हलाल सर्टिफिकेशन के बहाने अर्थ व्यवस्था पर शिकंजा कसने का षड्यंत्र उजागर

Ramesh Sharma
उत्तर प्रदेश में ग्यारह संस्थाओं पर एफआईआर दर्ज 
धर्म को बहाना बनाकर भारत की अर्थ व्यवस्था पर शिकंजा कसने का एक बड़ा षड्यंत्र सामने आया है । उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी की पहल पर लखनऊ थाने में ग्यारह ऐसी संस्थाओं के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की है जो हलाल सर्टिफिकेशन के बहाने बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में अपने समर्थकों को भर्ती कराने और उनके लाभांश में भी हिस्सा बटाने का दबाब बनाते थे ।
यह एफआईआर लखनऊ के हजरतगंज थाने में भारतीय दंड संहिता की सात धाराओं में दर्ज हुई है । इनमें धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र करना), 153ए (विभिन्न समूहों के बीच धार्मिक वैमनस्यता बढ़ावा), 298 (किसी की धार्मिक भावनाएं आहत करना), 384 (फिरौती बसूलना), 420 (धोखाधड़ी), 471 (अनाधिकृत दस्तावेज तैयार) और 505 (लोगों को भ्रमित करना) के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया है। जिन संस्थाओं के विरुद्ध एफआईआर दर्ज हुई है उनमें हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र- जमीयत उलमा-ए-हिंद की एक राज्य इकाई, और जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट जैसी कुल ग्यारह संस्थाएँ  हैं । जिन संस्थाओं के नाम सामने आये हैं उन पर यह भी आरोप है कि उनके कुछ आतंकवादी संगठनों से भी संपर्क है और इस प्रकार बसूले गये धन का एक भाग उन संगठनों को भी भेजा जाता था । लेकिन अभी इन आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है । उत्तरप्रदेश पुलिस इन सभी आरोपों की बारीकी से जाँच कर रही है और जांच में सामने आये निष्कर्ष के बाद ही गिरफ्तारियाँ होगीं ।
भारत में यह गौरखधंधा 1974 से आरंभ हुआ था । कुछ संस्थाओं ने मुस्लिम समाज में खाने या अन्य उपयोग के लिये “हलाल” वस्तुओं का प्रयोग करने का प्रचार हुआ । अब यह पता कैसे चले कि कौनसी वस्तु “हलाल” है, इसके लिये इन संस्थाओं ने प्रमाणपत्र देना आरंभ कर दिया । इन संस्थाओं ने हलाल शब्द का कुछ ऐसा भावनात्मक प्रचार किया जिससे पूरा मुस्लिम समाज अनुकरण करने लगा और व्यवसायिक प्रतिष्ठान अपनी विक्री बढ़ाने के लिये इनके झांसे में आकर हलाल सर्टिफिकेशन लेने लगे । जबकि इन संस्थाओं को ऐसा प्रमाणपत्र देने का कोई अधिकार नहीं था । हल्दीराम और बीकानेरी गुजिया जैसी वे संस्थाएँ भी इनके झाँसे में आ गईं जो शुद्ध शाकाहारी खाद्य सामग्री बनातीं हैं । ऐसी संस्थाएँ भी हलाल प्रमाण पत्र लेने लगीं।
 हलाल प्रमाणीकरण का यह नेटवर्क कितना फैल गया है इसका अनुमान ऐसे प्रमाणपत्र जारी करने वाली एक संस्था “हलाल इंडिया” की वेबसाइट पर लिखा कि उसने भारत में सौ से अधिक कंपनियों को हलाल प्रमाणपत्र जारी किया है । इस संस्था ने अपनी वेबसाइट पर जिन व्यापारिक संस्थानों के नाम लिखे हैं उनमें फ्रांसीसी रिटेलर कैरेफोर, निरमा साल्ट, बाकफो फार्मास्यूटिकल्स, अंबुजा ग्रुप, दावत बासमती चावल, आदि शामिल हैं। हल्दीराम और बीकानेरी गुजिया को हलाल प्रमाणपत्र देने वाली भी यही संस्था है ।
हलाल एक अरबी का शब्द है जिसका अर्थ जायज होता है। यानि जो उचित और मेहनत तथा ईमानदारी से अर्जित किया हुआ हो वह कमाई हलाल कहलाती है । खाद्य सामग्री में हलाल का उपयोग सामान्यता माँस के मामले में उपयोग होता है। माँस तैयार करने के लिये पशु की गर्दन झटके से तुरन्त अलग नहीं की जाती, धीरे धीरे गर्दन अलग की जाती है । इस प्रक्रिया को ‘जिबाह’ करना भी कहते है और इससे तैयार माँस को “हलाल” कहा जाता और इस्लाम में ऐसा माँस खाने केलिये उचित बताया गया है ।
इन संस्थाओं ने इस धार्मिक प्रावधान से आर्थिक लाभ कमाने और भारतीय अर्थ व्यवस्था पर शिकंजा कसने की योजना बना डाली। उन्होंने अपना नेटवर्क बनाया और प्रमाणपत्र जारी करने लगे । इन संस्थाओं ने स्वयं को केवल माँस तक ही सीमित नहीं रखा अपितु तैयार खाद्य पदार्थ मिठाइयाँ, नमकीन, गुजिया, पपड़ी, चिप्स सहित खाने पीने की सभी वस्तुओं, अनाज सहित दैनिक उपयोग की अन्य वस्तुओं जैसे दवाइयाँ, लिपस्टिक,पावडर, टूथपेस्ट सहित सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुओं और वस्त्रों आदि पर भी हलाल प्रमाणपत्र जारी करने लगे ।  “हलाल प्रमाणपत्र” यूँ ही नहीं दिया जाता था । इसके लिये संबंधित वस्तुओं का निर्माण करने वाली संस्थाओं को कुछ मुस्लिम कर्मचारी रखने होते थे । कर्मचारियों की यह संख्या संबंधित उत्पाद की खपत के अनुसार निर्धारित की जाती थी । यह निर्धारण हलाल प्रमाणन करने वाली संस्था करती थी । साथ ही इस्लामिक दुआ एवं परंपरा से संबंधित वस्तुओं का निर्माण हो इसकी निगरानी केलिये एक मौलवी भी नियुक्त किया जाता था । इन सबका वेतन या व्यय संस्थान को उठाना होता था । इसके अतिरिक्त प्रमाणीकरण के लिये एक मोटी फीस भी जमा करना होती थी ।
हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर अपने समर्थक युवाओं और धर्म गुरु को नौकरी दिलाने तथा अवैध धन वसूली का दबाब बनाने की चर्चा एक लंबे समय से हो रही थी, समय समय पर मीडिया में भी खबरे आई किंतु इस सारे नेटवर्क ने अपनी योजनानुसार धार्मिक चादर ओढ़ रखी थी । इसलिये वे कार्यवाही से बचतीं रहीं। समय के साथ दो सामाजिक कार्यकर्ता सामने आये । एक शैलेंद्र कुमार शर्मा जिन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस को शिकायत की कि हलाला सार्टिफिकेट के माध्यम से कुछ कंपनियां किस प्रकार आम लोगों की धार्मिक भावना का फ़ायदा उठा रही हैं । शिकायत में यह आशंका भी व्यक्त की गई थी कि इससे अर्जित धन देश विरोधी गतिविधि में लिप्त संस्थाओं तक भी पहुंच रहा है । इस शिकायत पर मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी ने जांच के आदेश दिये ।
दूसरी ओर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई। यह याचिका एडवोकेट विभोर आनंद ने दायर की । याचिका में इस हलाल सर्टिफिकेशन को संविधान के अनुच्छेद 14, 21 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना । सुप्रीम कोर्ट ने भी जांच के आदेश दिये । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी जांच के आदेश पहले दे चुके थे । सुप्रीम कोर्ट के आदेश से जांच में तेजी आई । और अंत में मुकदमा दर्ज हुआ ।
(लेखक राजनीतिक सामाजिक व ऐतिहासिक विषयों पर नियमित लेखन करते हैं )