरे से प्रीतम और गौर है देवरवा।

शेखर जी से मनचाही रचनाएं सुनने की फरमाइशे खूब आई। घड़ी अपनी रफ्तार में चल रही थी। आठ बज रहे थे। आभार ज्ञापन के लिए अशोक बिंदल और कविता गुप्ता का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था उन्हें अपना समय विसर्जित करना पड़ा। चौपाल में एक और यादगार पृष्ठ जुड़ा।

(लेखिका स्वांतः सुखाय सृजनरत रहती हैं और हर चौपाल की रिपोर्ट लिखती हैं) 
 
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